भारतीय राजनीति में राजनीतिक न्याय के नाम पर आंतरिक विवाद पैदा करना आम बात है, इसका ताजा उदाहरण आज का मुस्लिम वक्फ बोर्ड है?
It is common in Indian politics to




NBL, 10/09/2024, Lokeshwar Prasad Verma Raipur CG: It is common in Indian politics to create internal disputes in the name of political justice, the latest example of this is today's Muslim Waqf Board? पढ़े विस्तार से.....
न्याय के नाम पर सबसे ज्यादा अन्याय भारतीय राजनीति कांग्रेस ने किया है। दो नेता लोग स्वार्थ के वशिभूत होकर कुछ मुसलमानों को भारत से अलग करके पाकिस्तान बनाया और इसे बनाने वाली भारतीय राजनीति ही है।और वो कांग्रेस पार्टी है जिसके मुख्य नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू और मो. जिन्ना थे। हम देश के नागरिक आज भी इस सच्चाई से अनजान हैं क्योंकि उस समय देश की सत्ता कांग्रेस अपने हाथ में ले रही थी। जिसने देश के सच्चे इतिहास को दबाया और न्याय के नाम पर देश में सबसे गलत मानसिकता वाले इतिहास को जगह दी और इस गलत इतिहास को देश के बच्चे-बच्चे तक पहुँचाया। क्या कांग्रेस ने सही न्याय किया? देश के लोकतंत्र के साथ, सच्चे देशभक्त भारतीयों के साथ। ये थोड़ा कड़वा है लेकिन असली सच्चाई यही है।
सदियों तक कांग्रेस की नीतियां अंग्रेजों जैसी ही रहीं, फूट डालो और राज करो, जबकि भारत की आजादी की लड़ाई कांग्रेस के कई नेताओं ने लड़ी, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। कांग्रेस के कई नेता ऐसे थे जो भारत को बांटने के कट्टर विरोधी थे, जिनके विरोध को कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने दबा दिया और उन विरोधियों की सोची-समझी नीति को देशहित में लागू नहीं किया गया, ‘मेरी मर्जी, मेरा जिद’ शुरू से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की राजनीतिक नीति रही है, कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के कार्यकाल में देश के टुकड़े हो गए और आज भी कांग्रेस अपने पूर्वजों की नीतियों, की नीति पर चल रही है।
भारत से विभाजन के बाद बने पाकिस्तान के बच्चों में भारत के खिलाफ इतना ज़हर भर दिया गया है कि पाकिस्तानी लोग भारत को अपना दुश्मन देश मानते हैं और यह पूरी योजना पाकिस्तान बनने से पहले ही योजनाबद्ध तरीके से बनाई गई थी मो. जिन्ना द्वारा। यह नए देश पाकिस्तान को नियंत्रित करने की एक राजनीतिक योजना थी उनके। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और मोहम्मद जिन्ना की वजह से आज पाकिस्तान की जनता बुरे हालातों से गुज़र रही है, वहाँ की जनता में भारत के लिए कोई हमदर्दी नहीं है, इतना ज़हर फैलाकर इन स्वार्थी राजनीतिक नेताओं ने पाकिस्तान की जनता के साथ इतना बड़ा अन्याय किया है और इस ज़हर का असर भारत के कुछ मुसलमानों में भी महसूस किया जा सकता है, जो आंतरिक रूप से पाकिस्तान के समर्थक हैं, जो पाकिस्तान की आतंकवादी सोच का इस्तेमाल भारत में करते हैं।
यही हाल भारत के कुछ मुसलमानों का भी है जो पाकिस्तानी मुसलमानों की तरह दंगाई सोच रखते हैं, जो पाकिस्तान के मुसलमानों की तरह दूसरे धर्मों के लोगों के प्रति जहरीली सोच रखते हैं और देश की कुछ राजनीतिक पार्टियों द्वारा उनका समर्थन किया जाता है और इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि भारत के कुछ मुसलमान दूसरे धर्मों के धार्मिक त्योहारों के जुलूसों और उनके धार्मिक स्थलों पर पत्थरबाजी करते हैं और यह एक ऐसा नजारा है जो हमें कभी-कभी देखने को मिल जाता है। इसे आप क्या कहेंगे मुसलमानों में आपसी भाईचारा या आपसी मतभेद जिसमें साफ तौर पर नफरत झलकती है।
जिस नफरत के कारण पाकिस्तान भारत से अलग हुआ, वह उस समय के स्वार्थी नेताओं द्वारा बोया गया था और उसे भारत में बनाए रखने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपनी सत्ता का दुरुपयोग किया जो धर्मनिरपेक्ष भारत के हित में सही नहीं है। भारत में वक्फ बोर्ड का गठन वर्ष 1954 में वक्फ अधिनियम के तहत किया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य वक्फ से संबंधित कार्यों को आसान बनाना था। वक्फ अधिनियम में वक्फ संपत्ति से संबंधित दावों और रखरखाव के प्रावधान हैं। और इस वक्फ बोर्ड का गठन मुसलमानों के हित के लिए ही किया गया था, लेकिन वर्तमान में वक्फ बोर्ड ने भारतीय मुसलमानों के हित में कुछ भी बड़ा काम नहीं किया है। देश के मुसलमानों को वक्फ बोर्ड से यह सवाल पूछना चाहिए और सरकार से आग्रह करना चाहिए कि वह उनके लाभ के लिए एक नई नीति बनाए ताकि वक्फ बोर्ड की अपार संपत्ति का इस्तेमाल देश के जरूरतमंद लोगों के लिए किया जा सके।
कांग्रेस चाहती तो अपने पूर्वजों द्वारा दिए गए वक्फ बोर्ड द्वारा जबरन संपत्ति हड़पने के कानून को निरस्त कर सकती थी, लेकिन इसके विपरीत उसने इस वक्फ बोर्ड को और अधिक शक्तियां दे दी हैं। वर्ष 2013 में कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियों में वृद्धि की थी, जिसका दुष्परिणाम आज भारत में अन्य धर्मों के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। देश के कई हिंदू आबादी वाले इलाकों में यह वक्फ बोर्ड उन्हें अपनी संपत्ति बता रहा है और उन्हें खाली करने के नोटिस दे रहा है, जबकि वक्फ बोर्ड के गठन से पहले वहां बसी हिंदू आबादी अभी भी वहां बसी हुई है, जो कानूनी तौर पर उनके पक्ष में है। उसके बावजूद भी वक्फ बोर्ड द्वारा जबरन संपत्ति हड़पने का कानून भारत में बेखौफ चल रहा है, जो पाकिस्तान की तरह भारत में भी नफरत के बीज बो रहा है, जो उनकी सुनियोजित योजना है। भारत के संविधान में संशोधन करके इस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। भारत को टुकड़ों में बांटने वाले इस वक्फ बोर्ड पर कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में वक्फ बोर्ड के इस गलत काम को बढ़ावा दिया है। भारतीय मुसलमानों के निजी हितों के लिए काम करने वाला वक्फ बोर्ड अन्य धर्मों के लोगों के हित में नहीं है। जब भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है तो केवल मुसलमानों के हित के लिए वक्फ बोर्ड कानून से फायदा है, जब देश में संविधान कानून है और मुसलमान भी इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहे हैं तो इनका अलग वक्फ बोर्ड कानून खत्म किया जाना चाहिए और इनके द्वारा अवैध रूप से कब्जा की गई जमीन का इस्तेमाल देश हित में किया जाना चाहिए, चाहे वह मुसलमानों के हित में हो या अन्य धर्मों के लोगों के हित में, क्योंकि भारत में मुसलमान भी गरीब हैं और अन्य धर्मों के लोग भी गरीब हैं और इन गरीब लोगों की जरूरतें इस वक्फ बोर्ड द्वारा हड़पी गई अवैध जमीन पर पूरी की जानी चाहिए।
जबकि वक्फ बोर्ड एक संवैधानिक संस्था है जो मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों का प्रबंधन और देखरेख करती है। यह बोर्ड धार्मिक, शैक्षणिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संपत्तियों का उपयोग सुनिश्चित करता है। वक्फ संपत्तियों में मस्जिद, मदरसे, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक स्थान शामिल हैं। लेकिन वक्फ बोर्ड संवैधानिक नीति को छोड़कर असंवैधानिक संस्थाओं की तरह भारत के हिंदुओं की अनमोल जमीन पर अपनी बुरी नीयत रखता है और उनकी संपत्ति को अपना बताकर वक्फ बोर्ड अपनी संवैधानिकता का कानूनी दुरुपयोग करता है, जिससे देश में हिंदू-मुस्लिम एकता में दूरियां पैदा होती हैं और देश को अराजकता की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाता है, बेमतलब के जमीन विवादों के कारण हिंदू-मुस्लिम एकता में दरार पैदा होती है। इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को वक्फ बोर्ड की गलत गतिविधियों पर नजर रखने के लिए पारदर्शी व्यवस्था बनानी चाहिए और वक्फ बोर्ड को संवैधानिक कानून के दायरे में लाना चाहिए।
वक्फ बोर्ड को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए और इसका समर्थन करने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को भी इससे दूर रहना चाहिए। देश के हित में वक्फ बोर्ड की नीतियों और नियमों को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए और इसकी शक्ति का सही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। देश के अन्य धर्मों के लोगों को वक्फ बोर्ड द्वारा नुकसान पहुंचाए जाने से बचाया जाना चाहिए। वक्फ बोर्ड को उन लोगों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए जिनके पास वैध संपत्ति है। अगर देश में बार-बार वक्फ बोर्ड की गलत मानसिकता देखने को मिलती है तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप कर इसकी अतिरिक्त शक्ति पर रोक लगानी चाहिए। जो कांग्रेस के कार्यकाल में वक्फ बोर्ड को दी गई थी, जिसमें संशोधन की जरूरत है।
भारत में मुसलमानों को अल्पसंख्यक के नाम पर रियायतें दी जाती हैं, जबकि भारत में हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद भी मुसलमान यहाँ सुरक्षित हैं, क्योंकि हिंदुओं और मुसलमानों की धार्मिक संस्कृति में बहुत अंतर है, हिंदू सभी धर्मों के लोगों को मानवता की दृष्टि से देखते हैं और उनका सम्मान करते हैं, और मुसलमान अन्य धर्मों के लोगों को काफिर मानते हैं और कबूतरों की तरह अपना वर्चस्व देखते हैं और देश को हड़पने की योजना उनके शरीर और दिमाग में होती है।
यही कारण है कि मुसलमानों में आतंक फैलाने वाले आतंकवादी अधिक पैदा होते हैं, जो अन्य धर्मों के लिए खतरनाक होते हैं। जबकि मुसलमानों में नई चीजें बनाने की अपार शक्ति है, लेकिन केवल कुछ मुसलमान ही इसका इस्तेमाल जन कल्याण के लिए करते हैं और अधिकांश मुसलमान धार्मिक कट्टरता से प्रभावित होकर दूसरे धर्मों के लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं और उन्हें इसी में संतुष्टि मिलती है, मेरे हाथों एक काफिर मारा गया। वक्फ बोर्ड दूसरे धर्मों के लोगों को काफिर मानकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहा है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में देश के कानून, देश की सरकार और देश के लोकतंत्र के माध्यम से वक्फ बोर्ड की गलत गतिविधियों को रोकना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में वक्फ बोर्ड देश के लिए समस्या न बने, देश में अराजकता पैदा न हो और हिंदू-मुस्लिम एकता बरकरार रहे। क्योंकि वक्फ बोर्ड का गठन मुस्लिम धर्म के धार्मिक स्थलों और मुस्लिम धार्मिक संपत्ति की रक्षा के लिए किया गया है न कि दूसरे धर्म के लोगों की संपत्ति हड़पने के लिए।