तप के चूके राज मिलत है, राज से चूके नरका...

तप के चूके राज मिलत है, राज से चूके नरका...
तप के चूके राज मिलत है, राज से चूके नरका...

तप के चूके राज मिलत है, राज से चूके नरका

जंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमो जग कोय, सार शब्द जाने बिना कागा हंस न होय

उज्जैन (म.प्र.) : विधि के विधान की हर बारीकी जानने समझने वाले, सभी जीवों से प्रेम करने वाले, अंतर के मानसरोवर में जीवात्मा को स्नान कराने वाले, उपरी दिव्य लोकों में चढ़ाई, रसाई कराने वाले, शिष्य से उसके बुरे कर्मों को ले कर काटने, कटवाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त ने 23 अक्टूबर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि तप के चूके राज मिलत है, राज के चूके नरका। समय पूरा होने पर जब स्वर्ग और बैकुंठ की आत्माएं मृत्युलोक में भेजी जाती हैं तो राजा-महाराजाओं के यहां ही जन्म लेती है। और वे भोगी होते हैं, गृहस्थ का अन्न खाते हैं, स्वयं मेहनत करते नहीं है, भजन का रास्ता उन्हें मिलता नहीं, भजन करते नहीं, धन पद बल के अहंकार में ही रहते हैं। करा कराया सब गया, जब आया अहंकार। अहंकार उनको खत्म कर देता है और ऐसे लोग नरकगामी हो जाते हैं। तो सन्त तो बचाना चाहते हैं क्योंकि सन्त सबके होते हैं, सतगुरु सबके होते हैं, चाहे राजा हो, महाराजा हो, चाहे गरीब हो, चाहे अमीर हो। वो तो भाव के भूखे होते हैं।

जंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमो जग कोय सार शब्द जाने बिना कागा हंस न  होय

महाराज ने 23 अक्टूबर 2020 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि जंत्र मंत्र सब झूठ है मत भरमो जग कोय, सार शब्द जाने बिना कागा हंस ना होए। कितना भी आप कौआ को नहलाओ, कितना भी बढ़िया साबुन लगाओ लेकिन वह हंस नहीं हो सकता है। ऐसे ही जो जीवात्मा काली हो गई, कालिमा के अंदर आ गई, वह जल्दी हंस नहीं हो सकती है। हंस कैसे होगी? जब सार शब्द को पकड़ेगी। कौवे के अंदर भी जीवात्मा है, हंस के अंदर भी है। शरीर छोड़ने पर दोनों की आत्मा एक ही तरफ जाएगी। ऐसे ही जीवात्मा जब सार शब्द को पकड़ेगी, ऊपर जाएगी, मानसरोवर में स्नान करेगी तब यह हंस रूप होगी। इस तरह से असली चीज जब तक नहीं मिलती है तो परेशानी लोगों की दूर नहीं होती है।

एक-दो स्थान तक सुध रहती है

महाराज ने 3 अगस्त 2021 सायं रजनी विहार आश्रम, जयपुर (राजस्थान) में बताया कि दस प्रकार के प्राण होते हैं। पांच प्रकार के प्राण नीचे की तरफ और पांच प्रकार के प्राण ऊपर की तरफ होते हैं। (साधना में) ऊपर वाले तो निकलते हैं, उनका संबंध उधर से हो जाता है लेकिन नीचे वाले पड़े रहते हैं, यह नहीं निकलते हैं। यह तो उस समय निकलेंगे जब शरीर छोड़ने का समय आ जाएगा, जब उम्र पूरी हो जाएगी तब खिंचेंगे। यह जब प्राण खिचेगा तब शरीर में कोई जान नहीं रह जाएगी। यह शून्य पड़ जाएगा, खून बिल्कुल पानी जैसा, ताकत खत्म हो जाएगी। तो यह जो रहते हैं उनका संबंध बराबर उन प्राणों से बना रहता है। तो (साधना में इन प्राणों की) सुध रहती है, (उपरी) एक-दो स्थान (तक पहुँचने) तक सुध रहती है, उसके बाद (उपर) निकल जाओ तो भूल जाता है।

शिष्य द्वारा गुरु को सर्वस्व देने का अर्थ

महाराज ने 18 अक्टूबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि शिष्य को ऐसा चाहिए कि गुरु को सर्वस्व दे और गुरु को ऐसा चाहिए कि शिष्य से कछु न ले। लोग तो यह कहते हैं कि गुरु बनाओ तो गुरु को सब कुछ दे दो। धन-दौलत, मकान, दुकान, जमीन-जायदाद आदि सब सौंप दो लेकिन सन्त न भूखा तेरे धन का, उनके तो धन है नाम रतन का, पर तेरे धन से कुछ काम करावे, भूखे दूखे को खिलवावे। अगर आप धन दे दोगे तो भूखे दूखे को खिलवा देंगे। कोई और चीज आप दे दोगे तो दूसरों के उपयोग में वह उसे ला देंगे। तो वह क्या चाहते हैं? आप अपने कर्मों को उनको दो। गुरु को चाहिए शिष्य से कछु न ले। गुरु क्या करते हैं? जो शिष्य प्रेमी होते हैं उन्हीं के द्वारा उनके कर्मों को कटवाते हैं। कर्म काटने के कई तरीके बताए गए। सबका बोझा, सबका भार लेना यह बहुत कठिन काम होता है। नाम दान देना, जीवों को अपनाना, उनकी धुलाई-सफाई करना, बहुत कठिन काम होता है। जुड़वां बच्चे पैदा हो जाते हैं, सेवा करते-करते मां-बाप परेशान हो जाते हैं। दो ही बच्चे, चार बच्चे हो गए जिसके, लड़का इधर रो रहा है, लड़की उधर रो रही है, किसी को कमर में दबाए, किसी को कंधे पर डाले हुए है तो परेशान हो जाते हैं। और कहा गया है बाप-बेटे का रिश्ता होता है गुरु-शिष्य का। तो इतनी बेटों की परवरिश कैसे हो सकती है, कैसे संभाल हो सकती है? तो तौर-तरीका सिखाते बताते हैं कि इस तरीके से रहो, ऐसा खानपान चाल चलन रखो, गर्मी आवे तो गर्मी से बचत रखो, ठंडी आवे तो गरम कपड़ा पहन लो आदि। यह सब बातें सतसंग के द्वारा बता समझा देते हैं।