DOPT Promotion Rules: कर्मचारियों और अधिकारियों का किसी भी हाल में नहीं होगा प्रमोशन…
कर्मचारी है तो इस खबर को जरूर पढ़ ले। दरअसल सरकार की ओर से एक नया अपडेट सामने आ रहा है। जिसके तहत ये कहा जा रहा है कि इन केंद्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों का प्रमोशन किसी भी हाल में नहीं होगा।




DOPT Promotion Rules
नया भारत : अधिकारी और कर्मचारी, जिनकी पदोन्नति के लिए विभागीय प्रोन्नति समिति (डीपीसी) ने सिफारिश कर दी है, लेकिन उनके खिलाफ कोई जांच पेंडिंग है, तो उन्हें प्रमोशन मिलने में दिक्कत आएगी। जब तक उनके मामले का निपटारा नहीं होगा, उनके पदोन्नति आदेश को 'सील्ड कवर' में रखा जाएगा। (DOPT Promotion Rules)
अगर डीपीसी द्वारा पदोन्नति की सिफारिश कर दी जाती है और बाद में मालूम पड़ता है कि संबंधित अधिकारी के खिलाफ जांच पेंडिंग है, तो उस स्थिति में भी तब तक पदोन्नति आदेश को सील्ड कवर में रखा जाएगा, जब तक उस अधिकारी पर लगे आरोप खत्म न हो जाएं। जिन अधिकारियों को सील्ड कवर में पदोन्नति मिली है, उनके केस की हर छह माह में समीक्षा होगी। आरोपी अफसरों को तदर्थ पदोन्नति देने के मामले में जनहित जैसी कई बातों पर गौर किया जाएगा।(DOPT Promotion Rules)
कब दी जाती है सील्ड कवर में पदोन्नति-
डीओपीटी द्वारा जो 'सील्ड कवर' प्रक्रिया जारी की गई है, उसमें कई बातों का उल्लेख किया गया है। इस प्रक्रिया में वे अधिकारी शामिल होते हैं, जो अंडर सस्पेंशन हैं, उनके खिलाफ चार्जशीट जारी हुई है और अनुशासनात्मक कार्रवाई पेंडिंग है। अधिकारी पर केस चलाने के लिए क्रिमिनल चार्ज लगना लंबित है। यदि किसी अधिकारी को डीपीसी से पदोन्नति के लिए मंजूरी मिल गई है, लेकिन उसी वक्त अधिकारी के खिलाफ कोई मामला सामने आ जाता है, तो उसे सील्ड कवर में प्रमोशन दिया जाएगा। (DOPT Promotion Rules)
वह उस वक्त तक सही मायने में पदोन्नति के लाभ लेने का हकदार नहीं होगा, जब तक उस पर लगे आरोप खत्म न हो जाएं। हालांकि यह नियम उस अधिकारी पर लागू नहीं होगा, जिसे पहले से चले रहे मामले का निपटारा होने पर पदोन्नति मिली है और तभी उसके खिलाफ कोई दूसरा केस हो गया है। ऐसे में पहली डीपीसी द्वारा जारी सिफारिश मानी जाएगी।(DOPT Promotion Rules)
समीक्षा डीपीसी के मामले में, जहां किसी कनिष्ठ को मूल डीपीसी की सिफारिशों के आधार पर पदोन्नत किया गया है, ऐसे अधिकारी को पदोन्नति देने पर विचार किया जा सकता है, बशर्ते उसे विजिलेंस की क्लीयरेंस मिली हो।
ग्रेड के साथ जारी होगा सील्ड कवर में पत्र-
विभागीय प्रोन्नति समिति, किसी अधिकारी के लंबित अनुशासनिक मामले व उसके आपराधिक अभियोजन पर विचार किए बिना अन्य पात्र उम्मीदवारों बाबत सोच सकती है। 'प्रोन्नति के लिए अयोग्य' अधिकारियों को ग्रेड के साथ सील्ड कवर में पत्र जारी किया जाएगा। वह कवर संबंधित अधिकारी के खिलाफ विरुद्ध अनुशासनिक मामला/आपराधिक अभियोजन समाप्त होने तक नहीं खोला जाएगा। डीपीसी की कार्यवाही में केवल यह नोट होना चाहिए कि 'निष्कर्ष संलग्न सीलबंद लिफाफे में निहित हैं'।
इसके बाद खाली जगह को भरने के लिए सक्षम प्राधिकारी को अलग से उच्च ग्रेड वाले अधिकारियों में से किसी को चुनना चाहिए। इस प्रक्रिया का पालन अनुवर्ती विभागीय पदोन्नति समितियों द्वारा तब तक किया जाएगा, जब तक संबंधित सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक मामला/आपराधिक मुकदमा समाप्त नहीं हो जाता।
सीलबंद लिफाफे, केस की छह माह में समीक्षा की जाए-
डीओपीटी के मुताबिक, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ स्थापित अनुशासनात्मक मामला/आपराधिक अभियोजन अनावश्यक रूप से लंबा न हो। उसके खिलाफ चल रही कार्यवाही को शीघ्रता से अंतिम रूप देने का प्रयास किया जाए। संबंधित नियुक्ति प्राधिकारियों को उन सरकारी सेवकों के मामलों की व्यापक समीक्षा करनी चाहिए, जिनकी उच्च ग्रेड में पदोन्नति के लिए उपयुक्तता को प्रथम विभागीय बैठक की तिथि से छह माह की समाप्ति पर सीलबंद लिफाफे में रखा गया है।
प्रोन्नति समिति, जिसने उसकी उपयुक्तता का निर्णय किया था और अपने निष्कर्षों को सीलबंद लिफाफे में रखा था। इस तरह की समीक्षा बाद में भी हर छह महीने में की जानी चाहिए। समीक्षा में अन्य बातों के साथ-साथ अनुशासनात्मक कार्यवाही/आपराधिक अभियोजन में हुई प्रगति और उनके पूरा होने में तेजी लाने के लिए किए जाने वाले आगे के उपायों को शामिल किया जाना चाहिए।
सीलबंद कवर मामलों में तदर्थ पदोन्नति के लिए प्रक्रिया-
छह माह की समीक्षा के बावजूद, कुछ मामले ऐसे भी हो सकते हैं जहां सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक मामला/आपराधिक अभियोजन की बैठक की तारीख से दो साल की समाप्ति के बाद भी निष्कर्ष नहीं निकाला गया हो। निष्कर्षों को सीलबंद लिफाफे में रखा हो। ऐसी स्थिति में, नियुक्ति प्राधिकारी, सरकारी कर्मचारी के मामले की समीक्षा कर सकता है, बशर्ते कि वह निलंबित का न हो। कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें तदर्थ पदोन्नति देने की वांछनीयता पर विचार किया जा सकता है। इसमें कई पहलू देखे जाते हैं। जैसे, क्या अधिकारी की पदोन्नति जनहित के विरुद्ध होगी।
क्या आरोप इतने गंभीर हैं कि वारंट जारी रखने से इनकार किया जा सकता है। क्या निकट भविष्य में उस अधिकारी के मामले में कोई निष्कर्ष आने की संभावना है। क्या कार्यवाही को अंतिम रूप देने में देरी, विभागीय या अदालती कार्यवाही में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के लिए जिम्मेदार नहीं है। क्या तदर्थ पदोन्नति के बाद आधिकारिक पद के दुरुपयोग की कोई संभावना है। क्या वह अधिकारी, विभागीय मामले/आपराधिक अभियोजन के आचरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसके लिए नियुक्ति प्राधिकारी को केंद्रीय जांच ब्यूरो से भी परामर्श करना चाहिए।
अगली डीपीसी में मौका दिया जा सकता है-
यदि नियुक्ति प्राधिकारी इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि सरकारी कर्मचारी को तदर्थ पदोन्नति की अनुमति देना जनहित के विरुद्ध नहीं होगा, तो उसके मामले को अगली डीपीसी के समक्ष रखा जाना चाहिए। इससे पहले देखना होगा कि क्या वह अधिकारी तदर्थ आधार पर पदोन्नति के लिए उपयुक्त है या नहीं। जहां सरकारी कर्मचारी को तदर्थ पदोन्नति देने के लिए विचार किया जाता है, उसमें विभागीय पदोन्नति समिति को उसके खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक मामले/आपराधिक अभियोजन को ध्यान में रखे बिना व्यक्ति के सेवा के रिकॉर्ड की समग्रता के आधार पर अपना मूल्यांकन करना चाहिए।
इस आधार पर पदोन्नति का आदेश जारी किया जा सकता है, जिसमें पदोन्नति विशुद्ध रूप से तदर्थ आधार पर की जा रही हो। तदर्थ पदोन्नति नियमित पदोन्नति का कोई अधिकार प्रदान नहीं करेगी। वह पदोन्नति अगले आदेश तक होगी। आदेशों में यह भी इंगित किया जाना चाहिए कि सरकार के पास तदर्थ पदोन्नति को रद्द करने का अधिकार सुरक्षित है।
जांच में बरी होने पर होगी ये व्यवस्था-
यदि संबंधित सरकारी कर्मचारी को उसके मामले में आपराधिक अभियोजन से बरी कर दिया जाता है या विभागीय कार्यवाही में पूरी तरह से बरी हो जाता है, तो पहले से की गई तदर्थ पदोन्नति की पुष्टि की जा सकती है। उस पदोन्नति को सभी लाभों के साथ नियमित कर दिया जाएगा। यदि सरकारी सेवक को आपराधिक अभियोजन में गुणदोष के आधार पर बरी नहीं किया जाता है, लेकिन विशुद्ध रूप से तकनीकी आधार पर सरकार उस मामले को उच्च न्यायालय में ले जाने का प्रस्ताव करती है या उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करने का प्रस्ताव करती है तो तदर्थ पदोन्नति को समाप्त किया जाना चाहिए।
यदि सरकारी कर्मचारी को विभागीय कार्यवाही में दोषमुक्त नहीं किया जाता है तो भी उक्त नियम लागू होगा। अनुशासनिक मामले/आपराधिक अभियोजन, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी कर्मचारी के खिलाफ आरोप हटा दिए जाते हैं तो उसके बाद सीलबंद लिफाफा खोला जाएगा। यदि सरकारी कर्मचारी पूरी तरह से बरी हो जाता है, तो उसकी पदोन्नति की नियत तारीख का निर्धारण सीलबंद लिफाफे में रखे गए निष्कर्षों में उसे सौंपे गए पद के आधार पर और उसके अगले कनिष्ठ की पदोन्नति की तारीख के आधार पर किया जाएगा।
अगर कोई कर्मी रिटायर हो गया है तो-
सरकारी कर्मचारी, जो सभी आरोपों से मुक्त होने तक सेवानिवृत्त हो गया है, उसके संबंध में भी विचार किया जाएगा। डीपीसी से संबंधित पदोन्नति आदेश जारी किया गया है और पैनल में शामिल अधिकारियों ने सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले कार्यभार ग्रहण कर लिया है। यह माना जाएगा कि सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी आज सेवा में होते और पद का कार्यभार ग्रहण करते, यदि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू नहीं की गई होती।