दत्तक ग्रहण एक संवेदनशील प्रक्रिया है:कविता भंडारी ,सीसीएफ़ की 81 वी ई कार्यशाला आयोजित




लखनपुर सितेश सिरदार चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 81 वी ई कार्यशाला में आज दत्तक ग्रहण प्रावधानों को लेकर महत्वपूर्ण प्रशिक्षण दिया गया।मुख्य वक्ता के रूप में जेजे एक्ट विशेषज्ञ कविता भंडारी ने बाल कल्याण समितियों के पदाधिकारियों से कहा कि दत्तक ग्रहण की प्रक्रिया बहुत ही संवेदनशील है इसलिए इस मामले में कानूनी एवं भावनात्मक पक्ष को अतिशय गंभीरता से समझने की आवश्यकता है।सुश्री भंडारी ने बताया कि हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर अंतरदेशीय दत्तक प्रक्रिया को संशोधित किया गया है ताकि दोनों देशों के कानूनों का पालन सुनिश्चित हो।इस संशोधन के विहित प्रावधानों का मूल उद्देश्य हेग घोषणा के अनुसार बच्चों का अधिकतम कल्याण एवं पुनर्वास सुनिश्चित करना है।दत्तक ग्रहण से जुड़ी विधिक प्रक्रिया की बारीकियों से अवगत कराते हुए सुश्री भंडारी ने कहा कि किशोर न्याय अधिनियम की मूल भावना यही है कि बाल कल्याण समितियां अनाथ,समर्पित अभ्यर्पित बालकों को उनके जैविक अभिभावकों से सुमेलन किया जाए।इसके लिए समितियों को विहित प्रावधानों के समानन्तर सामाजिक दायित्वबोध के साथ पारिवारिक समेकन का प्रयास किया जाना चाहिये।उन्होंने बताया कि किसी भी बालक का दत्तक में जाना एक संवेदनशील प्रकरण होता है इसलिए कानून इस काम को अतिशय जबाबदेही के साथ किया जाना चाहिये।उन्होंने बताया कि समितियाँ मानसिक रूप से कमजोर अभिभावक एवं यौन अपराधजनित बालकों को दत्तक हेतु स्वतंत्र घोषित करने के लिए व्यापक आधिकारिता रखती है।अगर ऐसे अभिभावक जिनकी मानसिक स्थिति बालक की परवरिश के लिए मानक नही है तब समितियां विहित मेडिकल बोर्ड की सक्षम सिफारिश के बाद ऐसे बालकों को दत्तक ग्रहण के लिए मुक्त घोषित कर सकते हैं।सुश्री भंडारी ने बताया कि बालक के समर्पण की प्रक्रिया केवल समितियों के समक्ष ही पूर्ण की जा सकती है इसके लिए निर्धारित प्रारूप में ही आवेदन लिया जाना चाहिये आमतौर पर देश भर में समितियां इस प्रक्रिया का पूरा पालन नही करती हैं।उन्होंने आग्रह किया कि समितियां इस बात के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहना चाहिये कि बालक के समर्पण करने के लिए आने वाले अभिभावकों को इस बात के लिए सहमत किया जाए कि वह समर्पण नही करें।इसके लिए वैकल्पिक पुनर्वास योजनाओं एवं पश्चावर्ती स्थितियों से अभिभावकों को अवगत कराया जाना चाहिए।सुश्री भंडारी ने बताया कि अभ्यर्पण विलेख का निर्माण बहुत ही ध्यान से करने की आवश्यकता होती है।समिति का दायित्व है कि बालक के अभ्यर्पित होने के बाद भी अगले 60 दिनों तक वह इस बात का प्रयास करें कि बालक के मातापिता अपने अभ्यर्पण पर पुनर्विचार करें।दत्तकग्रह विशेषज्ञ तपोव्रत बारहा ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए केंद्रीय दत्तक ग्रहण एजेंसी के माध्यम से होने वाली गोद लेने की प्रक्रिया को बारीकी से समझाया।उन्होंने बताया कि ऐसे दम्पति जिनकी वैवाहिक उम्र दो बर्ष से कम है तो वे दत्तकग्रहन के लिए पात्र नही है।उन्होंने बताया कि एक आवेदक को इस प्रक्रिया में तीन बालकों का विकल्प उपलब्ध कराया जाता है अगर इच्छुक दम्पति बारी बारी से दिखाए गए दत्तकयोग्य बालकों के दत्तक हेतु सहमत नही होतें है तब उनके आवेदन की वरिष्ठता समाप्त हो जाती है।श्री तपोव्रत ने अपने सुदीर्ध अनुभव के आधार पर उन विसंगतियों को भी रेखांकित किया जो इस प्रक्रिया में आमतौर पर सामने आती है।फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहा कि सभी बाल अधिकार कार्यकर्ताओं को यह अंतर्मन से समझना चाहिए कि बालक का वास्तविक हित उसके जैविक परिवार की सरपरस्ती में ही है इसलिए किशोर न्याय अधिनियम के विपुल प्रावधानों के बावजूद हमें सामाजिक सक्रियता के साथ पारिवारिक मिलन का हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए।ई कार्यशाला के अंत में धन्यवाद डॉ केके दीक्षित ने व्यक्त किया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के बालक कल्याण समिति और किशोर न्याय बोर्ड छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सद्स्य सहित छत्तीसगढ़ से सुरेन्द्र साहू भी उपस्थित रहे।