मछली के 555 दांत: इस समुद्री मछली के मुंह में होते हैं 555 दांत.... हर दिन 20 दांत टूटते हैं.... इतने ही हैं निकलते.... वैज्ञानिक भी हैरान......

मछली के 555 दांत: इस समुद्री मछली के मुंह में होते हैं 555 दांत.... हर दिन 20 दांत टूटते हैं.... इतने ही हैं निकलते.... वैज्ञानिक भी हैरान......

डेस्क। वैज्ञानिकों ने दुनिया की सबसे अधिक दांतों वाली मछली की खोज की है। इस मछली के मुंह में 555 दांत होते हैं। हर दिन 20 दांत टूटते हैं। हर दिन 20 दांत निकलते हैं। ये 555 दांत मुंह के अंदर दो जोड़े जबड़े में इस तरह से सेट होते हैं कि इनमें फंसने वाला जीव चारों तरफ फंस जाता है। एक ही बार में ये अपने शिकार को टुकड़े-टुकड़े में बांट देती हैं। पूरा मुंह दांतों से ढंका होता है। मछली के मुंह में दो-दों जबड़ों का सेट है। पैसिफिक लिंगकोड नाम की इस मछली के मुंह में कुल मिलाकर 555 दांत होते हैं। ये दांत मछली के ऊपर और नीचे के जबड़ों में बराबर बंटे होते हैं। 

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ये मछलियां जितनी तेजी से बढ़ती हैं उतनी ही तेजी से दांत खो देती हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि बड़े होने के साथ इस मछली के रोजाना 20 दांत गिर जाते हैं। मछली के मुंह में हर हड्डी की सतह दांतों से ढकी होती है। पैसिफिक लिंगकोड मछली का वैज्ञानिक नाम ओफियोडोन एलॉन्गैटस है। यह उत्तरी प्रशांत क्षेत्र में पाई जाने वाली एक शिकारी मछली है। पूर्ण रूप से वयस्क होने के बाद यह मछली 20 इंच तक लंबी हो सकती है। लेकिन, कुछ लिंगकोड मछलियों को पांच फीट तक लंबा भी पाया गया है। इस मछली के मुंह में दांतों की लंबी श्रृंखला होती है। 

उनके मुंह में तालु का हिस्सा भी सैकड़ों की संख्या में दांतों से ढंका होता है। इनके मुंह में जबड़े की एक सेट के पीछे एक अतिरिक्त छोटा जबड़ा भी होता है। इसमें सामने की अपेक्षा चौड़े दांत होते हैं। मछलियां इनका उपयोग भोजन को चबाने के लिए उसी तरह करती हैं जैसे मनुष्य दाढ़ का उपयोग करते हैं। किसी जीव के दांत बता सकते हैं कि वह कैसे और क्या खाता है। क्योंकि दांत जीवों के मरने के बाद भी काफी समय तक जीवाश्म के रूप में मौजूद रहते हैं। 

वे कई प्रजातियों के लिए जीवाश्म रिकॉर्ड में सबसे प्रचुर मात्रा में मिले हैं। कई प्रजातियों को तो उनके दांतों के आधार पर ही पहचाना गया है। इतना ही नहीं, उनके खाने की खोज भी इन्हीं दांतों के आधार पर की गई है। एक्सपेरिमेंट को करने के लिए उन्होंने यूनिवर्सिटी के एक प्रयोगशाला में टैंकों में 20 पैसिफिक लिंगकोड मछलियों को रखा। इन मछलियों के दांत इतने छोटे होते हैं कि खुले समुद्र में इनकी दांतों के टूटने की रफ्तार का पता लगाना नामुमकिन है। उन्होंने फिश टैंक में कलर डालकर मछलियों के दांतों को रंग दिया।