भारत की राजनीति में सदियों से साम, दाम, दंड और भेद की नीति का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन हमारे सभी नैतिकतावादियों ने आदर्श नीति अपनाई और देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया।

The policy of saam, daam, dand and bhed has been used in the politics of India for centuries,

भारत की राजनीति में सदियों से साम, दाम, दंड और भेद की नीति का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन हमारे सभी नैतिकतावादियों ने आदर्श नीति अपनाई और देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया।
भारत की राजनीति में सदियों से साम, दाम, दंड और भेद की नीति का प्रयोग किया जाता रहा है, लेकिन हमारे सभी नैतिकतावादियों ने आदर्श नीति अपनाई और देश के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया।

NBL, 22/05/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. The policy of saam, daam, dand and bhed has been used in the politics of India for centuries, but some of our moralists adopted the ideal policy and registered their name in the history of the country.

सदियों से भारत की राजनीति में साम, दाम, दंड और भेद की नीति का उपयोग किया जाता रहा है, पढ़े विस्तार से... 

लेकिन हमारे जितने भी नीतिज्ञ हुए हैं, चाहे वे विदुर हों, पराशर हों, भीष्म हों या अन्य कोई- उन्होंने एक आदर्श राज्य की स्थापना और जीवन को शांति एवं प्रगतिशील तरीके से संचालित करने के लिए नैतिक नीति का पालन करने पर जोर दिया है।कोई राजा या व्यक्ति यदि ऐसा नहीं करता है तो वह अपने राज्य में अराजकता को जन्म देता है। हालांकि वर्तमान काल में कोई भी व्यक्ति या नेता इन सब बातों पर नहीं चलता है। उनमें से कुछ लोग ही सफल हो पाते हैं बाकी तो खुद, परिवार, समाज और देश का अहित करके चले जाते हैं। तो आओ जानते हैं कि विदुर की नीति क्या कहती है?

1- महात्मा विदुर कहते हैं कि जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।

टिप्पणी- हालांकि वर्तमान में हर कोई व्यक्ति कालेधन के बारे में पहले सोचता है। वह किसी भी प्रकार से धन को अर्जित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है। लेकिन यह भी तय है कि ऐसे व्यक्ति, नेता और धन का अंत जरूर होता है।

2- जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।

टिप्पणी- बहुत से ऐसे लोग हैं, जो एक दल छोड़कर दूसरे दल में चले जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि ऐसे लोगों पर कौन कैसे विश्वास कर लेता होगा? रानी लक्ष्मीबाई को इसलिए उनके संबंधी ने धोखा दिया था ताकि वह झांसी का राजा बन सके। लेकिन अंग्रेजों ने कहा कि यदि तुम अपनों के ही नहीं हो सके तो हमारे कैसे हो जाओगे?

3- बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है।

टिप्पणी- सचमुच ही बुद्धिमान या ज्ञानी व्यक्ति कभी झूठ के आधार पर अपनी प्रतिष्ठा कायम नहीं करता है। वह अपने विचारों में दृढ़ रहता है, जैसे चाणक्य। आप ऐसे किसी व्यक्ति का अपमान कर सकते हैं तब जबकि आप सत्ता में हो या किसी बड़े पद पर हों, लेकिन आप उस व्यक्ति से बच नहीं सकते। जब वह पॉवर में आएगा तो आपका सर्वनाश तय है।

4- ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन 6 प्रकार के व्यक्ति सदा दु:खी रहते हैं।

टिप्पणी- बहुत से व्यक्ति या नेता ऐसे हैं, जो दूसरों की प्रगति या सफलता से ईर्ष्या करते हैं। इसी कारण वे असंतुष्ट, क्रोधी और शंकालु भी रहते ही होंगे। ईर्ष्या करने से अच्‍छा है कि आप यह देखें कि मुझमें क्या कमी है? और कौन-सी योग्यता का निर्माण करना है? अपनी योग्यता और ज्ञान को बढ़ाने में ही लाभ होगा, ईर्ष्या करने में नहीं।

5- जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगाजी के कुंड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है। 

टिप्पणी- दरअसल, वीर, बहादुर और ज्ञानी व्यक्ति ही अपने मान और अपमान से परे उठकर सोचता है। वह अपने अपमान पर क्रोधित होने के बजाए शांति से उस पर विचार कर यह सोचता है कि कैसे अपमान करने वाला व्यक्ति एक दिन खुद आकर मुझसे क्षमा मांग लें। कोई आपका अपमान करता है, तो पहली गलती उसने वहीं कर दी। लेकिन यदि आप तुरंत क्रोधित होकर उसका भी अपमान कर देते हैं, तो आपने भी उसके जैसी ही गलती कर ली जबकि उसके अपमान का जवाब तर्कों से शांतिपूर्वक दिया जाना चाहिए।

6- मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं, उन पर भी विश्वास कर लेता है।

टिप्पणी- मूढ़ किसे कहते हैं? दरअसल, जिसके मन में यह भान है कि मैं सबकुछ जानता हूं, मेरी सब जगह प्रतिष्ठा है और मैं ही सर्वेसर्वा हूं। मूर्ख से भी बढ़कर मूढ़ होता है। ऐसे व्यक्ति को चापलूस ज्यादा पसंद आते हैं और चापलूसों की बात में आकर वह खुद को ज्ञानी समझने लगता है। आपने ऐसे बहुत से नेता, बॉस और व्यक्ति देखे होंगे।

7- मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं, पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।

टिप्पणी- बहुत से ऐसे लोग हैं, जो किसी पार्टी, संस्था, संगठन आदि के उच्च पद पर आसीन हैं। लोगों की बात में आकर वे किसी भी प्रकार का काला-पीला कर बैठते हैं। उनके इस पाप का सभी आनंद उठाते हैं लेकिन अंत में फंसता वहीं है, जो लीडर है।

8- किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई वाणी और बुद्धि राजा के साथ-साथ संपूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।

टिप्पणी- नेता हो या सामान्य व्यक्ति लेकिन यदि वह बुद्धिमान है, तार्किक रूप से संपन्न है तो उसको सोच-समझकर अपनी बुद्धि या वाणी का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान राजनीति में अपने हित के लिए नेता लोग कुछ भी बोलते रहते हैं। इससे समाज और राष्ट्र का अहित होता है।

9- काम, क्रोध और लोभ- ये तीन प्रकार के नरक यानी दु:खों की ओर जाने के मार्ग हैं। ये तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।

टिप्पणी- काम के कई अर्थ हैं लेकिन यहां है सेक्स। कामांध होना, क्रोध अर्थात हरदम गुस्सा करना और लोभ अर्थात लालच करना। उक्त तीनों अवगुण यदि किसी व्यक्ति में हैं, तो उस व्यक्ति का विनाश तय माना जाता है। ऐसे कई साधु, नेता और गणमान्य नागरिक अपनी प्रतिष्ठा गंवाकर जेल की हवा खा रहे हैं।

10- अपना और जगत का कल्याण अथवा उन्नति चाहने वाले मनुष्य को तंद्रा, निद्रा, भय, क्रोध, आलस्य और प्रमाद- ये 6 दोष हमेशा के लिए त्याग देने चाहिए।

टिप्पणी- सचमुच ही यदि आपको जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करनी है तो तंद्रा अर्थात बेहोशी, अत्यधिक निद्रा, डर, क्रोध, आलस्य, प्रमाद अर्थात लापरवाही को छोड़ देना चाहिए। अपने समय का प्रबंधन करके ज्यादा से ज्यादा कार्य करना चाहिए। कर्म से ही सफलता के द्वार खुलते हैं।