शारदीय नवरात्रि: नवरात्रि का पावन पर्व आज से शुरू…. नवरात्रि के पहले दिन होती है मां शैलपुत्री की पूजा.... जानें पूजा विधि, मां शैलपुत्री का स्वरूप और क्या है मां को पसंद.... नोट कर लें टाइम और विधि....




डेस्क। देश-दुनिया में शारदीय नवरात्रि पर्व आज से शुरू हो जाएंगे। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है, जिसमें पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के दिव्य रूपों की उपासना की जाती है। हालांकि इस साल नवरात्र महज 8 दिन तक ही रहेंगे, जो 7 अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त हो जाएंगे। शरद ऋतु में पड़ने वाली नवरात्रि को मुख्य नवरात्र माना जाता है। नवरात्रि के इस त्योहार में कुछ लोग अपने घरों माता की चौकी लगाकर अखंड ज्योत जलाते हैं।
नवरात्रि के पहले दिन प्रात:काल देवी दुर्गा की मूर्ति और कलश की स्थापना की जाती हैं। मुहूर्त के अनुसार कलश की स्थापना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इसक बार 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 15 मिनट से शुभ मुहूर्त शुरू होगा, जो 7 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। नवरात्रि के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहन लें। फिर पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें। कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा शुरू करें और व्रत रखने का संकल्प लें।
इसके बाद देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करें। माता शैलपुत्री को लाल फूल, सिंदुर, अक्षत और धूप आदि चढ़ाएं। इसके बाद शैलपुत्री देवी के मंत्रों का उच्चारण करें। फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंतर में घी के दीपक से आरती करें। मां शैलपुत्री को सफेद रंग काफी प्रिय है, आप चाहें तो उन्हें सफेद रंग की बर्फी का भी भोग लगा सकते हैं। ग्रह नक्षत्रों की दशा और मुहूर्त के अनुसार कई विद्वानों का मत है कि इस बार शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के घोड़े पर आगमन के योग हैं, जो सामान्य फलदायक होता है, लेकिन दशमी शुक्रवार के दिन देवी का प्रस्थान नवरात्र के बाद हाथी पर होगा, जोकि शुभ फलदायक होगा।
इसे नई स्फूर्ति, नव चेतना का संचार और सुख-समृद्धि देने वाला माना गया है। हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि देव, दानव या फिर धरती पर रहने वाला कोई भी मनुष्य उसका वध ना कर सके। ब्रह्मा जी का आशीर्वाद पाने के बाद राक्षस ने तीनों लोगों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जिसके बाद महिषासुर के आतंक से त्रस्त आकर देवताओं ने देवी दुर्गा का आवाहन किया। 9 दिनों तक मां दुर्गा और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध चला था। दसवें दिन मां दुर्गा ने भयानक राक्षस महिषासुर का वध कर दिया।
ये दो तिथियां एक साथ-
09 अक्टूबर, शनिवार को तृतीया तिथि सुबह 07 बजकर 48 मिनट तक ही रहेगी। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी, जो कि अगले दिन 10 अक्टूबर (शनिवार) को सुबह 05 बजे तक रहेगी। इस साल दो तिथियां एक साथ लगने के कारण नवरात्रि आठ दिन के पड़ेंगे।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त-
नवरात्रि में घट स्थापना या कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि में घटस्थापना का शुभ समय सुबह 06 बजकर 17 मिनट से सुबह 07 बजकर 07 मिनट तक ही है। कलश स्थापना नवरात्रि के पहले दिन यानी 07 अक्टूबर, गुरुवार को ही की जाएगी।
माता रानी की पूजा में लगने वाली पूजन सामग्री-
मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो, सिंदूर, केसर, कपूर, धूप,वस्त्र, दर्पण, कंघी, कंगन-चूड़ी, सुगंधित तेल, चौकी, चौकी के लिए लाल कपड़ा, पानी वाला जटायुक्त नारियल, दुर्गासप्तशती किताब, बंदनवार आम के पत्तों का, पुष्प, दूर्वा, मेंहदी, बिंदी, सुपारी साबुत, हल्दी की गांठ और पिसी हुई हल्दी, पटरा, आसन, पांच मेवा, घी, लोबान,गुग्गुल, लौंग, कमल गट्टा,सुपारी, कपूर. और हवन कुंड, चौकी, रोली, मौली, पुष्पहार, बेलपत्र, कमलगट्टा, दीपक, दीपबत्ती, नैवेद्य, शहद, शक्कर, पंचमेवा, जायफल, लाल रंग की गोटेदार चुनरीलाल रेशमी चूड़ियां, सिंदूर, आम के पत्ते, लाल वस्त्र, लंबी बत्ती के लिए रुई या बत्ती, धूप, अगरबत्ती, माचिस, कलश, साफ चावल, कुमकुम,मौली, श्रृंगार का सामान, दीपक, घी/ तेल ,फूल, फूलों का हार, पान, सुपारी, लाल झंडा, लौंग, इलायची, बताशे या मिसरी, असली कपूर, उपले, फल व मिठाई, दुर्गा चालीसा व आरती की किताब,कलावा, मेवे, हवन के लिए आम की लकड़ी, जौ आदि।