Bhasma Holi 2022: यहां जलती चिताओं के बीच राख से खेली जाती है होली.... श्मशान में चिता की राख से खेली गई होली.... 350 साल पुरानी है ये मान्यता.... जानिए इस अनोखी होली के बारे में......

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Bhasma Holi 2022: यहां जलती चिताओं के बीच राख से खेली जाती है होली.... श्मशान में चिता की राख से खेली गई होली.... 350 साल पुरानी है ये मान्यता.... जानिए इस अनोखी होली के बारे में......

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Varanasi Shamshan Holi, Bhasma Holi 2022: देश-दुनिया होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। जिस तरह कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा, वृंदावन, बरसाना में होली काफी पहले से शुरू हो जाती है। उसी प्रकार धर्म की नगरी काशी में होली रंगभरी एकादशी से शुरू हो जाती है। काशी में सबसे पहले काशीवासी अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाशमशान पर चिता भष्म से होली खेलकर होली के त्योहार की शुरूआत करते हैं। इसके बाद ही काशी में होली की शुरुआत होती है। देश में होली (Holi) के रंगों का खुमार और हुरियारों का जोश त्योहार से पहले ही दिखने लगा है। वहीं भगवान शिव की नगर कही जाने वाली काशी (Kashi) में होली की परंपरा ना सिर्फ सदियों पुरानी मानी जाती है बल्कि ये अनोखी भी है।  (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)

 

दरअसल माना जाता है कि बाबा भोलेनाथ खुद अपने भक्तों को होली के हुड़दंग की अनुमति देते हैं। काशी विश्वनाथ के इस शहर में रंगों की होली के अलावा एक होली ऐसी भी है जो कि चिताओं की भस्म से मनाई जाती है। बाबा विश्वनाथ धाम के पुनर्निर्माण के बाद अब परिसर में होली खेलने के लिए काफी बड़ी जगह बन चुकी है। मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती क्योंकि वहां चौबीसों घंटें चिताओं के जलने और शवयात्राओं के आने का सिलसिला चलता रहता है। चारों ओर पसरे मातम के बीच वर्ष में 1 दिन ऐसा आता है, जब महाशमशान पर काफी हर्षोल्लास का माहौल होता है।  (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)


वह त्योहार होता है रंगभरी एकादशी का। वाराणसी में 14 मार्च सोमवार को रंग भरी एकादशी पर श्मशान घाट पर चिता की भस्म से होली खेली गई। इसमें डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलती धुनों के बीच चारों ओर जलती चिताओं की भस्म से होली खेली गई। रंग-गुलाल के अलावा उड़ती हुई चिता की भस्म से इस होली को सालों से मनाते आ रहे हैं। बताया जाता है कि रंगभरी होली की मान्यता 350 साल से भी पुरानी है।  (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)


प्राचीन मान्यता के कारण मनाते हैं होली

रंगभरी एकादशी के दिन महाशमशान पर खेली गई इस अनूठी होली के पीछे की मान्यता काफी प्राचीन है। बताया जाता है कि जब रंगभरी एकादशी के दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ वे होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए रंगभरी एकादशी से शुरू हुए पंचदिवसीय होली पर्व की अगली कड़ी में विश्वनाथ इन्हे के साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं।  (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)


आरती से होती है होली की शुरुआत

रंगभरी एकादशी की शुरूआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है। इसके पहले शोभायात्रा भी निकाली जाती है। इस अनूठे आयोजन को कराने वाले डोम राजा परिवार के बहादुर चौधरी के मुताबिक, यह सदियों पुरानी परंपरा चली आ रही है। बाबा मां पार्वती का गौना कराने के बाद भूत प्रेत और अपने गणों के साथ मसान में होली खेलने आते हैं। इसके पीछे यही मान्यता है और इसी के बाद से होली की शुरुआत हो जाती है। बाबा का शोभायात्रा कीनाराम आश्रम से निकालकर महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट आता है। इसके बाद महाश्मशान नाथ की पूजा और आरती होती है और से बाबा अपने गणों के साथ चिताभस्म की होली खेलते हैं। (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)


क्या है चिताभस्म की होली ?

ये होली इस बार साल 15 मार्च को और भव्य रूप में मनाई जाएगी। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्‍मशान मणिकर्णिका घाट पर इस होली को खेलने वाले लोग इकट्ठा होते हैं। सुबह से ही भक्त मणिकर्णिका घाट पर इकट्ठा होना शुरू हो जाते हैं। दुनियाभर में इसी जगह पर चिता की राख से होली खेलने की परंपरा है। यहां लोग चिताओं की भस्म से होली खेलते हैं और फिर जब मध्याह्न में बाबा के स्नान का वक्त होता है तो इस वक्त यहां भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है। माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ दोपहर के वक्त मणिकर्णिका घाट पर स्नान के लिए आते हैं। वर्षों से ये परपंरा यहां पूरे जोश और उत्साह के साथ चली आ रही है। (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)


क्यों मनाई जाती है चिता की राख से होली ?

वेदों और शास्त्रों में मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच, दृश्य, अदृश्य, शक्तियां जिनकों बाबा खुद इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं। लेकिन अपने दयालु स्वभाव की वजह से वो अपने इन सभी प्रियगणों के बीच होली खेलने के लिए घाट पर आते हैं। शिवशंभू अपने गणों के साथ चिता की राख से होली खेलने मसान आते हैं। इसी दिन से होली की शुरुआत मानी जाती है। काशी की ये परंपरागत होली मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच चिता भस्म के साथ मनाई जाती है।  (Varanasi Shamshan Holi, Rangbhari Ekadashi, Bhasma Holi 2022)