Sahara India Case: सहारा समूह का गोरखधंधा !.... मोटा रिटर्न पाने के लालच में सहारा इंडिया में लोगों ने निवेश की जिंदगी भर की कमाई..... निवेशकों को क्यों नहीं मिल रहा पैसा?.... जानिए क्या है Sahara Group Scam......
Sahara India, Sahara Scam, Sahara SEBI Case, Subrata Roy, Sahara Group अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने SIRECL और SHICL को सेबी के साथ निवेशकों का पैसा तीन महीने के अंदर 15 फीसद ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया था. साथ ही सेबी को सभी ओएफसीडी धारकों की डिटेल प्रदान करने को भी कहा गया. सहारा ग्रुप की SIRECL और SHICL कंपनी से जुड़ा है सारा स्कैम. ● भारी रिटर्न का लालच देकर OFCDs के जरिए जुटाया गया था निवेशकों से पैसा. ● सहारा ने अब तक सेबी को जमा कराए सिर्फ 15,503.69 करोड़. ● सेबी ने सहारा के निवेशकों को अब तक लौटाए हैं केवल 138.07 करोड़.




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नई दिल्ली: देश में ऐसे कई लोग हैं, जिनका पैसा ना तो सहारा और ना ही सेबी (SEBI) ने वापस लौटाया है. जिनका मोटा पैसा फंसा हुआ है, वे तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाकर अपना पैसा वापस पाने में लगे हैं, लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है, वे पूरी तरह भगवान भरोसे बैठे हुए हैं. सहारा ग्रुप (Sahara Group) की कंपनियों में कइयों ने अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा लगाया, लेकिन रिटर्न में कुछ नहीं मिला. मध्य प्रदेश के दतिया से एक पुलिस टीम सहारा समूह के अध्यक्ष सुब्रत रॉय (Subrata Roy) और निदेशक मंडल के सदस्यों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट लेकर लखनऊ पहुंची.
दतिया पुलिस को 14 ऐसी शिकायतें मिली थीं, जिनमें कहा गया कि कंपनी उनका पैसा नहीं लौटा रही है. सहारा इंडिया (Sahara India) की शुरूआत साल 1978 में हुई थी. सहारा स्कैम (Sahara scam) मुख्य रूप से सहारा ग्रुप की दो कंपनियों सहारा इंडिया रियल ऐस्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SIRECL) और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (SHICL) से जुड़ा है. बात 30 सितंबर, 2009 की है. सहारा ग्रुप की एक कंपनी सहारा प्राइम सिटी ने अपने आईपीओ के लिए सेबी में आवेदन (DRHP) दाखिल किया था. डीआरएचपी में कंपनी से जुड़ी सारी अहम जानकारी होती है.
जब सेबी ने इस डीआरएचपी का अध्ययन किया, तो सेबी को सहारा ग्रुप की दो कंपनियों की पैसा जुटाने की प्रक्रिया में कुछ गलतियां दिखीं. ये दो कंपनियां SHICL और SIRECL ही थीं. बिहार के अररिया जिले के रहने वाले सुब्रत रॉय ने अपना कारोबार 1978 में 2,000 रुपये की रकम लगाकर यूपी के गोरखपुर से शुरू किया था. उन्होंने लोगों से पैसा जमा करने की एक स्कीम से शुरुआत की. इस पर 1979-80 में पाबंदी लग गई और तुरंत पैसा वापस करना पड़ा. फिर उन्होंने हाउसिंग फाइनेंस कंपनी शुरू की, जिसके लिए बाजार से पैसा उगाहने की कोई सीमा नहीं थी.
उनका यह काम चल निकला. बढ़ते-बढ़ते सहारा देश की टॉप की कंपनियों में शामिल हो गई. एक समय सहारा की कंपनियों में इंडियन रेलवे के बाद सबसे ज्यादा कर्मचारी काम करते थे. मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. ऐसे भी संभावना जताई गई कि सहारा ग्रुप द्वारा काले धन को छिपाने के लिए बड़े स्तर पर मनी लॉन्ड्रिंग की गई. सुप्रीम कोर्ट ने जब फंड के सोर्स के बार में सबूत मांगे, तो समूह कोर्ट को संतुष्ट करने में विफल रहा. अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों कंपनियों को सेबी के साथ निवेशकों का पैसा तीन महीने के अंदर 15 फीसद ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया.
साथ ही सेबी को सभी ओएफसीडी धारकों की डिटेल प्रदान करने को भी कहा गया. इसके बाद सहारा 127 ट्रक लेकर सेबी के ऑफिस पहुंचा, जिसमें निवेशकों की डिटेल्स थीं. लेकिन इन फाइल्स में निवेशकों की पूरी जानकारी नहीं थी. इससे मनी लॉन्ड्रिंग का शक बना रहा. सहारा सेबी को तीन महीने में 15 फीसद ब्याज के साथ पैसा जमा कराने में नाकाम रहा. समय के साथ, सुप्रीम कोर्ट और सेबी दोनों ही इस मामले को मनी लॉन्ड्रिंग की तरह लेने लगे. उन्होंने सहारा इंडिया के बैंक अकाउंट और संपत्ति को फ्रीज करना शुरू कर दिया.