दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा मजबूरी या वोट बैंक सिंपथी की राजनीति क्या हैं असल वजह पढ़े पूरी ख़बर




केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिलने वाला है. शराब नीति मामले में 13 सितंबर को तिहाड़ जेल से रिहा हुए सीएम अरविंद केजरीवाल ने रविवार को बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि वे दो दिन के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देंगे.
उन्होंने कहा कि मेरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं. अब जब तक मैं जनता की अदालत में निर्दोष साबित नहीं हो जाता तब तक मैं सत्ता में वापस नहीं लौटूंगा.
13 सितंबर को केजरीवाल के रिहाई के बाद से ही अटकलों का बाजार गर्म था कि सीएम केजरीवाल अपने पद से इस्तीफा दे सकते हैं. इसके पिछे कई कई वजहें हैं जिसकी वजह से केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को मजबूर हुए हैं.
मजबूरी या राजनीति ?
जेल से निकलने के बाद अरविंद केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि वह जमानत वाले सीएम के साथ साथ चार्जशीटेड मुख्यमंत्री हैं. राजनीति का कीचड़ साफ करने के लिए वह राजनीति में आये थे और उसी कीचड़ में धंसते चले गये. अंदाजा लगाइये कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला सीएम न तो ऑफिस जा पाएगा और न ही सचिवालय. किसी आदेश पर हस्ताक्षर भी नहीं करेगा यानी सिर्फ नाम का मुख्यमंत्री रहेगा. ऐसे में भाजपा भला उन्हें कैसे बख्श देगी. कांग्रेस बेशक इंडिया में शामिल होने के कारण सीधे वार न करे लेकिन भाजपा उन्हें घेरेगी तो वह विरोध भी नहीं कर पाएगी.
वोट बैंक की राजनीति
एक तरह से अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई है. सीएम होते हुए भी वह सीएम नहीं रहेंगे. फर्ज कीजिए कि वह मनीष सिसोदिया को फिर से डिप्टी सीएम बनाने के लिए सिफारिश करें और एलजी उसे मानने से इनकार कर दें. अरविंद केजरीवाल को जिन शर्तों पर जमानत मिली है उससे वह राजनेता बनकर रह जाएंगे, सीएम नहीं. भविष्य में राजनीतिक पार्टियां सुविधानुसार व्यंग्य करेंगी कि ऐसे सीएम का नाम बताओ जो पद पर तो था लेकिन उसे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं था.
ऐसे में लोगों की सहानुभूति पाने और वोट बैंक को मजबूत करने के लिए अरविंद केजरीवाल इस्तीफा देना ही सही समझा. यदि वो ऐसा नहीं करते तो भाजपा आरोपों की बौछार करती और राष्ट्रपति शासन के लिए दबाव बनाती.