कल यानी 24 दिसंबर से 30 दिसंबर तक बापू चिन्मयानंद भदौरा में शाम 4:00 से 7:00 बजे तक करेंगे कथा वाचन आयोजकों ने तैयारी पर लगाया पूरा ध्यान क्षेत्र में उत्साह का माहौल पढ़ें पूरी खबर

कल यानी 24 दिसंबर से 30 दिसंबर तक बापू चिन्मयानंद भदौरा में शाम 4:00 से 7:00 बजे तक करेंगे कथा वाचन आयोजकों ने तैयारी पर लगाया पूरा ध्यान क्षेत्र में उत्साह का माहौल पढ़ें पूरी खबर
कल यानी 24 दिसंबर से 30 दिसंबर तक बापू चिन्मयानंद भदौरा में शाम 4:00 से 7:00 बजे तक करेंगे कथा वाचन आयोजकों ने तैयारी पर लगाया पूरा ध्यान क्षेत्र में उत्साह का माहौल पढ़ें पूरी खबर

बिलासपुर//कल यानी 24 दिसंबर से बापू चिन्मयानंद भदौरा में कथा वाचन करने पहुंच रहे हैं जिसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई है बापू चिन्मयानंद यहां 24 दिसंबर से 30 दिसंबर तक यानी 7 दिन कथा वाचन करेंगे जिसका समय दोपहर 4:00 बजे से 7:00 तक होगा अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां बापू के कथा वाचन को सुनने के लिए लाखों की तादाद में श्रोता पहुंचने वाले हैं जिसको ध्यान में रखते हुए बड़ा पंडाल बनाया जा रहा है वही आपको बताते चलें कि क्षेत्र में ऐसा आयोजन पहली बार हो रहा है जहां किसी अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक को बुलाया गया हो जिसको लेकर क्षेत्र वासियों में बड़ा ही उत्साह नजर आ रहा है वहीं भदौरा सरपंच शांति बाई और उपसरपंच गुड्डू राठौर ने बताया कि क्षेत्रवासी बड़े ही खुश है और तैयार भी हैं बापू का वेलकम करने के लिए उन्होंने आगे बताया कि इस समय सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं और ये हमारे लिए सौभाग्य का विषय है कि हमारे बीच कल से बापू चिन्मयानंद उपस्थित होकर अपनी मीठी वाणी से हम सबको कथा सुना कर कृतज्ञ करेंगे

बापू चिन्मयानंद से जुड़ी कुछ खास बातें

स्वामी चिन्मयानंद बापू (15 मई 1979 को जन्म) , वह एक प्रमुख कथा वाचक और अद्भुत स्वर गामी है। वह बचपन से ही महाभारत, श्रीमद् भगवद् और राम चरित्र मानस के रूप में उनके पास प्राचीन महाकाव्य और दर्शन की उत्कृष्ट कमान और गहरी समझ रखते थे।

 

जीवन परिचय और शिक्षा

स्वामी का जन्म 15 मई 1979 को उत्तर प्रदेश के गापीरा गांव में राम कुमार दास और रेखा देवी के घर में हुआ था। उनके दोनों माता-पिता ब्राह्मण थे। उन्होंने सी बी एस सी से अपनी स्कूलिंग की वह संस्कृत में भी बहुत उत्तम थे उन्हें आध्यात्मिक उन्नति को आगे बढ़ाने के लिए पूर्ण चुप्पी की आवश्यकता थी,इसलिए चिन्मयानंद बापू चित्रकूट गए और मंदाकिनी नदी के तट पर लंबे महीनों के लिए ध्यान लगाया। केवल फलों और सब्जियों पर जीवित रहने के दौरान,बापूजी ने चित्रकूट के जंगलों में कई वर्षो तक विचरण किया।