छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर..हेरा, जानिए इसके पीछे की कहानी छत्तीसगढ़ में मनाये जाने वाले छेरा त्योहार की कहानी बहुत ही रोचक हैं। क्यों मनाते है छेर छेरा त्योहार, जानिए क्या है उसकी कहानी पढ़े पूरी खबर




रायपुर .'छेर-छेरा पुन्नी' के नाम से जाने वाला यह त्योहार हर साल पौष मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घर में अनाज की कभी कमी नहीं होती।कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी। वह करीब आठ साल तक राज्य से दूर रहे। शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो प्रजा को इसकी खबर लगी। खबर मिलते ही लोग राजमहल की ओर चल पड़े।
छत्तीस गढ़ों के सभी राजा कौशल नरेश का स्वागत करने के लिए रतनपुर आने लगे।राजा आठ साल बाद वापस आए थे इस बात से सारी प्रजा बहुत उतसहित थी ।हर कोई लोक गीतों और गाजे-बाजे की धुन पर नाच रहा थे। राजा की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज सम्भाला था। इतने समय बाद अपने पति को देख कर वह बहुत खुश थी।उन्होंने सोने-चांदी के सिक्के प्रजा पर लूटना चालू किया।राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा। इस दिन अगर आपके घर के आस पास "छेर-छेरा....माई, कोठी के धान ला हेर-हेरा" जैसा कुछ भी सुनाई दे तो हैरान होने की जरुरत नहीं, बस मुठ्ठी भर अनाज बच्चों को दान कर देना ।जब तक आप दान नहीं दोगे तब तक वह आपके दरवाजे से हटेंगे नहीं और कहते रहेंगे, 'अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन'।
जो भिक्षा मांगता है वो ब्राह्मण कहलाता है, और देने वाला को देवी बोलते है
छत्तीसगढ़ी संस्कृति के जानकार व लोक कलाकार पुनऊ राम साहू बताते हैं कि छेरछेरा के दिन मांगने वाला याचक यानी ब्राह्मण के रूप में होता है तो देने वाली महिलाएं शाकंभरी देवी के रूप में होती है। छेरी, छै+अरी से मिलकर बना है। मनुष्य के छह बैरी काम , क्रोध, मोह, लोभ, तृष्णा और अहंकार है। बच्चे जब कहते हैं कि छेरिक छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा तो इसका अर्थ है कि हे मकरनीन (देवी) हम आपके द्वार में आए हैं। माई कोठी के धान को देकर हमारे दुख व दरिद्रता को दूर कीजिए। यही कारण है कि महिलाएं धान, कोदो के साथ सब्जी व फल दान कर याचक को विदा करते हैं। कोई भी महिला इस दिन किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देती। वे क्षमता अनुसार धान-धन्न जरूर दान करते हैं।
एक और भी कहानी है इसको मानने की
जनश्रुति है कि एक समय धरती पर घोर अकाल पड़ी। अन्न, फल, फूल व औषधि नहीं उपज पाई। इससे मनुष्य के साथ जीव-जंतु भी हलाकान हो गए। सभी ओर त्राहि-त्राहि मच गई। ऋषि-मुनि व आमजन भूख से थर्रा गए। तब आदि देवी शक्ति शाकंभरी की पुकार की गई। शाकंभरी देवी प्रकट हुई और अन्न, फल, फूल व औषधि का भंडार दे गई। इससे ऋषि-मुनि समेत आमजनों की भूख व दर्द दूर हो गया। इसी की याद में छेरछेरा मनाए जाने की बात कही जाती है।