CG महाशिवरात्रि स्पेशल: जल में समाए शिवाय,दुधावा बांध के बीचों-बीच शिव जी का एक अनोखा मंदिर, पानी कम होने पर होता है दर्शन… पुरातात्विक महत्व भी है दिलचस्प,जानिए क्या है महत्व….!
CG Mahashivratri Special: Shivaay immersed in water, a unique temple of Lord Shiva in the middle of Dudhawa Dam, Darshan happens when the water recedes… Archaeological importance is also interesting, know what is the importance….!




CG Mahashivratri Special: Shivaay immersed in water, a unique temple of Lord Shiva in the middle of Dudhawa Dam, Darshan happens when the water recedes...Archaeological importance is also interesting, know what is the importance
छत्तीसगढ़...धमतरी जिले के दुधावा बांध के बीचों-बीच शिव जी का एक अनोखा मंदिर है. जो कि लगभग छठवीं शताब्दी की बताई जा रही है. इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व भी काफी दिलचस्प है. जानिए क्या है महत्व....
धमतरी: जिले के दुधावा बांध के बीचों-बीच शिव जी का एक अनोखा मंदिर है. जो लगभग छठवीं शताब्दी का बताया जा रहा है. दुधावा बांध के अंदर स्थित इस मंदिर में महाशिवरात्रि के दिन भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ऐसी मान्यता है कि यहां भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. लेकिन इस मंदिर का पुरातात्विक महत्व भी काफी दिलचस्प है....
दुधावा बांध के बीच में है शिव मंदिरदेवखूंट में है छठवीं शताब्दी का शिव मंदिरछत्तीसगढ़ के धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर नगरी ब्लॉक में भुरसी डोंगरी पंचायत के आश्रित देवखूंट गांव के पास दुधावा बांध के बीचों-बीच देउर मंदिर है. यह मंदिर पांच सालों में एक बार खुलता है. इस मंदिर का निर्माण छठवीं शताब्दी में तत्कालीन राजा व्याघ्र राज ने करवाया था. तब यहां बांध नहीं था. उस समय यह स्थान देवखूंट गांव में था और यहां 5 नदियों का संगम था, जिसमें महानदी, सीतानदी, कुकरैल नदी, बालगंगा और गॉवत्स नदी शामिल है. कुछ सालों बाद कांकेर रियासत के राजा ने इस क्षेत्र को अपनी रियासत में मिला लिया उसके बाद इस क्षेत्र का विकास हुआ....
दुधावा बांध के बीच में स्थित शिव मंदिरबांध बन जाने के कारण डूब गया था मंदिर बाद में यहां बांध का निर्माण कराया गया था. बांध का निर्माण करवाए जाने के कारण ये मंदिर डूब गया, जिसके बाद देवखूंट गांव को सीतानदी के किनारे दोबारा बसाया गया. मंदिर के अंदर स्वयंभू शिवलिंग आज भी मौजूद है. शिवलिंग के अलावा अन्य देवताओं की मूर्तियां भी थी, जिन्हें ग्रामीणों ने नए देवखूंट में मंदिर बना कर स्थापित कर दिया है लेकिन शिवलिंग के स्वयंभू रूप होने के कारण उसे वहीं रहने दिया गया है...
शिव जी की पूजापुरातत्व विभाग ने की थी प्राचीन मूर्तियों को ले जाने की कोशिश...
2002 में जब बांध पूरी तरह से खाली हुआ तब दुनिया के सामने ये मंदिर आया. उस समय पुरातत्व विभाग ने प्राचीन मूर्तियों को ले जाने की पहल की थी. लेकिन तब 34 गांव के लोगों ने इसका विरोध कर दिया था. उस समय जनभावना को देखते हुए पुरातत्व विभाग पीछे हट गए. इस तरह से ये देश के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक कहा जा सकता है...
शिवलिंग का स्वयंभू रूप...
पानी कम होने पर ही होता है शिव जी का दर्शनजानकारी के मुताबिक इस मंदिर में शिव के दर्शन तभी हो पाते हैं जब बांध में पानी कम होता है. यहां तक जाने के लिए नाव का ही सहारा है. शिवरात्रि में यहां क्षेत्रवासी बड़ी संख्या में दर्शन करने पहुंचते हैं. इस मंदिर को आज तक लोगों की आस्था ने बचा कर रखा है. अगर सरकार ध्यान दें तो दुनिया के सामने इस पुरातात्विक संपदा को बेहतर ढंग से प्रस्तुत और संरक्षित किया जा सकता है.