दुनिया के कई मुसलमान अपने पवित्र ग्रंथ 'कुरान' के पवित्र शब्द 'जिहाद' का गलत इस्तेमाल करके 'कुरान' में उल्लिखित जिहाद शब्द के अच्छे रास्ते से भटक गए हैं।

Many Muslims of the world have deviated from the

दुनिया के कई मुसलमान अपने पवित्र ग्रंथ 'कुरान' के पवित्र शब्द 'जिहाद' का गलत इस्तेमाल करके 'कुरान' में उल्लिखित जिहाद शब्द के अच्छे रास्ते से भटक गए हैं।
दुनिया के कई मुसलमान अपने पवित्र ग्रंथ 'कुरान' के पवित्र शब्द 'जिहाद' का गलत इस्तेमाल करके 'कुरान' में उल्लिखित जिहाद शब्द के अच्छे रास्ते से भटक गए हैं।

NBL, 12/06/2023, Lokeshwer Prasad Verma Raipur CG: Many Muslims of the world have deviated from the good path of the word Jihad mentioned in the 'Quran' by misusing the holy word 'Jihad' of their holy book 'Quran'.

आज दुनिया में हर तरफ मुस्लिम धर्म के 'पवित्र कुरान' की पवित्र शब्द 'जिहाद' को गलत मानसिकता के साथ देखा जा रहा है, कोई इसे, लव जिहाद कोई इसे धर्मानंतरण जिहाद व कोई इस जिहाद को आतंकवाद से जोड़कर देख रहे हैं, जिसके मुह में जैसा आया वैसा ही उल्टा पुलटा बोल रहे हैं, जिहाद शब्द को जबकि जिहाद शब्द मुस्लिम धर्म के पवित्र कुरान में बड़ा ही इज्जत से लिया गया है, बल्कि मुस्लिम धर्म के बहुत से मुसलमान इस जिहाद शब्द को अपने धर्म कट्टरता के श्रेणि में रख कर देखते हैं, और दुनिया के अन्य धर्मो के मानने वाले लोग पवित्र कुरान ग्रंथ के इस पवित्र जिहाद शब्द को अनैतिक शब्द मानते हैं और इसका जिम्मेदार स्वयं मुस्लिम धर्म के मुसलमान है, जो इस जिहाद शब्द का सही मायने में देश दुनिया के अन्य धर्मो के मानने वाले लोगों को खुद मुसलमान नही बता पा रहे हैं, क्योकि बहुत से मुस्लिम धर्म के मुसलमान खुद नहीं जानते ये जिहाद का असली मायने क्या है तो आपको हमको कहा से बता पाएंगे.... 

आपको हम बताने जा रहे हैं जिहाद क्या है, और जिहाद का असली स्वरूप क्या है खुद मुस्लिम धर्म के लिए या अन्य धर्मो के मानने वालों के लिए... क्योकि इसे छुपा कर रखे हुए है और इस पवित्र जिहाद शब्द का दुरूपयो क्यों कर रहे हैं सदियों से मुस्लिम धर्म के कुछ मुसलमान मुस्लिम धर्म ग्रंथ कुरान के पवित्रता को देश दुनिया के सामने क्यों नहीं लाये जा रहे हैं, क्यों कट्टरता दिखाते हैं मुसलमान जबकि कुरान में कुछ ऐसा नहीं है, जो मुसलमान कट्टरता दिखाये। पढ़े आप आगे विस्तार से..... 

‘जिहाद’ या ‘जेहाद’ शायद वह सबसे ज्यादा विवादित और भावनाओं को भड़काने वाला शब्द है, जो पश्चिम के लोग और आज मीडिया मुसलमानों से जोड़ते हैं ।

ऐसा कोई दिन व्यतीत नहीं होता जब इस्लाम के आलोचक इस शब्द का प्रयोग न करते हों । कई टीकाकार शब्द “जिहाद’ उद्भव और उपयोग से सहमत नहीं हैं, जिन अर्थों में पश्चिमी मीडिया में प्रयोग होता है और पश्चिमी देशों के स्थायित्व और शांति को चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

मीडिया ने जिहाद को हिंसा और अत्याचार का पर्यायवाची घोषित करने की पूरी कोशिश की है और उसे अधिकतर “इस्लाम के विरोधियों के विरुद्ध युद्ध” के रूप में अनुवाद किया है ।

यदि ध्यान से देखा जाए तो अरबी की कोई और शब्दावली इससे अधिक ग़लत अर्थों में प्रयोग नहीं हुई है। जिहाद को पवित्र कुरान की शिक्षाओं की रोशनी में देखा जाना चाहिए और इस्लाम के पैगम्बर मुहम्मद (सल्ललम) के कथनों से जोड़कर देखा जाना चाहिए।

अरबी भाषा में जिहाद का अर्थ कोशिश और संघर्ष से निकला है। यह शब्द पवित्र जीवन व्यतीत करने की कोशिश, व्यक्तिगत जीवन में धार्मिक मूल्यों को अपनाना और व्यक्तिगत जीवन और अपने आप को आदर्श बनाकर इस्लामी दृष्टिकोण के प्रचार के लिए प्रयोग होता है।

इस तरह जिहाद सामान्य मुसलमानों के लिए अत्यंत सकारात्मक उद्देश्यों का वाहक है, जिसके माध्यम से वह स्वयं अपने व्यक्तित्व और समाज के कल्याण और भलाई के लिए प्रयासरत होते हैं ।

अरबी भाषा में भी सामान्य रूप से इस शब्द को प्रयास करने, दौड़-भाग करने और अपने अच्छे कर्म के लिए प्रयोग करते हैं । यही वह व्यक्तिगत जिहाद है जिसके लिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ललम) ने इस शब्द को प्रयोग किया ।

यह कोशिश, जो एक मोमिन करता है, वह आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक, राजनैतिक और शारीरिक हो सकती है। और इसके अनेक रूप हो सकते हैं। उदाहरण के लिए:

* महान जिहाद.... 

इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ललम) की एक हदीस में बताया गयाः वृहत्तर जिहाद स्वयं अपने आप के विरुद्ध संघर्ष है अर्थात अपने गर्व, अपने लोभ से लड़ना और वासनात्मक इच्छाओं पर नियंत्रण पाना है। इसके अर्थ में सामाजिक बुराइयों से लड़ना और उनको मिटाना भी सम्मिलित है।

जिहाद का उद्देश्य समाज में शांति की स्थापना के लिए हर तरह के आक्रामकता, अत्याचार, अन्याय के विरुद्ध लड़ना और उनके बदले भलाईयों, न्याय और शान्ति की स्थापना का प्रयास करना है । यदि इस्लाम शान्ति है तो जिहाद उसको प्राप्त करने का माध्यम है।

यदि जिहाद का अत्यन्त संतुलित रूप या अर्थ लेना हो तो उससे तात्पर्य व्यक्तिगत जीवन में ईश परायणता और सामाजिक जीवन में न्याय की स्थापना है।

हनैन के युद्ध से वापस होते हुए इस्लाम के पैगम्बर हजरत मुहम्मद (सल्ललम) ने अपने सहाबा को सम्बोधित करते हुए कहा था, हम एक छोटे जिहाद से बड़े जिहाद (अर्थात अपने आप के सुधार और पाशविक प्रवृत्तियों से संघर्ष) की ओर लौट रहे हैं। एक साथी ने पूछा: बड़ा जिहाद कौन सा है ऐ अल्लाह के पैगम्बर?

हजरत मुहम्मद (सल्ललम) ने उत्तर दिया: यह अपनी इच्छाओं के विरुद्ध लड़ना है, अपने गर्व को नियंत्रण में लाना है और इच्छाओं और वसवसों पर काबू पाना है। हम चाहे मुसलमान हों या गैर मुस्लिम, यह आन्तरिक संघर्ष अत्यंत कठिन होता है।

अपने विरुद्ध लड़ने के लिए अपनी कमियों पर काबू पाना और अपने अन्दर उन अच्छे गुणों को पैदा करना आवश्यक है, जो इस महान जिहाद के लिए अनिवार्य है।

* सर्वोत्तम जिहाद.... 

सबसे उच्च स्तर का जिहाद एक अत्याचारी और दमनकारी शासक के सामने सच्चाई की बात कहना है। हज़रत मुहम्मद (सल्ललम) ने अपने अनुयायियों को अत्याचार और अत्याचारियों के विरुद्ध आवाज उठाने का उपदेश दिया ।

कुरान में फरमायाः पीड़ितों के मित्र बनों और अत्याचारी शासकों के अत्याचार और उनके भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करो। 

तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमजोर पुरूषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएं करते हैं कि “हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी हैं। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर ।

(सूरः निसा, आयत 75)

* निम्न जिहाद... 

इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ललम) ने सैनिक शक्ति के प्रयोग को निम्न जिहाद घोषित किया । इस अर्थ में यह शब्द अपने बचाव और इस्लाम और मुसलमानों की रक्षा के लिए प्रयोग होता है।

चूँकि मदीना में संगठित हो रहा मुस्लिम समाज मक्का के मुशरिकों की ओर से हर पल खतरे और आक्रमण की छाया में जीवन व्यतीत कर रहा था, और इस नवगठित मुस्लिम समाज की सुरक्षा और स्थायित्व को खतरा था, इसलिए पवित्र कुरान की अनेक आयतें और हज़रत मुहम्मद (सल्ललम) के आदेशों ने इस समाज की सुरक्षा और स्थायित्व की चिंता केन्द्रीयता लिए हुए है।

आने वाले दिनों में जब इस्लाम फैलता चला गया तो उसने इन खतरों का अच्छी तरह मुकाबला करने की व्यवस्था भी कर ली और अपनी जड़ें मजबूत कर लीं ।

निम्न जिहाद की तुलना हजरत मुहम्मद (सल्ललम) ने उस सैनिक प्रतिरोध से की है जिसमें न्याय की स्थापना के लिए रक्षात्मक युक्तियाँ अपनाई जाती हैं और इस्लाम की सुरक्षा और शांति की स्थापना की कोशिश की जाती है।

यह एक स्वीकृत सिद्धांत है कि आक्रमण की स्थिति में हर सरकार और राज्य को बचाव और सुरक्षा का अधिकार प्राप्त होता है।

यह रक्षात्मक लेखों, मीडिया, द्विपक्षीय वार्ता अर्थात बातचीत, कूटनीतिक प्रयास, संधियों और शान्ति के लिए बातचीत के माध्यम से भी होता है।

लेकिन इन प्रयासों से अत्याचार समाप्त न हो तो सरकार या राज्य को अधिकार है कि वह अपने बचाव के लिए सशस्त्र प्रयास करें ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून में भी राज्यों को अपनी रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष का अधिकार स्वीकार किया गया है और लोगों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आक्रामक सेनाओं के विरुद्ध हथियार उठा लें ।

लेकिन यह मन में रखना चाहिए कि जिहाद किसी आक्रमण के लिए या दूसरे राज्यों की ज़मीनों पर अधिकार करने के लिए नहीं हो सकता ।

यह एक नैतिक कर्तव्य है जिसके लिए कुछ शर्तों का पूरा करना आवश्यक है। पहली शर्त यह है कि जिहाद प्रतिरोध के इस्लामी कानूनों के अन्तर्गत हो। इसका अर्थ यह है कि औरतों, बच्चों, कमजोर लोगों, बूढ़ों और जो युद्ध में सम्मिलित न हों, उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होगी और उनको कोई हानि नहीं पहुँचाया जाएगा ।

लोगों की संपत्ति, घर, व्यापारिक सामान, अनाज, जल भंडार और पूजा स्थलों को कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी । लोगों का अपहरण, कैदी बनाना, नागरिकों पर बिना किसी भेदभाव के आक्रमण और फायरिंग करना, कारखानों या शहरों पर बम गिराना और आग लगाने से पूरी तरह बचा जाएगा ।

इस्लाम उपरोक्त बातों से कठोरतापूर्वक मना करता है । यह सभी कार्य आतंकवाद के अन्तर्गत आएँगे । जिहाद की घोषणा किसी भी व्यक्ति का अधिकार नहीं ।

यह केवल कोई इस्लामी राज्य स्पष्ट रूप से जाने-पहचाने दुश्मन, देश या तत्वों के विरुद्ध अपनी जनता की इच्छा से करेगी । इसलिए आज के किसी तथाकथित गिरोह को यह अधिकार नहीं कि वह जिहाद की घोषणा करे ।

इसके अतिरिक्त इनकी योजनाओं में निर्दोषों की जान लेना जन यातायात को हानि पहुँचाना और जहाजों का अपहरण करना सम्मिलित है जो अत्यंत निंदनीय कार्य है। जिनका इस्लाम और जिहाद की विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं ।

इन सभी बातों की रोशनी में यह कहना उपयुक्त होगा कि कुछ शरारती और भ्रामक तत्वों की शर्मनाक हरकतों को जिहाद कहना बिल्कुल गलत होगा।

कुछ अलोकतान्त्रिक और एकाधिकारवादी शासकों द्वारा शासित सरकारों द्वारा भी जिहाद की घोषणा इसी वर्ग में आएगी । पूर्व संगीतकार Cat Stevens जो इस्लाम कबूल करने के बाद यूसुफ इस्लाम (Yusuf Islam) बन चुके हैं, कहते हैं कि: कुछ बहके हुए मुसलमानों की शरारत भरी कारवाईयों को इस्लामी जिहाद कहना कठोर भूल होगी ।

अधिकतर मीडिया ऐसे लोगों को ही इस्लाम का प्रवक्ता और प्रतिनिधि बनाकर प्रस्तुत करता है। यह ऐसा ही है जैसे कि किसी नशे में धुत ड्राइवर की खतरनाक ड्राइविंग को कार की खराबी और कमी बताया जाए।

इस्लामी दृष्टिकोण के अनुसार सैनिक प्रतिरोध के नियम होते हैं । प्रथम ऐसे युद्ध की घोषणा नियमित रूप से सरकार ही करेगी जो अपना संवैधानिक अधिकार रखती हो।

दूसरे ऐसी सरकार का इस्लामी सिद्धांतों, युद्ध नियमों और सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों से अवगत होना आवश्यक होगा । इस बात की भी समझ होनी चाहिए कि इन नियमों की अवहेलना करने की स्थिति में ऐसा प्रतिरोध जेहाद की परिभाषा में नहीं आएगा ।

मुसलमानों में से कुछ भटके हुए तत्वों की शरारतपूर्ण हरकतों को जिहाद समझना सरासर अन्याय होगा। इस्लाम की उपयुक्त समझ मात्र उसके नियमों के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है जिसका स्पष्टीकरण कुरान और पैगम्बर मुहम्मद (सल्ललम) की हदीसों में कर दिया गया है।

* सामाजिक जिहाद.... 

आज के युग में सिविल सोसाइटी संगठनों की गतिविधियों को सामाजिक जिहाद कहा जा सकता है । यह स्वयंसेवी संगठन समाज से सामाजिक बुराईयों को मिटाने के संघर्ष में लगे हुए हैं।

यदि कोई सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा के विकास, शैक्षिक जागृति और लोगों के व्यवहार में परिवर्तन के लिए संघर्ष करता है, वातावरण की सुरक्षा, बच्चों के बीच सत्र में स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति को मिटाने, मदरसों के पाठ्यक्रम में संशोधन और उनका आधुनिकीकरण, नशे के आदी लोगों का सुधार, देहात के ऋणी व्यक्तियों की मुक्ति, निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के बच्चों के लिए उनके प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना, यात्रियों के लिए बसेरे और सराय का निर्माण, वक्‍फ संपत्तियों की रक्षा, बेघर लोगों के लिए आवासीय मकान उपलब्ध कराना, नाबालिग कैदियों का सुधार और काउंसलिंग आदि सभी सामाजिक जिहाद में सम्मिलित हैं इसे ही जिहाद कहते है। 

इस्लाम की इस मौलिक विचारधारा का यह स्पष्टीकरण आज के आधुनिक संसार में नयी रोशनी का प्रवाह करता है। सभी मुसलमान इस बिन्दु से परिचित हैं कि इस्लाम पर अमल, नमाज, रोज़ा, हज और जकात पर आधारित नहीं ।

जीवन का हर कर्म जो अल्लाह के गुणगान से भरा हुआ हो वह उपकार और इबादत है। कुरान स्पष्ट शब्दों में कहता है, अल्लाह पर ईमान लाओ और अच्छे कर्म करो।

अतः हर तरह का उपकार, भला कर्म, आतिथ्य सत्कार और दान का परामर्श दिया गया है। जबकि अन्याय के विरुद्ध संघर्ष सामाजिक जिहाद में सम्मिलित हैं।

* पवित्र कुरान का कहना है.... 

“ईमान लाओ अल्लाह पर उसके पैगम्बर पर और जिहाद करो अल्लाह के मार्ग में अपनेमालों से और अपनी जानों से । यही तुम्हारे लिए बेहतर है यदि तुम जानो ।” (सूर:सफ्फ, आयत 11)

मुसलमान को यह निर्देश दिया गया है कि वह अपने जीवन, संसाधन और अपनी संपत्ति प्रत्येक को अच्छे काम और उद्देश्य में खर्च करे और उनको कल्याणकारी योजनाओं में लगाए ।

अपने व्यापक अर्थों में अल्लाह के मार्ग में संघर्ष का अर्थ हमारे सारे संघर्ष को और अपने मालों को मनुष्यों की कठिनाइयों को हल करने के लिए, शोषण के अंत के लिए, गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता और आपराधिक गतिविधियों की रोकथाम और अंत के लिए प्रयोग करना भी सामाजिक जिहाद में सम्मिलित है।

इन सभी के लिए निरन्तर संघर्ष और सभी व्यक्तियों की भागीदारी आवश्यक है ।

हमें यह देखना होगा कि हममें से कितने लोग ऐसे हैं जो अपने दरवाजे से आगे बढ़कर पूरी ईमानदारी के साथ अपने आप को इन कामों और सामाजिक बुराइयों को मिटाने के लिए प्रस्तुत करना चाहते हैं ।

हम इस वास्तविकता को अधिकतर भूल जाते हैं कि हमारे सामाजिक संघर्ष का पहला मैदान हमारे आस-पास का समाज है।

हमारा पड़ोस और हमारी गली, गांव और मोहल्ले हैं।

मिस्र के एक बुद्धिजीवी हसनुल बनना शहीद ने कहा था किः 

““अल्लाह की राह में जान देना बहुत कठिन है लेकिन अल्लाह के बताए हुए तरीके पर जीवन व्यतीत करना और भी कठिन है।”

इस्लाम का यही संदेश है कि हर इंसान अल्लाह के बताए हुए तरीके पर जीवन व्यतीत करे और इसी में उसकी सफलता निहित है।

नोट: यह लेख किसी व्यक्ति या उनके धर्म की आस्था को चोट पहुँचाने के लिए नहीं लिखा गया है, बल्कि जन जागरण व समाज में फैले बुराइयों को मिटाने के लिए यह लेख लिखा गया है,जो नियम कानून के दायरे में व बहुत से अनुभवी व्यक्तियो के परामर्श से यह लेख लिखा गया है, जो समाज को नया दिशा देगी।