र्ईर्ष्या और द्वेष ये व्यक्ति के मन के भाव है और अज्ञान स्वरुप पैदा होते है।ईर्ष्या और द्वेष मनोभाव में क्या अंतर है?..
Jealousy and malice are the feelings of a person's mind




NBL, 24/09/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. Jealousy and malice are the feelings of a person's mind and are born in the form of ignorance. What is the difference between jealousy and malice?..
ईर्ष्या व द्वेष जिस इंसान के अंदर ज्यादा मात्रा में होते हैं, वही से विनाश शुरू होता है, अपना उनके भी और दूसरों का भी और ऐसे व्यक्ति को आप नास्तिक व अज्ञानी व मानवीय मूल्यों के लिए खतरा मान सकते है, उनके सभी धर्म कर्म आडम्बर है, पढ़े विस्तार से....
ईर्ष्या और द्वेष ये व्यक्ति के मन के भाव है और अज्ञान स्वरुप पैदा होते है। जो व्यक्ति अज्ञानी होती है ये दोनों में से एक न एक भाव ज्यादातर देखने को मिल जाता है।
ईर्ष्या और द्वेष में अंतर समझने के लिए इनका अर्थ आपको पहले समझना चाहिए...
द्वेष -
आपने राग और द्वेष का नाम तो सुना ही होगा। राग के कारण जन्म लेती है अपेक्षाये और जब अपेक्षा टूट जाती है तो उत्पन्न होता है द्वेष ।
और ये भी सत्य है की अपेक्षाओ की नियति ही है टूट जाना । फिर वो आज टूटे या कल । तुम देखते हो अधिकांश पति पत्नी कुछ समय बाद एक दूसरे से द्वेष रखने लगते हैं , यहाँ तक की माता पिता अपने पुत्रो से, और पुत्र अपने माता पिता से द्वेष भाव रखने लगते है। वैसे ही एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से द्वेष रखते है, एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से द्वेष रखते हैं। एक देश दूसरे देश से द्वेष रखते है।
अनुकूल परिस्थिति (जीवन में सुख) के आने पर हमें उसके साथ राग हो जाता है और हम चाहते हैं कि यह परिस्थिति हमेशा बनी रहे, कभी हमसे अलग न हो। अपेक्षाएं हो जाती है। यहाँ व्यक्ति सभी से प्रेम करता है।
इसी प्रकार प्रतिकूल परिस्थिति के आने पर हमें उसमे द्वेष होता है और हम चाहते हैं कि यह कभी न आए। ऐसा व्यक्ति सभी से नफरत और डर का भाव रखता है।
ऐसा व्यक्ति सामने वाले को हमेशा सिर्फ इसलिए झुकाने पर तुला रहता है की कही वो झुक गया तो सामने वाला उस पर सवार न हो जाए।
जबकि सत्य यह है की गुणवान व्यक्ति हमेशा पहले से ही हर किसी के आगे झुका हुआ या नतमस्तक रहता है।
उदाहरण - जैसे श्री कृष्ण भगवान का युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आये सभी मेहमानो के चरण धोने का काम लेना।
ईर्ष्या -
ईर्ष्या रखने वाला व्यक्ति अपने ही प्रतिद्वंदी से शत्रुता कर बैठता है। विरोध और वैमनस्य या शत्रुता इतनी बढ़ जाती है की वह अपने प्रतिद्वंदी की जान भी लेने की योजना बनाता रहता है।ऐसा ब्यक्ति ईर्ष्या अपने मन को सुखी या प्रसन्न करने के लिए करता है। लेकिन यह धोखेवाजी की चरमसीमा होती है जो द्वेष के बाद ईर्ष्या के द्वारा उत्त्पन्न होती है।
इस प्रकार के व्यक्ति से गलत कार्य हो जाता है तब किसी किसी व्यक्ति के हृदय से ईर्ष्या का पर्दा हटता है। लेकिन कुछ लोगो को गलत करने के बाद भी पता नहीं चल पता है।
ये एक मानसिक रोग है जो ज्यादातर भगवान के नित्य जप से दूर रहते है उन्हें होता है।
उदाहरण - पांडवों से ईर्ष्या रखने वाला दुर्योधन जब युद्ध के बाद, पांडवों के पुत्रों के कटे हुए सर अश्वत्थामा के हाथ में देखता है तो ईर्ष्या का कुछ पर्दा हटता है और दुखी होकर प्राण त्याग देता है। अर्थात ईर्ष्या दूसरों को नहीं खुद को जलाती है।
ईर्ष्या और द्वेष मनोभाव के कारण ही आज विश्व युद्ध का चुनाव कर रहे हैं, और इन मनोभावॉ के साथ साथ अपना संस्कृति व सभ्यताओ को मिटाने में लगा है, और इससे कितने लोगों को घर से बेघर होना पड़ रहा है, जबकि आज विश्व में शांति की जरूरत है, बल्कि उल्टा आज अशांत होकर छोटे छोटे बातों को लेकर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के उपर हमला कर रहे हैं, आघात पहुँचा रहे है, और इस भयावह रुप को धर्म का नाम दे रहे हैं, जबकि धर्म हमें मानवता वाद सिखाती व बताती है, अब लोग धर्म की सही मूल को त्याग रहे हैं और अधर्म को अपना कर लोग अपने आप को बदल रहे है। और इन्ही सब कारणों से अपना खुद का विनाश होता हैं। कर भला तो हो भला जब आप किसी के भलाई नहीं कर रहे हैं तो आपका भला भी कहाँ से होगा।
जो ईश्वर से डरते है, और सच्चे मन से धर्म को मानते व जानते है उनको ही पता है ईश्वर पैदा करने वाले व मारने वाले दोनों ही हैं, प्रकृति के अनुसार वही मनुष्य किसी अन्य रोगो को नहीं पालते जिसे हम ईर्ष्या और द्वेष कहते हैं।