रायगढ़ मामले में सुकमा व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं में दिखा रोष-तहसीलदार को सौंपा ज्ञापन

रायगढ़ मामले में सुकमा व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं में दिखा रोष-तहसीलदार को सौंपा ज्ञापन

सुकमा - राजस्व अधिकारियों एवं उनके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा राजस्व मामलों के कार्यवाहियों में पक्षकारों की ओर से भाग लेने वाले . अधिवक्ताओं के साथ असम्मानजनक व्यवहार करने से निवारित रहने के लिए दिशा निर्देश जारी करने के सम्बंध में सुकमा व्यवहार न्यायालय के अधिववक्ता कैलाश जैन,आदित्य पांडे, बिच्चेम पोंदी,पी.भीमा, सुश्री दीपिका शोरी,मुन्ना नायक,राजेन्द्र मड़कम,रेशमा नाग ने मुख्य सचिव छत्तीसगढ़ राज्य के नाम सुकमा तहसीलदार को ज्ञाप सौंपा ।  

सौंपे गए ज्ञापन में अधिवक्ताओं ने रायगढ़ के राजस्व न्यायालय की घटना का उल्लेख करते हुए लिखा कि विगत दिनों रायगढ़ में राजस्व न्यायालय के पीठासीन अधिकारी,कर्मचारियों एवं अधिवक्ताओं के मध्य अवांछनीय घटना हुई है , जिससे राजस्व न्यायालयों की छवि धूमिल होने के साथ ही अधिवक्ता पेशे से जुड़े सदस्यों के सम्मान को भी ठेस पहुंची है । 

 

राजस्व न्यायालय से पीठासीन अधिकारी रहते हैं गायब

उन्होंने राजस्व न्यायालय के पीठासीन अधिकारियों पर आरोप लगाते हुए लिखा है कि राजस्व न्यायालयों के जिन मामलों में पक्षकारों की ओर से अभिभाषकों द्वारा पैरवी किया जाता है वे अभिभाषक न्यायालय में निर्धारित समय पर उपस्थित होते हैं , लेकिन पीठासीन अधिकारी उपलब्ध नहीं रहते हैं , वे कब पीठ में आकर आसन ग्रहण करेंगे , इसकी भी जानकारी संबंधित स्टाफ को नहीं रहता है , ऐसी स्थिति में उन अधिवक्ताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिन्हें अन्य न्यायालयों में भी पैरवी के लिए उपस्थित होना होता है . इस स्थिति में भी कई अधिवक्ता अनिश्चित समय के लिए राजस्व न्यायालयों में इस प्रतिक्षा में रहते है कि अधिकारी आ जाते हैं तो मामले में कुछ प्रगति होगी , लेकिन खेद का विषय है कि ज्यादातर राजस्व अधिकारी स्वेच्छाचारी है , अपनी मनमर्जी से किसी भी समय अपने कार्यालय / न्यायालय में आते है और चेम्बर में ही काम निपटाते है , उन्हें राजस्व मामलों में सुनवाई करने की कोई रूचि नहीं होती है , विशेषकर उन मामलों में , जिनमें कि पक्षकार की ओर से कोई अभिभाषक पैरवी कर रहे हो , 

 

पक्षकारों को करते हैं गुमराह

 

पक्षकारों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए लिखा कि अप्रत्यक्ष रूप से ये पीठासीन अधिकारी एवं उनका स्टाफ , पक्षकारों को इस हेतु प्रेरित करते हुए नजर आते है कि उन्होंने अपनी ओर से अभिभाषक क्यों नियुक्त किया है , वे अभिभाषक के बिना ही मामले का जल्दी निराकरण कर देते । जब पक्षकार न्याय पाने के लिए अपनी ओर से ऐसे राजस्व न्यायालयों में अभिभाषकों को ले जाता है , व जब अभिभाषक , राजस्व न्यायालयों में जाते है , तब पीठासीन अधिकारी उपलब्ध नहीं होने से अभिभाषकों को कई बार लाना ले जाना पड़ता है . इन सब परिस्थितियों को देखकर पक्षकारों के मन में यह भाव उत्पन्न हो जाता है कि उन्होंने अभिभाषक को अनावश्यक नियुक्त किया है , उनका काम अभिभाषक के न होने पर राजस्व अधिकारियों के द्वारा एवं कर्मचारियों के द्वारा रूचि लेकर संपन्न किया जाता । 

 

व्हीआईपी की आवभगत ज्यादा मूल कार्य को करते हैं अनदेखा

 

उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया है कि राजस्व न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों का ज्यादातर समय अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों के कार्यक्रमों में आव- भगत , दौरा इत्यादि व प्रशासनिक कार्यों में व्यतीत होता है , इस दौरान वे इस बात की परवाह नहीं करते है कि उनका राजस्व न्यायालय भी है , जहां पक्षकार एवं अधिवक्ता , उनके लिए प्रतिक्षारत होगे । पीठासीन अधिकारियों के इस तरह ज्यादातर समय कार्यालय से बाहर रहने से स्टाफ भी स्वेच्छाचारी हो गया है , उन्हें अपने अधिकारी का कोई भय नहीं है , उन्हें अपने संगठनों पर बहुत भरोसा है अमुमन राजस्व अधिकारी भी उनके गलत कार्यवाहियों को प्रोत्साहित करते हैं । जैसा कि सर्वविदित है कि अधिवक्ता , का एक अधिकारी होता है , न्यायदान में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है , उसके सहयोग से ही न्याय

व्यवस्था निरंतर एवं सुगमता से गतिशील रहता है , देश के स्वतंत्रता के लिए तत्कालिन अभिभाषकों ने अग्र भूमिका निभाई है . ऐसे पेशे से जुड़े व्यक्ति की गरिमा के अनुकूल व्यवहार अपेक्षित होता है , तब ही दूसरे पक्ष से भी सम्मान की अपेक्षा संभव है , लेकिन अभिभाषकों को हेय नजर से देखे जाने से उन्हें ग्लानि होती है । 

 

विधि के ज्ञान के अभाव में जल्द निराकरण नहीं होते राजस्व मामले

 

राजस्व मामलों के लिए राजस्व अधिकारी ही न्यायाधीश ) के रूप में सेवाएं देते है , लेकिन विधि स्नातक नहीं होने के कारण उनके मन में भी वरिष्ठ एवं अनुभवी अधिवक्ताओं के समक्ष कार्यवाहियां सम्पन्न कराने में संकोच होता है , इस ज्ञान की कमी के कारण ही कम संख्या होने पर भी राजस्व मामलों का निराकरण शीघ्रता से अथवा प्रतिसुनवाई नियमित रूप से कार्यवाही संपन्न नहीं होती , इसलिए राजस्व न्यायालयों को भी व्यवहार न्यायालय का दर्जा देकर न्यायाधीशों की राजस्व श्रेणी तैयार किया जा सकता है । 

 

जब तक दोषी क्षमा नहीं मांगते राजस्व न्यायालय का करेंगे बहिष्कार

 

सुकमा व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं ने यह भी उल्लेख किया है कि रायगढ़ में हुई घटना से हम सभी अधिवक्ता व्यथित है , जिन अधिकारियो एवं स्टाफ द्वारा अधिवक्ताओं के साथ अभद्र व्यवहार किया गया है , उनके द्वारा अब तक क्षमा भी नहीं मांगी गई है , इसलिए दन्तेवाड़ा जिला अधिवक्ता संघ के समस्त सदस्य आगामी निर्णय पर्यन्त राजस्व न्यायालयों की कार्यवाहियों में भाग नहीं लेने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया है ।