संसार में अगर कोई चीज शाश्वत(eternal) है, तो वह केवल " परम सत्य " है. यह एक ऐसी शक्ति है जो किसी भी कालखंड में नष्ट नहीं होती है, इसे पढ़े जरूर।

If anything in the world is eternal, it is only the ultimate truth.

संसार में अगर कोई चीज शाश्वत(eternal) है, तो वह केवल
संसार में अगर कोई चीज शाश्वत(eternal) है, तो वह केवल " परम सत्य " है. यह एक ऐसी शक्ति है जो किसी भी कालखंड में नष्ट नहीं होती है, इसे पढ़े जरूर।

NBL, 12/09/2022, Lokeshwer Prasad Verma,. If anything in the world is eternal, it is only the ultimate truth.  This is such a power that does not get destroyed in any time period, definitely read it.

ब्रम्हांड के हर कण कण में बसा हुआ है सत्य, सत्य में,ही जीव, धर्म, ज्ञान और विज्ञान समाहित हैं, इसे हम इंसान स्वार्थ हित के लिए अपमानित किया  जिसका नाम असत्य है, माया, मोह, लोभ, काम, अधर्म,पाखंड जो सत्य को असहाय बनाती है, जो सत्य में अडिग रहता है, उनके सामने असत्य नतमस्तक हो जाते हैं, इसलिए हम इंसान को सत्य के राह पर चलना चाहिए जो अमृत के समान अमिट है, जैसे ज्ञानी कहते है.. मन चंगा और कठौते मे गंगा, सत्य ही मानव जाति का आभूषण है, सत्प के द्वारा आप सब कुछ प्राप्त कर सकते है, पढ़े विस्तार से... 

सत्य शाश्वत है. .. 

संसार में अगर कोई चीज शाश्वत(eternal) है, तो वह केवल परम सत्य है. यह एक ऐसी शक्ति है जो किसी भी कालखंड में नष्ट नहीं होती है। ब्रह्मांड का प्रत्येक नियम सत्य की बुनियाद पर टिका हुआ. ईश्वर द्वारा बनाया गया कोई भी नियम कभी भी विपरीत कार्य नहीं करता है। सूर्य पूर्व दिशा में निकलता है तो, वह सदैव पूर्व में ही निकलेगा। आप सभी ने एक बात नोट की होगी कि कोई भी प्राकृतिक नियम(गुरुत्वाकर्षण, घर्षण, ग्रह गति, आदि विज्ञान के नियम) कभी विकृत नहीं होते, ये नियम जैसे भूतकाल में व्यवहार करते थे, वर्तमान में भी ठीक उसी प्रकार कार्य करते है। विज्ञान की ये क्रियाएँ परमात्मा द्वारा बनाये गये नियमों का पूर्णता से पालन करती है और जब तक सृष्टि रहती है सदैव एक समान व्यवहार करती है। सभी ईश्वरकृत चीजें व नियम प्रत्येक युग में एक जैसी बनी रही यही संसार की  शाश्वता है। सत्य शाश्वत है इसलिए इसे मिटाया नहीं जा सकता है, उपनिषद कहता है- सत्यमेव जयते ( सत्य की सदैव विजय होती है )... 

सत्य ही धर्म है... 

हम सभी लोग प्रतिदिन धर्म के विषय में कुछ न कुछ सुनते रहते है, परंतु बहुत कम व्यक्तियों का धर्म का सही अर्थ पता होता है। धर्म कोई मत पंत नहीं होता, अपितु धर्म सत्य का ही पर्यायवाची होता है। धर्म की उत्पत्ति सत्य के माध्यम से होती है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा कि जब जगत में धर्म की हानि होती है, तो वे बुराई का अंत कर धर्म की रक्षा व पुनर्स्थापना करते है। इसलिए धर्म सत्य का ही दूसरा रूप है; संसार में सभी लोगों का कोई न कोई धर्म होता अवश्य होता है. उदाहरण के लिए पिता का धर्म है अपनी संतान  का सही ढ़ंग से पालन पोषण करना और उनका चरित्र निर्माण करना, राजा का धर्म प्रजा की प्रत्येक स्थिति में रक्षा करना, विद्वानों का धर्म समाज में सही शिक्षा का प्रचार करना होता है।

जन्म व मृत्यु सत्य है. .. 

यह बात प्रत्येक स्थिति में सत्य है कि जिस जीव का जन्म हुआ है, उसे मृत्यु भी अवश्य आयेगी। संसार में आज तक कोई जीव ऐसा नहीं है जो सदैव जीवित रहे. जिसका जन्म हुआ है उसे मृत्यु भी आयेगी। वास्तव में जब कोई जीवात्मा पृथ्वी या अन्य सृष्टि में जन्म लेती है तो, एक बात बिल्कुल निश्चित हो जाती है कि जन्म लेने वाला एक दिन मृत्यु को प्राप्त होगा। सही अर्थ में जिस क्षण कोई जीव जन्म लेता है उसी क्षण से वह मृत्यु की यात्रा करना आरम्भ कर देता है। इसलिए जिसका जन्म होता है वह निश्चित रूप में एक न एक दिन अवश्य मरता है, मृत्यु लोक में सब कुछ नश्वर  है. यही जीवन का सत्य है।

सत्य दया है. .. 

संसार असभ्य एवं दुष्ट लोगों से भरा पड़ा है, दुनिया में बहुत कम ऐसे लोग होते है जिनके भीतर करुणा गुण विराजमान होता है। जब व्यक्ति की अंतरआत्मा सत्य विद्या द्वारा अज्ञान को मिटाकर ज्ञान प्राप्त करती है तो मनुष्य के हृदय में करूणा भाव उत्पन्न होता है तभी दया का जन्म होता है। धर्म कहता है कि सभी जीवों के अन्दर एक जैसी चेतना एवं प्रेरणा है, इसलिए मनुष्य को सभी जीवो पर दया करनी चाहिए। जैसा व्यवहार-अनुभव व्यक्ति स्वयं के लिए चाहता है, दूसरे व्यक्तियों अथवा जीवों के प्रति भी उसे ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। किसी भी राष्ट्र के राजा एवं प्रजा का कर्तव्य है कि कमजोर, पीडित, दमित और सज्जनों के दुखों का निवारण करने का सदैव प्रयत्न करते रहे, लेकिन याद रखें कि दुष्ट व्यक्ति दया के पात्र नहीं होते, इसलिए बुद्धिमानी पूर्वक सुपात्र व्यक्तियों की सहायता करें।

कर्तव्यों का पालन सत्य है. .. 

अपने पारिवारिक एवं सांसारिक कर्तव्यों को सही रूप से पहचान कर उन्हें पूर्ण करने की चेष्टा करना सभी लोगों का धर्म है; माता पिता का बच्चों के प्रति, बच्चो का बड़ों के प्रति, एवं शिक्षक-छात्र एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों का पालन करते हुए श्रेष्ठ समाज का निर्माण करे, यही सत्य का गुण है। मनुष्य को चाहिए कि वह पूर्ण पुरुषार्थ करता हुआ अपने दायित्वों को निभाये, एक बात सदैव ध्यान रखें कि कर्तव्य केवल जन मानस की सेवा करना नहीं अपितु, प्रकृति व अन्य जीव की सेवा तथा संरक्षण करना भी सभी मनुष्यों का कर्तव्य होता है। यह जीवन चक्र मनुष्य, पशु पक्षी, जानवर, प्रकृति एवं अन्य छोटी मोटी सभी जीवो के योगदान से चलता है, मात्र मनुष्य के द्वारा नहीं। ब्रह्माण्ड की वस्तुओं व संसाधनों भोग पर केवल मनुष्य को अधिकार नहीं, अपितु अन्य सभी जीवों का भी मनुष्य के बराबर अधिकार है। इसलिए प्रकृति का संतुलन बना कर रखना सभी लोगों का कर्तव्य है। तभी एक खुशहाल जीवन की कल्पना की जा सकती है।

सत्य स्वयं ईश्वर है.... 

मात्र ईश्वर व जीव को छोड़कर संसार की सभी वस्तुएं नश्वर है, साधारण शब्दों में कहे तो परमेश्वर अविनाशी है, वह सब सत्य विद्याओं एवं ज्ञान का स्त्रोत है; अतः सत्य का लक्ष्य परमपिता परमात्मा के द्वारा बताये गये मार्ग को श्रद्धा पूर्वक अनुसरण करना और समाज में सत्य विद्या का प्रचार करना है। परमेश्वर सम्पूर्ण, सर्व शक्तिशाली और शाश्वत है, इसलिए अपने सामर्थ्य का प्रयोग कर इस ब्रहृाड की रचना करते है ताकि जीव, जगत में कर्म करते हुए संसार के सुख दुख भोग सके। इसलिए सभी विद्वान जन ईश्वर को अपना आराध्य मानकर उनकी भक्ति करते है। ईश्वर कर्म के अनुसार मनुष्यों को उनका फल प्रदान करता है. सही गलत में भेद की शक्ति ईश्वर ने मनुष्य को प्रदान की है। ईश्वर चाहता है कि लोग बुरे मार्ग को त्याग करें एवं सत्य मार्ग को धारण करे। सत्य मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को  परब्रह्म पर पूर्ण विश्वास होता है अतः ऐसे व्यक्ति निडर होते है और वीरतापूर्वक अपना जीवन आनंद से व्यतीत करते है।

सत्य का उद्देश्य क्या है. .. 

अधर्म व दुष्टों का दमन करना एवं बुराई को नष्ट कर संसार में शांति की स्थापना करना सत्य का वास्तविक उद्देश्य है; सत्यवादी सदैव दुर्जन मनुष्यो का पूरे जोर से खंडन करते है, अगर किसी व्यक्ति को सत्य कथन बोलने पर मृत्यु का सामना करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। शास्त्रों में मनुष्य जाति को सत्य धर्म पालन करने का आदेश दिया गया है, वास्तव में धर्म का जन्म सत्य से ही होता है। सभी भारतीय शास्त्रों का मूल केन्द्र सत्य से ही जुड़ा हुआ, अध्यात्म विज्ञान सत्य के मार्ग पर चलकर परमआनंद पूर्ण जीवन व्यतीत करने की कला सिखाता है। हमें यह बात मस्तिष्क में रख लेनी चाहिए कि, सत्य मार्ग पर चलना सरल नहीं होता है, यह मार्ग तो तीव्र प्रज्वलित अग्नि में अपनी आहुति देने के समकक्ष है। दूसरे अर्थ में कहे तो यह तलवार की धार पर चलने के समान है. सत्य की स्थापना एवं उसका रक्षण करने वाले व्यक्ति एक वीर योद्धा होते है, इसलिए सभी सभ्य व्यक्तियों का कर्तव्य है कि वे प्रत्येक स्थिति में सत्य की रक्षा करते रहे ; अगर समाज में सत्य की हानि होती है तो लोगों में भ्रष्टाचार, षड्यंत्र, चोरी लूटपाट, और बुराई आदि अवगुणों का वर्चस्व स्थापित हो जाता है। जिससे सामान्य जनता का जीवन दुखों व यातनाओं से भर जाता है।

सत्य को कैसे प्राप्त किया जा सकता है. .. 

किसी भी व्यक्ति को सत्य प्राप्त करने के लिए अच्छे संस्कारों को अपने आचरण में समाविष्ट करना होता है, संस्कार से विचार उत्पन्न होता है और यहीं विचार मनुष्य का चरित्र निर्माण करते है। इसलिए सत्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए  मूल शास्त्रों का विवेक पूर्वक अध्ययन करना एवं सच्चे गुरु के बताये गये मार्ग का अनुसरण करना सर्वश्रेष्ठ साधन है। 

क्या सत्य को मिटाया जा सकता है. ... 

नहीं, कभी नहीं. सत्य एक ऐसा प्रकाश है जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है। इतिहास गवाह है कि दुर्जनो ने सत्य को नष्ट करने की कोशिश की परंतु वे सत्य को नष्ट नहीं कर सके। हालांकि जब बुराई का बोलबाला चरम पर होता है तो सत्य कुछ समय के कमजोर दिखाई देता है, किन्तु वास्तव में वह पहले जितना ही शक्तिशाली होता है और सही स्थिति आने पर पुनर्स्थापित हो जाता है।