निराकार, साकार और अवतार ये हैं मनुष्य की पूजा, उपासना और ध्यान के तीन भगवान , इसे जाने और आगे पढ़े।

निराकार, साकार और अवतार ये हैं मनुष्य की पूजा, उपासना और ध्यान के तीन भगवान , इसे जाने और आगे पढ़े।

 NBL,. 08/03/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. निराकार, साकार और अवतार ये हैं मनुष्य की पूजा, उपासना और ध्यान के तीन भगवान.जब- जब धरा पर धर्म की हानि होने लगती हैं तब तब निराकार ईश्वर अवतार लेकर सज्जनों की रक्षा करते हैं और अतिताईयो की नाश करते हैं, पढ़े विस्तार से...। 

निराकार ईश्वर... 
हम लोग सदियों से यह बात कहते और सुनते आ रहे कि परमेश्वर निराकार है प्रकाश स्वरूप हैं, निराकार का मतलब जो सृष्टि के कण-कण में व्यापत हैं, सिद्ध पुरुष सर्वदा सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी न्यायकारी परमात्मा को सर्वत्र जानता और मानता है वह पुरुष सर्वदा परमेश्वर को सबके बुरे-भले कर्मों का द्रष्टा जानकर एक क्षणमात्र भी परमात्मा से अपने को अलग न मानते हुए कुकर्म करना तो बड़ी दूर का बात रही वह मन में भी कुचेष्टा नहीं कर सकता । क्योंकि वह जानता है जो मैं मन, वचन, कर्म से भी बुरा काम करूंगा तो इस अन्तर्यामी निराकार ब्रह्म के न्याय से बिना दण्ड पाए कदापि नही बचूंगा। इसलिए ईश्वर को निराकार रूप में भजने वाले उपासक साधक कण कण में विराजमान मानते हुए शुद्ध, पवित्र जीवन जीते हुए सबकों श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते रहते हैं। भगवान एक अनंत अगाध समुद्र की भाँती है, जिस साधक ने जितनी डुबकी लगाई उसने परमात्मा का उतना ही बखान किया।
श्रीराम चरित्र मानस में भी ऐसा उल्लेख आता है कि राम निराकार हैं या राजा दशरथ के पुत्र (साकार) जिसका निराकरण स्वयं भगवान शंकर जी ने बालकाण्ड में किया हैं ... जेही इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान ।सोई दसरथ सुत भगत हित कोसलपति बगवान ।।

साकार ईश्वर. .. 

कहा जाता हैं कि इस अखिल विश्व ब्रह्मांड व जीव मात्र को संचालित करने वाली सूक्ष्म शक्ति हैं जो दिखाई तो नहीं देती पर उसके होने का अनुभव बराबर होता रहता हैं। लेकिन परमात्मा का साकार रूप देखना हो तो यह विश्व ही परमेश्वर माना जा सकता है। साकार रूप में ईश्वर के दर्शन करना बड़ा ही सहज और सरल हैं, साकार अर्थात प्राणी मात्र और कहा जाता है कि प्राणी मात्र में भी ईश्वर बालक, दुःखी जन में ईश्वर का वास होता हैं इसलिए साकार ब्रह्म के उपासक पीड़ित मानवता की सेवा को ही पर्मात्मा की पूजा, जप, तप ध्यान आदि मानते हैं। भगवत गीता में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने सातवें अध्‍याय से ग्‍यारहवें अध्‍याय तक तो विशेष रूप से सगुण भगवान की उपासना का महत्त्व दिखलाया है। ग्‍याहरवें अध्‍याय के अंत में सगुण-साकार भगवान की अनन्‍य भक्ति का फल भगवत्‍प्राप्ति बतलाकर ‘मत्‍कर्मकृत्’ से आरम्‍भ होने वाले इस अंतिम श्लोक में सगुण-साकार-स्‍वरूप भगवान के भक्त की विशेष-रूप से बड़ाई की। समग्र ब्रह्म का दर्शन न सम्भव है न आवश्यक न उपयोगी। ईश्वर दर्शन मानव-प्राणी की-अन्य प्राणधारियों की सत्प्रवृत्तियों के रूप में करना चाहिए। उस दिव्य प्रेरणा से सम्पन्न प्रकाश को ही परमेश्वर का साकार स्वरूप कह सकते हैं। वेद मंत्र गायत्री मंत्रः- में उसी सविता देवता को वरेण्य-वन्दनीय कहा गया है। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

अवतार ईश्वर
इस सृष्टि में जब धर्म की हानि हानि होती है, पापाचार, अधर्म, अनाचार जैसे दुष्टों का बोलबाला बढ़ता है एवं साधु सन्तों, ऋषियों , सज्जनों के उद्धार लिए उन पर हो रहे अत्याचारों को खत्म करने के लिए तब-तब ईश्वर धर्म की स्थापना करने और धरती से दुष्टों का संहार करने के लिए चाहे श्रीराम हो, श्रीकृष्ण हो, श्री वानम, नरसिंह, वराह या कश्यप अवतार हो के रूप में अवतार लेते हैं, इस धरा धाम को पापियों से मुक्त कर धर्म की स्थापना करते हैं।
राम चरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं कि-
जब-जब होई धरम के हानि....!
बढहिं अधम असुर अमिभानी...!!
तब-तब प्रभु धर विविध शरीरा...!
हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा......!!
और इसी अवतार परंपरा के बारे स्वयं गीताकार योगेश्वर ने गीता में कहा कि-

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
भावार्थ : साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।
इससे स्पष्ट होता है कि ईश्वर धरती पूत्र बनकर हर युग में लेते रहे हैं और कहा जाता है कि इस कलयुग में भी अपने सज्जन भक्तों का उद्धार करने के लिए लेंगे।