CG अनोखी परंपरा VIDEO : आदिकालों से चली आ रही परपंरा ,छत्तीसगढ़ की इस अदालत में लगती है देवी-देवताओं की क्लॉस, तत्काल फैसला सुनाकर मिलती है दोषी को सजा ,भक्ति का उमड़ पडता है जन सैलाब, सम्मिलित होते हैं सात परगना…पढ़िए पूरी खबर,देखे विडियो….

Chhattisgarh Unique Tradition VIDEO: Tradition going on from time immemorial, in this court of Chhattisgarh, the Claus of Gods and Goddesses takes place

CG अनोखी परंपरा VIDEO : आदिकालों से चली आ रही परपंरा ,छत्तीसगढ़ की इस अदालत में लगती है देवी-देवताओं की क्लॉस, तत्काल फैसला सुनाकर मिलती है दोषी को सजा ,भक्ति का उमड़ पडता है जन सैलाब, सम्मिलित होते हैं सात परगना…पढ़िए पूरी खबर,देखे विडियो….
CG अनोखी परंपरा VIDEO : आदिकालों से चली आ रही परपंरा ,छत्तीसगढ़ की इस अदालत में लगती है देवी-देवताओं की क्लॉस, तत्काल फैसला सुनाकर मिलती है दोषी को सजा ,भक्ति का उमड़ पडता है जन सैलाब, सम्मिलित होते हैं सात परगना…पढ़िए पूरी खबर,देखे विडियो….

Chhattisgarh Unique Tradition VIDEO: Tradition going on from time immemorial, in this court of Chhattisgarh, the Claus of Gods and Goddesses takes place

छत्तीसगढ़ में कई ऐसे परंपरा और देव व्यवस्था है जो आदिम संस्कृति की पहचान बन गयी है.कुछ ऐसी ही परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है यहां गलती करने पर देवी देवताओं को भी सजा मिलती है ये सजा बकायदा न्यायधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते है.वही देवी देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है....

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धमतरी जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादों माह के इस नियत तिथि पर आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई का जात्रा होता है जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली उड़ीसा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी देवता शिरकत करते है.सदियों से चल आ रही है इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने 27 अगस्त को हजारों की तादाद में लोग पहुंचे.इस जात्रा इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगो की आस्था जुड़ी है.कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई मे यह जात्रा पुरे विधि विधान के साथ संपन्न हुई....

बताया जा रहा है कि कुर्सीघाट में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है.इसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है.ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी देवता कार्य नहीं कर किया जा सकता है.वही इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है.मान्यता है कि आस्था व विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते है लेकिन वही देवी देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करे तो उन्हे शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते है....सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते है यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते है.माना जाता है कि सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है....

गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट,परेशानी को दूर न कर पाने की स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोष माना जाता है.विदाई स्वरूप उक्त देवी देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी या मुर्गी और लाट, बैरंग, डोली को नारियल फुल चावल के साथ लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराव जात्रा में पहुंचते है.यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की एक-एक कर शिनाख्ती की जाती है.इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है जिसे ग्रामीण इसे कारागार कहते है....

पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है.आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते है.दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है.मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी-देवताओं को सजा दी जाती है.कुंदन साक्षी ने बताया कि इस साल यह जात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है....

बहरहाल देवी-देवताओं को इंसाफ के लिए जाना जाता है अदालतों से लेकर आम परंपराओं में भी देवी-देवताओं की कसमें खाई जाती है लेकिन उन्हीं देवी देवताओं को यदि न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़े तो यह वाकई में अनूठी परंपरा है जो इस आधुनिकता के दौर में शायद कही दिखाई दे...