बाबा उमाकान्त ने घड़े की जीवन गाथा से समझाया कि इसी तरह से कीमती, परोपकारी, प्रभु के काम आने वाला बनना है

बाबा उमाकान्त ने घड़े की जीवन गाथा से समझाया कि इसी तरह से कीमती, परोपकारी, प्रभु के काम आने वाला बनना है
बाबा उमाकान्त ने घड़े की जीवन गाथा से समझाया कि इसी तरह से कीमती, परोपकारी, प्रभु के काम आने वाला बनना है

बाबा उमाकान्त ने घड़े की जीवन गाथा से समझाया कि इसी तरह से कीमती, परोपकारी, प्रभु के काम आने वाला बनना है

सन्त कर्मों की धुलाई कैसे करते, अहंकार का गला कैसे काटते हैं

सन्त अपने संस्कारी जीवों को खोज कर पकड़ते, अपनाते, उनका कल्याण करते हैं

उज्जैन (म.प्र.) : इस समय धरती पर जीवों को नाम दान देने के एक मात्र अधिकारी, उन्हें सतसंग सुना कर, अपने असला घर सतलोक चलने की इच्छा जगाने वाले,  पिछले कर्मों की धुलाई सेवा सुमिरन ध्यान भजन से करवाने वाले, प्रभु की कृपा प्राप्त करने, उनके दर्शन योग्य बनाने वाले, क्रोध लोभ मोह अहंकार रूपी भूतों से छुटकारा दिलाने वाले, अंदर-बाहर दोनों तरफ से संभाल करते हुए गिन-गिन कर कमियों को दूर करने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज ने 4 नवंबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि सन्तों के, महात्माओं के जीव (विभिन्न जगहों पर) पड़े रहते हैं। सन्त उनको खोज करके लाते, पकड़ते हैं। एक बार गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) रास्ते में जा रहे थे, गांव की तरफ चले गए जहां कोई बकरी, कोई भेड़ चरा रहा है। जब किसी संस्कारी जीव को पकड़ना होता था तो वहीं बैठकर सतसंग सुना देते थे। सुनकर उसमें नाम दान लेने की इच्छा जग जाती थी। तब कोई पूछ भी लेता था कि भगवान कैसे मिलेगा? जो आप बता रहे हो उस (जन्म-मरण की) तकलीफ से कैसे छुटकारा होगा? तो कह देते थे, रास्ता मैं जानता हूं, मैं बता सकता हूं। जैसा मैं बताऊंगा वैसा करोगे? भजन करोगे? ध्यान लगाओगे? कहता था हां महाराज। तो वहीं नाम दान दे देते थे। इतिहास में कई जगह मिलता है। जब देखोगे सुनोगे पढोगे तो समझ में आ जाएगा कि कैसे-कैसे जीवों को सन्त पकड़ते हैं।

सन्त कैसे कर्मों की धुलाई करवाते हैं

अब सन्त इसके बाद रगड़ाई के समान कर्मों का मैल छुडाते धुलवाते हैं तो तकलीफ होती है। तो बहुत से संतसंगी बिचकने लगते हैं। क्या नाम दान ले लिया? क्या इस तरह से तकलीफ झेलना पड़ रहा है। यह तो मालूम नहीं है कि कर्मों को काटा, साफ़ किया जा रहा है। आपको क्या बनाया जा रहा है? जैसे पैरों से रौदती हुई मिट्टी कभी नहीं सोच-समझ पाती कि हम भी कुछ बन जाएंगे और हमारी भी कभी कोई सराहना करेगा, हम भी किसी के काम आएंगे। ऐसे ही प्रेमियों को निराश नहीं होना चाहिए। गुरु की, प्रभु की मौज में रहना चाहिए। आप बहुत जल्दी नाराज हो जाते हो इसीलिए आपको उदाहरण देकर समझाता हूं। जब माटी को रौंद दिया, हाथ से मसला और फिर उसको इकट्ठा करके चाक पर चढ़ा दिया। चाक वो जो चलता घूमता रहता है। (गुरूजी) कहते हैं रोज प्रचार, रोज भजन, रोज ध्यान करो। यह सब क्या है? कुछ नहीं, एक ही दिन में सुरत चढ़ा दो, एक ही दिन में सतलोक पहुंच जाए, जो गुरु आप समरथ हो तो सतलोक, स्वर्ग बैकुंठ आज ही दिखा दो। अरे भाई! पहले देखने लायक तो बन जाओ। वह (अंतर का शब्द) आवाज यह कान बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। वह आवाज यदि कान में पड़ जाए तो मालूम पड़ेगा कान, शरीर फट गया। कहां से आप सुन पाओगे? तो लायक तो बनो। अंदर वाले कान की सफाई तो हो तब तो आवाज सुनाई पड़ेगी। चाक पर चढ़ाया। रोज रगड़ाई, धुलाई करो, कर्मों को धोओ, सुमिरन ध्यान भजन रोज करो।

सन्त अहंकार का गला कैसे काटते हैं

तो उसमें चलते रहो। जैसे जब चाक पर मिट्टी चली फिर घूमती रही तो सोचती है कि भाई क्या हमारी जिंदगी में यही है। हमको खोदे, गधे के ऊपर लादे, रौंदे गये। फिर अब चाक पर चढ़ा कर लगातार घूमते ही जा रहे हैं। लेकिन कुम्हार हाथ से मिट्टी को बढ़िया सुंदर सुडौल बना रहा है कि किसी लायक बन जाए, किसी के काम आ जाए। उसके बाद जब थोड़ा ऊपर उठा तो उसका गला ही काट दिया? गुरु क्या करते हैं? अहंकार का गला काट देते हैं। काम क्रोध लोभ मोह अहंकार भूतों को एकदम से बिल्कुल ढीला कर देते हैं। अब प्रेमी फिर सोचता है कि हमारी कितनी आकांक्षा, दुनिया की इच्छा थी, हमको कितना सुख इसमें (दुनिया में) मिलने वाला था लेकिन बाबाजी गुरुजी ने रोक दिया। मेहनत, ईमानदारी की कमाई करो। उतनी ही इच्छा रखो कि जिससे परिवार चलता रहे, बच्चे नालायक न बने, आप किसी झगड़ा-झंझट में न फंसो। अब उन इच्छाओं का दमन हो गया। गला न काटे तो बर्तन में सुराख नहीं बनेगा। कुम्हार हाथ से सुराख बनाता रहा। अब उसको सही करना है ताकि उसकी कीमत बढ़ जाए। यानी शरीर की कीमत बढ़ जाए। अंदर हाथ डाल कर बर्तन को गहरा करते गए ताकि अंदर जगह बन जाए, अंदर की गंदगी सब साफ हो जाए। 

गुरु अंदर से सहारा देते हुए बाहर से चोट मार-मार कर कमियों को दूर करते हैं

पहले तो हाथ से साफ किया फिर उसके बाद कुम्हार एक हाथ अंदर लगाता है और दूसरे से थपकी मारता है। इतना तेज नहीं मारता है कि घड़ा टूट जाए, इतना तकलीफ गुरु नहीं देते हैं, इतना मन को नहीं मार देते हैं कि आप टूट जाओ, संगत से अलग हो जाओ, दुनिया की तरफ ही बह जाओ, जहां से निकाल करके लाए फिर वहीं पहुंच जाओ। मिट्टी को खोद कर निकालता है, बढ़िया सुंदर सुडौल बना देता है जिससे इसकी कीमत बढ़ जाए। फिर जब घड़ा बन गया तो पकाने के लिए आग में डाल दिया। तो ऐसे ही जब सफाई हो जाती है तब शरीर की तपाई होती है, फिर इसमें हर तरह से निखार आता है। तपाई यानी कसौटी पर कसे जा रहे हैं कि अब लायक हुए कि नहीं हुए। पहले तो यह सब काम सन्त पहले ही करवा कर फिर नाम दान देते थे। अब? अब कोई कर नहीं सकता तो नाम दान पहले दे देते हैं और सतसंग सुनाते रहते हैं। मन को दुनिया से हटा कर सतसंग का खुराक देते रहते हैं तो इच्छा जग जाती है। समझ में जब आ जाता है तब धीरे-धीरे सफाई करते, तपाते हैं और जब निखार आ जाता है तो शरीर का, जीवात्मा का भाव बढ़ जाता है।