सभी सन्तों, फकीरों ने हर मजहबी किताब, ग्रंथों में जीव हत्या नहीं बल्कि रहम दया करने की बात की...




सभी सन्तों, फकीरों ने हर मजहबी किताब, ग्रंथों में जीव हत्या नहीं बल्कि रहम दया करने की बात की
ख्वाहिशों और जिस्मानी इबादत से नहीं बल्कि वक़्त के आला फ़कीर से इल्म लेकर रूहानी इबादत करने से ही खुदा खुश होगा
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। इस वक़्त के मुर्शिद-ए-कामिल, आला फकीर, सभी जीवों की रूह के निजात का रास्ता नामदान बताने वाले, इंतकाल के पहले गैबी आवाज़, कलमा, आयतें सुनाने वाले, खुदा का पैगाम बताने वाले, दोजख से बचाने वाले, उज्जैन के बाबा उमाकान्त ने इंदौर आश्रम पर 29 मार्च 2022 शाम को दिए व यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेम पर प्रसारित संदेश में बताया कि ऐसा कोई काम न करो कि जिससे खुदा, प्रभु के बनाए हुए जीव के रूह को तकलीफ हो। अकाल मृत्यु होने की बात अलग है लेकिन जब मार देते हैं तो हत्या होती है तो उसका पाप लगता है। जिस्मानी मस्जिद गंदा हो जाए जैसे मिट्टी पत्थर के बनाये मंदिर मस्जिद में कोई गंदी चीज डाल दे तो उसमें इबादत नहीं करते हैं। पहले सफाई करते हैं फिर इबादत करते हैं। ऐसे ही इसको गंदा मत करो। जब से मांसाहार बढ़ा, बीमारियां बहुत बढ़ गई। तमाम चीजें प्रभु कुदरत प्रकृति ने मनुष्य के लिए ही बनाया।
जिसमें मुसल्लम ईमान है, वो ही मुसलमान है
हर मजहबी किताबों धार्मिक ग्रंथों में यह चीज मिलती है। जो पूरे फकीर हुए, बोल करके गए उन्होंने कभी हिंसा-हत्या की बात नहीं की। उन्होंने तो रूह पर रहम करने की बात की है। बिस्मिल्लाह ए रहमान ए रहीम इसीलिए तो लोगों ने उसका नाम रहमान रखा है। देखो नाम उन्होंने जो रखा, जिसके अंदर मुसल्लम ईमान हो, मुसल्लम रहम हो, वह मुसलमान है। कोई कहता है हम मुसलमान हैं लेकिन मुसल्लम ईमान, रहम नहीं है तो कैसे मुसलमान माना जाए।
सन्त पहले बुरे कर्म कटवाते हैं फिर अनमोल चीज नामदान देते हैं
फ़क़ीर साहब ने 4 मार्च 2019 को लखनऊ में बताया कि जगह जगह पर जितने भी सन्त आए सब लोगों ने जीवों को इकट्ठा किया, समझाया कि दुनिया की जितनी भी चीजें जिनको आप अपना कहते हो यह आपकी कुछ है ही नहीं। इसको सबको छोड़ करके जाना पड़ेगा। आप अपने देश, अपने घर चलो जहां पर सुख शांति है, जहां रोना-धोना, दुख-संताप, इतनी गर्मी-तपन नहीं है, वहां चलो तो यह याद दिलाते हैं। जब घर याद आ जाता है, उसके लिए जब तड़प पैदा होती है तब रास्ता बता देते हैं। वो बर्तन को पहले साफ करते हैं। बर्तन को पहले साफ करके दूध रखते हैं ताकि खराब न हो जाए ऐसे ही पहले हुजरे को साफ करते हैं। खुद करते भी हैं और करवाते भी हैं। कर्मों को कटवाते भी हैं। जब कर्म कटते हैं, सफाई होती है तभी पूजा-उपासना इबादत कबूल होती है।
खुदा कैसे खुश होगा
सन्त फ़क़ीर सबसे पहले इसको पाक-साफ करते हैं। कहा गया कि ख्वाहिशों, जिस्मानी इबादत से खुदा खुश नहीं हो सकता है। रूहानी इबादत करनी चाहिए। रूहानी इबादत, आध्यात्मिक पूजा, आध्यात्मिक उपासना तभी हो सकती है जब यह मानव मंदिर स्वच्छ, साफ रहे। इसीलिए कहा गया इसके अंदर मांस मछली अंडे शराब जैसी चीजों को मत डालो, इसको गंदा मत करो। तो पहले इसको साफ कराते हैं। बगैर इसके साफ किए हुए नहीं। कहा फकीर ने -
अल्लाह-अल्लाह का मजा, मुर्शीद के मयखाने में है।
दोनों आलम की हकीकत, एक पैमाने में है।
ना खुदा मंदिर में देखा, ना खुदा मस्जिद में है।
शेख जीरिंदों से पूछो, दिल के आशियाने में है।।
दिल के आशियाने में है वह लेकिन दिखाई नहीं पड़ता तो कहा -
एक दिल लाखों तमन्ना, उस पर फिर इतनी हाविश।
फिर ठिकाना है कहां, उसको बैठाने के लिए।।
तब उसने कहा जिसको दीनबंधु दीनानाथ गरीब परवर कहा गया वो कैसे मिलेगा? कैसे दिखेगा? कैसे उसका दीदार दर्शन होगा? कैसे उसकी वेद वाणी, आकाशवाणी, खुदाई आवाज सुनाई पड़ेगी? तो कहा कि -
दिल का हुजरा साफ़ कर, जाना के आने के लिए।
ख्याल गैरों का हटा, उसको बैठाने के लिए।।
यह हुजरा साफ होना बहुत जरूरी है। तो सतगुरु तो सबसे पहले हुजरा ही साफ कराते हैं। इस (मनुष्य शरीर रूपी) मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा को साफ कर लो कि जहां से बैठ कर के तुम पढ़ो उनके वाक्यों को पढ़ो ताकि वो उस आवाज को सुन ले, तुम्हारे ऊपर दया कर दे। तो पहले उसको साफ कराते हैं, उसके बाद देते हैं। क्या देते हैं? अनमोल चीज जिसकी कोई कीमत नहीं लगा सकता, नाम धन, नाम रूपी रत्न जिसको कहा गया, उस नाम की बख्शीश करते हैं, उस नाम को दान में देते हैं, नाम दान देते हैं।