राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य सोनल कुमार गुप्ता के हस्तक्षेप से बना बच्चे का पासपोर्ट...

The child's passport was made with the intervention of Sonal Kumar Gupta, member of the State Child Protection Commission

राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य  सोनल कुमार गुप्ता के हस्तक्षेप से बना बच्चे का पासपोर्ट...
राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य सोनल कुमार गुप्ता के हस्तक्षेप से बना बच्चे का पासपोर्ट...

नया भारत डेस्क :  रायपुर बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य श्री सोनल कुमार गुप्ता के खंडपीठ में लगातार बच्चों से जुड़े विषय की प्रकरणों की तेजी से सुनवाई हो रही है एवं त्वरित गति से निराकरण हो रहे हैं माननीय सदस्य श्री गुप्ता से चर्चा होने पर उन्होंने बताया कि वर्तमान में कार्यालय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पास एकाएक इस प्रकार के मामलों की संख्या बढ़ी जिसमें माता-पिता के आपसी विवाद सामंजस के अभाव के चलते पृथक पृथक निवास करने का दुष्परिणाम या दुष्प्रभाव उनके बच्चे झेल रहे हैं उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया केस नंबर (1) जिसमें माता रेलवे में अधिकारी है पिता निजी कंपनी में कार्यरत हैं बहुत आया समय से पृथक पृथक जीवन यापन कर रहे हैं बच्ची माता के संरक्षण में और उसके उज्जवल भविष्य के लिए उसकी विदेश भेजना चाहती है पर बिना पिता के सहयोग के और दस्तावेजों के विदेश विभाग में उसका पासपोर्ट बन नहीं रहा है

बच्ची का पिता सहयोग करने को तैयार नहीं है ऐसी स्थिति में बच्ची की माता ने अधिवक्ता के माध्यम से माननीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य के समक्ष एक याचिका प्रस्तुत की क्योंकि बाल संरक्षण आयोग को धारा 13, 14, 15  की शक्तियां प्राप्त है सिविल न्यायालय के समान तो पिता को  summons जारी करके आवश्यक रूप से आयोग कार्यालय में उपस्थित रहने को  आदेशित किया गया कि आयोग के सदस्य के समझाने के उपरांत मामले का निराकरण हुआ और पिता अपने बच्चों के शिक्षक भविष्य के लिए आवश्यक सहयोग करने को तैयार हुआ.


 केस नंबर (2) इस प्रकरण में माता अपने दोनों बच्चों को लेकर अपने पिता के घर रायपुर आ गई बच्चों के पिता जो की  Indian Army से सेवानिवृत हुए हैं वे अपनी पत्नी की इस व्यवहार से नाराज थे और जिस स्कूल में बच्चे पढ़ रहे थे वहां के स्कूल प्रबंधन को उनको Transfer certificate नहीं देने का द

देने का दबाव बना रहे थे जिसे वर्तमान में बच्चों की अन्य संस्था में एडमिशन / पढ़ाई बाधित हो रही थी. बच्ची के माता के बाल संरक्षण आयोग में आवेदन प्रस्तुत करने के बाद पिता और स्कूल प्रबंधन को बुलाकर आयोग के  निर्देश पर स्कूल ने बच्चों का TC जारी किया. आयोग ने पिता को भी निर्देश दिया कि बच्चों के पढ़ाई से संबंधित सारे संसाधन उपलब्ध कारण और माता को कहा कि बच्चों और पिता के बीच में कोई भी दोहरी भूमिका न निभाएं क्योंकि आयोग की सांविधिक जवाब देही बच्चों के सर्वोत्तम हितों का ध्यान रखना है जिसके लिए पलकों की बराबर भूमिका होना आवश्यक है. केस नंबर(3)


 इस प्रकरण में माता-पिता दोनों उच्च शिक्षित हैं और  सक्षम परिवार से हैं  शादी के कुछ महीनो बाद ही दोनों आपसी  विवाद की वजह से पृथक पृथक जीवन यापन कर रहे हैं बच्चों की स्कूल जाने की उम्र होने पर उसके जन्म प्रमाण पत्र और आधार  पत्र की जरूरत पड़ी. जिसके अभाव में बच्चे का अध्यापन प्रारंभ होना संभव nhi था मतभेद इतने की दोनों पक्षों में आपस में संपर्क बिल्कुल भी नहीं था, माता के द्वारा बाल संरक्षण आयोग के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करने के पश्चात आयोग द्वारा प्रकरण की  गंभीरता को समझते हुए. पिता को नोटिस जारी किया गया तब पिता ने भी बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अपनी माहिती भूमिका निभाने का वादा करते हुए  आवश्यक दस्तावेज बनवा कर दिए जिससे उसे बच्चे का अध्यापन कार्य प्रारंभ हो पाया.


केस नंबर(4) इस प्रकरण में रायपुर की एक महिला अपने पति से विवाद के बाद अपने मायके चली गई थी और उसके पति ने बच्चों की कस्टडी लेने के लिए अनविभागीय अधिकारी राजस्व  न्यायालय में धारा 97 के तहत कार्रवाई प्रस्तुत की थी. जिस पर एसडीएम कोर्ट ने बच्चों के संरक्षण को और उचित लालन पोषण को देखते हुए coustody पिता को दे दिया था. जिससे   असंतुष्ट होकर महिला ,राज्य बाल संरक्षण आयोग के पास पहल की थी

राज्य बाल संरक्षण आयोग के पास पहुंची और विलाप करने लगी इस प्रकरण में भी बाल आयोग के द्वारा नोटिस जारी करने पर ही पिता के द्वारा बच्चों को माता को सौंप दिया गया.. माननीय   पीठासीन  सदस्य सोनल कुमार गुप्ता का कहना है कि समाज का जो दृश्य अभी लगातार आयोग में प्रकरणों के माध्यम से सामने आ रहा है वह बहुत  चिंतनीय और निंदनीय है. शादी के पश्चात माता-पिता में  अपरिपक्वता  व आपसी  तालमेल नहीं होने से. इसका सीधा दुष्प्रभाव उसे बढ़ते हुए बच्चे के जीवन और कैरियर पर पड़ता है जिसका इस पूरे मामले से कोई लेना-देना नहीं है बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं उनके जीवन को अंधकार में और  असुविधा में डालना कहीं से भी  उचित नहीं है. इस प्रकार राज्य बाल संरक्षण आयोग लगातार संविधान में  प्राप्त अधिकार और शक्तियों के तहत समाज और बच्चों के प्रति अपनी परस्पर  ईमानदारी पूर्वक और भूमिका निभाने में   समर्पण के साथ कार्यरत है.