बुल्ला शाह के प्रसंग से सन्त बाबा उमाकान्त ने समझाया, परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है...

बुल्ला शाह के प्रसंग से सन्त बाबा उमाकान्त ने समझाया, परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है...
बुल्ला शाह के प्रसंग से सन्त बाबा उमाकान्त ने समझाया, परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है...

बुल्ला शाह के प्रसंग से सन्त बाबा उमाकान्त ने समझाया, परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है

स्वर्ग बैकुंठ अस्थाई है, असली शांति सतलोक में है

उज्जैन : इस समय के विलक्षण महापुरुष, पूरे सन्त बाबा उमाकान्त महाराज ने 1 सितंबर 2020 सायं उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब शक्ति बढ़ती है तब अंदर की दौलत मिलती है। अंदर की ताकत जब आती है तो उस समय पर देवी और देवता भी घबराने लगते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि ये हमारे स्थान ले ले। इनका स्थान निश्चित नहीं होता है। इनका समय होता है। गद्दी कोई जल्दी नहीं छोड़ना चाहता है। चाहे इस धरती की गद्दी हो, चाहे ऊपरी लोकों के धनियों की गद्दी हो। तो उसमें बाधा डालते हैं, डलवाते हैं। तो महात्मा जी तपस्या कर रहे थे। भेजा गण को, कहा मैं तुमको लेने के लिए आया हूं। तो बोले हमको कुछ नहीं चाहिए। पूछा, आप क्या दोगे हमको? कहा जो भी धरती की वो चीज आप कहो/मांगो, हम आपको दे देंगे। इस धरती पर जो भी चीज है, धन-दौलत, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पुत्र, परिवार, हम आपको सब दे सकते हैं। तो बोले, हमको कुछ चाहिए ही नहीं। जो अच्छे फकीर महात्मा हुए, वो कभी स्वर्ग बैकुंठ नहीं मांगे क्योंकि स्वर्ग बैकुंठ से फिर नीचे उतरना पड़ता है। पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आना पड़ता है। तो जिनको जानकारी हो गई तो वह उस अस्थाई चीज को नहीं मांगेंगे। वह तो स्थाई चीज को मांगेंगे कि जहां से फिर इस दुःख के संसार में आना न हो, फिर जन्मना-मरना न हो, नरक और चौरासी में जाना न हो, वह चीज मांगेंगे। तो कहा, कुछ ले लो। तो बोले हम कुछ नहीं लेंगे। हार करके जाने लगा, कहा, देकर जा रहा हूँ, तुम मुर्दा को छूओगे तो मुर्दा जिंदा हो जाएगा। तो फकीर महात्मा बोले, अब मांग रहा हूं, दे दो। तो कहा, मैं कह तो रहा हूं कि कुछ मांग लो। मैं तो बगैर मांगे देकर जा रहा हूं। बोले, अब दे दो कि मेरा गर्दन पीछे न घूमे। कहा, यह क्यों मांग रहे हो? बोले इसलिए कि मुर्दा को कभी मैं जिंदा भी करना चाहूंगा तो अंहकार न आ जाए कि मैंने मुर्दा को जिंदा किया। अंहकार बहुत बुरी चीज होती है। इसके आगे महाराज जी ने एक प्रसंग को जारी रखते हुए बताया कि उन्होंने कहा तुम कुदरत के नियम को नहीं समझते हो। उसे तू अपनी थोड़ी सी सिद्धि, योग विद्या के द्वारा चैलेंज कर रहा है तो तू इस रूहानी इल्म को कैसे ले पायेगा? जब तक इन चीजों को छोड़ेगा नहीं, इनका त्याग नहीं करेगा, यह चीज (सन्तमत) तेरे समझ में नहीं आएगी। मनमुखी है तू। तेरे अंदर जब विश्वास और गुरुमुखता आयेगी तब तू (इस रास्ते पर) आगे बढ़ पाएगा। तो अब तू जा, जहां क़ुतुब रहते थे, जिनके नाम से मीनार है, उनके पास जा। आगे बहुत ही अच्छा प्रसंग महाराज जी ने सुनाया।

असली शांति सतलोक में है

महाराज  ने 28 जुलाई 2020 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि प्रेमियों! आपको नामदान मिला, उसकी कीमत लगाओ। कीमत आप कब लगा पाओगे? जब सुमिरन ध्यान भजन मन को रोककर समय से करोगे तब इसकी ताकत को, इसकी प्रभुता को, इसके प्रकाश को, तब इसकी कीमत आप लगा पाओगे। कहने का मतलब यह है कि बराबर लगे रहो। गुरु आपके समरथ हैं। गुरु महाराज की दया प्रेमियों आपके ऊपर बराबर हो रही है। रास्ता आपका सही है। जहां दु:ख से आप छुटकारा पा सकते हो। ऊपर पहुंच जाने के बाद, ऊपरी लोकों में आने-जाने के बाद शांति मिल जाती है। वहां की सब चीजें स्थिर हैं। चलने-फिरने वाला चक्कर खत्म हो जाता है। वहा उस धुरी से, सतलोक से जितने भी लोक हैं, वह जुड़े हुए हैं। उस धुरी से नीचे के जितने लोक हैं, यह सब चलायमान है। लेकिन वहां वो स्थिर है। वहां पहुंचने के बाद स्थिरता आ जाती है। और जब स्थिरता आ जाएगी तब शांति मिल जाएगी। तो असला शांति वही है। तो यहां कुछ नहीं है। यह दुनिया स्वपनवत्व है।

परमात्मा मिलने में कितनी देर लगती है

महाराज ने 3 अगस्त 2020 प्रातः उज्जैन आश्रम में बताया कि बुल्लाशाह एक सन्त (फकीर) थे। तो बुल्लाशाह खेत मे रोपाई कर रहे थे। एक आदमी ने पूछा कि आप कहते हो परमात्मा मिलता है। बहुत कम समय में ही खुदा का दीदार हो जाता है। कितना देर लगता है? उन्होंने एक पौधा उखाड़ा और दूसरी तरफ लगा दिया, कहा इतनी देर में। उसने पूछा इसके लिए क्या करना पड़ेगा? कहा तड़प पैदा करना पड़ेगा। उस (मालिक) से मिलने की इच्छा जतानी पड़ेगी। इधर दुनिया की चीजों से थोड़ी देर के लिए इच्छा खत्म करना, दुनिया को भूलना पड़ेगा। यहां तक कि शरीर को भी भूलना पड़ेगा कि हमारा शरीर है और यह यहां पर बैठा हुआ है। शरीर का भी अगर याद रहा तो मन शरीर की तरफ ही ले आएगा। गर्मी-ठंडी का अहसास करा देगा और कहेगा उठ जाओ अब। क्योंकि यह काल और माया का एजेंट वकील और उनका अंश है। तो यह करने नहीं देना चाहता है तो शरीर को भी भूल जाओ। और बस केवल एक को याद करो और तड़प के साथ उसको पुकारो। कबीर साहब ने कहा है- हँस हँस कंत न पाइया, जिन पाया तिन रोय, हंसी खेले पिया मिले तो कौन दुहागिन होए। अगर  हंसी खेल में वो परमात्मा मिल जाए तो कीमत क्या बढ़ेगी। लेकिन जो उसके लिए रोया, उसका इतिहास बना। और जिसने दो आंसू बहाया, उसके लिए वह दौड़ कर के आया। अंदर से आंसू निकला तो मदद हुई। एक चिल्लाना होता है दूसरा अंदर से, भाव से जब आंसू निकालते हैं तब।