इस व्यवस्था के विरुद्ध खड़े होना ही चाहिए और जो व्यक्ति लिखना चाहता है बोलना चाहता है लड़ना चाहता है उसका सहयोग करना ही चाहिए




मनेंद्रगढ़। भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण यही है कि हम लोगों ने यह मान लिया है, कि सभी स्थानों पर इसी प्रकार का कार्य होता है। हम अपने आसपास बहुत सारी विसंगतियां देखते और सुनते रहते हैं और हम यह मानकर चलते हैं कि यह सब कभी भी परिवर्तन होने वाला नहीं है।
वास्तव में भ्रष्टाचार का या व्यवस्था में सुधार नहीं होने का प्रमुख कारण ही यही है। हम लोग बहुत सारे नियम कानून जानते हैं हम लोग अच्छी तरह जानते हैं कि यदि प्रयास किया जाए तो निश्चित रूप से सुधार होगा परंतु पहल कौन करे बचपन से जो कुछ देखते आ रहे हैं हमने उसी को नियम और कानून मान लिया है जबकि वास्तविकता इससे बहुत परे है।
शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में लगातार निवेश हो रहा है लोग बहुत बड़ी बड़ी पूंजी लगाकर इस क्षेत्र में आ रहे हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य धनार्जन ही है।
इस अंचल में आवागमन के साधनों का अभाव, शिक्षा का भाव, साथ ही साथ अपेक्षाकृत लोगों के पास धन अधिक होने के कारण यहां सरलता से धन कमा लेने के कारण। हमारी विरोध करने की क्षमता बहुत कम हो गई है हम बहुत सरलता के साथ छोटे-छोटे समझौते कर लेते हैं।
हमारे बीच से यदि कोई भी इस व्यवस्था के विरुद्ध कुछ कहना लिखना या बोलना चाहता है तो हम उसे असामान्य मानकर साधारण तो उसे पागल शब्द से संबोधित कर देते हैं। जबकि यदि उस व्यक्ति का साथ दिया जाए जिस ने व्यवस्था का विरोध किया है तो परिणाम स्वरूप जो परिवर्तन आएंगे उससे केवल वह व्यक्ति लाभान्वित नहीं होगा वरन पूरे समाज को इसका लाभ प्राप्त होगा।
भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतों में जितनी जागरूकता है व्यवस्था के विरुद्ध लोग अपनी बात कहने का साहस करते हैं और जो बोलता है उसे समर्थन भी मिलता है उसका साहस भी बनाते हैं और उसका तन मन धन से सहयोग भी करते हैं। इस अंचल में भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतों से लोग आकर रह रहे हैं इसलिए हमारी कोई लोक संस्कृति नहीं है कोई लोक भाषा नहीं है कोई लोक उत्सव नहीं है इसलिए हम लोग परस्पर एक दूसरे के उतने अधिक सहयोग नहीं करते हैं या परस्पर संवाद नहीं करते हैं या परस्पर उतनी सहिष्णुता नहीं है कि हम सब मिलकर इस तथाकथित डकैती का खुलकर विरोध करें जितनी लूट जितना भ्रष्टाचार जितना व्यभिचार जितना संगठित गिरोह यहां पर चल रहा है जो पल-पल पर तिल तिल कर के हम को लूट रहा है उसका विरोध करने का साहस हम लोगों में नहीं हैं यह हमारी संस्कृति नहीं है होना इसके ठीक विपरीत चाहिए हम सबको मिल जुलकर परस्पर संवाद के माध्यम से इस व्यवस्था के विरुद्ध खड़े होना ही चाहिए और जो व्यक्ति लिखना चाहता है बोलना चाहता है लड़ना चाहता है उसका सहयोग करना ही चाहिए।