Hanuman Janmotsav 2023: हनुमान जन्मोत्सव आज...हनुमान जी के जन्मदिन पर बजरंग बाण का पाठ, कब और कैसे करना चाहिए?... सिंदूर से करें ये छोटा सा उपाय.... जानें.....

हनुमान जी का जन्मोत्सव (Hanuman Janmotsav 2022) 6 अप्रैल यानी आज हैं. Hanuman Janmotsav 2023: Hanuman Janmotsav today... on Hanuman ji's birthday, when and how should we recite Bajrang Baan?... Do this small remedy with vermilion.... Learn.

Hanuman Janmotsav 2023: हनुमान जन्मोत्सव आज...हनुमान जी के जन्मदिन पर बजरंग बाण का पाठ, कब और कैसे करना चाहिए?... सिंदूर से करें ये छोटा सा उपाय.... जानें.....
Hanuman Janmotsav 2023: हनुमान जन्मोत्सव आज...हनुमान जी के जन्मदिन पर बजरंग बाण का पाठ, कब और कैसे करना चाहिए?... सिंदूर से करें ये छोटा सा उपाय.... जानें.....

Hanuman Jayanti 2023: हनुमान जी का जन्मोत्सव (Hanuman Janmotsav 2022) 6 अप्रैल यानी आज हैं. नुमान जी संकटों को दूर करने वाले देवता हैं. शास्त्रों में हनुमान जी को शिव का अवतार बताया गया है. जब व्यक्ति हर तरह से अपने आपको हारा हुआ महसूस करने लगें. जीवन में असफलताएं उसका पीछा नहीं छोड़ रही हैं. पग-पग पर बाधाएं और परेशानियां मुंह बाए खड़ी हों तो ऐसे में हनुमान जी का ये मंत्र राहत प्रदान कर सकता है.

ये मंत्र है बजरंगबाण (Bajrang Baan) -

दोहा (Doha)

 

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।

 

चौपाई (Chaupai)

 

जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।

जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।

आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।

बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।

अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।

लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।

ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।

गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।

सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।

सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।

जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।

पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।

वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।

पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।

जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।

बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।

भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।

इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।

जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।

जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।

उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।

ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।

अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।

ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।

ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।

हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।

हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।

जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।

जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।

जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।

जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।

जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।

ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।

राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।

विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।

तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।

यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।

सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।

एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।

याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।

मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।

पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।

भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।

प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।

आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।

दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।

यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।

शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।

तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।

 

दोहा (Doha)

 

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।

तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।

 

 

हनुमान जन्मोत्सव के दिन करें ये खास उपाय

 

 

हनुमान जन्मोत्सव के दिन सिंदूर संबंधी कुछ उपाय करना काफी लाभकारी होगा. क्योंकि भगवान हनुमान को सिंदूर काफी प्रिय है. हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान मंदिर जाकर भगवान को चमेली या फिर घी में सिंदूर मिलाकर लेप लगा दें. ऐसा करने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं और जातक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं. इस उपाय को आप मंगलवार और शनिवार के दिन भी अपना सकते हैं. हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की विधि-विधान से पूजा करने के बाद घर के प्रवेश द्वार में घी और सिंदूर मिलाकर स्वास्तिक और ॐ का चिन्ह दोनों ओर बना दें. 

 

माना जाता है कि ऐसा करने से विघ्न बाधाएं दूर रहती हैं और हर काम में सफलता प्राप्त होती है. हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी का स्मरण करते हुए सफेद कोरे कागज में घी और सिंदूर को मिलाकर स्वास्तिक चिन्ह बना दें. इसके बाद इसे हनुमान जी के चरणों में अर्पित कर दें और विधि-विधान से उनकी पूजा कर लें. इसके बाद इस कागज को उठा लें और अपने पर्स में रख लें. इससे आपको हर काम में सफलता मिलने के साथ-साथ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी. हनुमान जन्मोत्सव के दिन हर इच्छा पूर्ण करने पवनपुत्र को चोला चढ़ा दें. इससे भगवान की कृपा हमेशा बनी रहेगी.

 

 

बजरंग बाण का पाठ कब और कैसे करें

 

 

बजरंग बाण का पाठ किसी भी किताब से किय़ा जा सकता है. लेकिन पाठ उस किताब से करें जिसमें इसकी लिखावट लाल रंग से हो. बजरंगबाण के पाठ की शुरुआत सुबह या शाम किसी भी समय कर सकते हैं. इसकी शुरुआत मंगलवार या शनिवार से की जाए और यदि आपके पास इसका इंतजार करने का समय नहीं है तो आने वाले किसी भी दिन से बजरंगबाण की शुरुआत की जा सकती है. यहां इस बात का ध्यान रखें कि जिस समय इसका पाठ शुरू किया जाए. रोजाना उसी समय पर चालीस दिन तक पाठ करना अच्छा होगा.

 

शाबर मंत्र क्या है?

 

 

हनुमान जयंती यानि हनुमान महोत्सव पर शाबर मंत्र का पाठ उत्तम माना गया है. इस मंत्र को सबसे सुरक्षित मंत्र माना गया है. ये सबसे आसान और सबसे सुरक्षित होने के कारण ये अधिक लोकप्रिय हैं. इन मंत्रों को वैदिक मंत्रों की तरह लंबी साधना की जरूरत नहीं होती और न ही तांत्रिक मंत्रों की तरह जटिल होते हैं. शाबर मंत्र की विशेष बात यह है कि यह जिस इष्ट के लिए पढ़ा जा रहा है. उनके भी ईष्ट की दुहाई इन मंत्रों में दी जाती है. यानी उन्हें उनके इष्ट का वास्ता दिया जाता है कि आपको आपके इष्ट का वास्ता कि मेरी प्रार्थना आप जल्द से स्वीकार करें. 

 

'बजरंग बाण' बहुत प्रभावशाली है

 

 

बजरंग बाण मंत्र भी शाबर मंत्र की श्रेणी में आता है. इसका प्रभाव बहुत ही तेज माना गया है. इसलिए इसके नाम के पीछे चालीसा और कवच नहीं बाण लिखा है क्योंकि बाण का अर्थ है निर्धारित लक्ष्य को भेदना. ऐसा कोई हथियार जिसके अलावा कोई भगवत कृपा पाने की कोई और रास्ता न हो. 

 

सारे प्रयास जब असफल हो जाएं तब करना चाहिए इस मंत्र का प्रयोग

 

 

माना जाता है कि बजरंग बाण का उच्चारण तब करना चाहिए जब सभी किए जा रहे उपाय असफल हो जाएं. जब विपदा बहुत प्रबल हो जाती है तब इस पाठ का करना अति शुभ फल देने वाला होता है.

 

बजरंगबाण का पाठ, किन लोगों को करना चाहिए

 

 

 

बजरंगबाण का पाठ विशेष परिस्थितयों में ही करना चाहिए. इस पाठ को करने के लिए कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए-

 

यदि आप शत्रुओं से घिरे हुए हैं और दुश्मन निरंतर परेशानी और बाधा पैदा कर रहे हैं तो इस मंत्र का पाठ कर सकते हैं. जो असाध्य रोग से ग्रसित हो चुके हैं या जिन लोगों को किसी दवा का असर नहीं हो रहा हो, ऐसे लोगों को बजरंगबाण करने विशेष रूप से स्वास्थ्य लाभ पहुंचाने वाला होता है. यदि आपको आर्थिक समस्याओं ने घेर रखा है , लेन - देन के मामले में पूर्ण रूप से फंसे हुए हो तो उनके लिए भी यह पाठ करना अति उत्तम होता है.

 

विद्यार्थियों या नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को इसका पाठ करना अच्छे फल देने वाला होता है. जिन लोगों का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं चल रहा है या जिन अविवाहित लोगों की खूब कोशिशों के बाद भी कहीं बात पक्की नहीं हो पा रही है. ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए भी बजरंगबाण का पाठ अति उत्तम फल देने वाला होता है.

 

श्री हनुमान चालीसा। Hanuman Chalisa Hindi

 

 

दोहा :

 

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 

 

चौपाई :

 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे।।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 

 

दोहा :

 

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।