ब्लाग: भारत के अगले राष्ट्रपति कौन होगा इसको लेकर सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट होने लगी है.

Blog: There is a whisper in the corridors of power about who will be the next President of India.

ब्लाग: भारत के अगले राष्ट्रपति कौन होगा इसको लेकर सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट होने लगी है.
ब्लाग: भारत के अगले राष्ट्रपति कौन होगा इसको लेकर सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट होने लगी है.

NBL, 31/03/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. अब, जबकि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ज्वार थम गया है और 75 राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनावों की प्रक्रिया तेज हो गई है, भारत के अगले राष्ट्रपति को लेकर सत्ता गलियारों में फुसफुसाहट होने लगी है, पढ़े विस्तार से...। 

हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव बीच जुलाई में होंगे, लेकिन अटकलों का दौर अभी से आरंभ हो गया है.

चार राज्य विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी की जीत के साथ ही उसका उम्मीदवार चुने जाने के बारे में अब कोई अनिश्चितता नहीं है. फिर भी, वोटों के मामले में भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को अभी-भी 50 प्रतिशत से अधिक पॉपुलर वोट पाने के लिए थोड़ा बाहरी समर्थन लेना ही होगा.

राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल करता है जिसमें 31 राज्य विधानसभाओं और केंद्रशासित प्रदेशों के 4120 विधायक और दोनों सदनों के 776 निर्वाचित सांसद शामिल होते हैं. 776 सांसदों में से प्रत्येक के पास 708 वोट होंगे, जो कुल जमा 549408 होंगे, जबकि 4120 विधायकों के 549495 वोट होंगे. विधायकों के वोटों की गिनती उनके राज्यों की जनसंख्या के हिसाब से होगी, लेकिन एक सांसद का एक ही वोट होगा.

मसलन, उत्तर प्रदेश में एक विधायक के पास 208 वोट होंगे, जबकि महाराष्ट्र के विधायक के पास 178 वोट और सिक्किम के विधायक के पास केवल सात वोट होंगे. इनके वोटों की मिलीजुली संख्या 10,98,903 होगी. जुलाई में होने वाले चुनाव से पहले, जब तक कि अन्य दलों के दल-बदल से भाजपा मजबूत नहीं हो जाती, तब तक एनडीए के पास लगभग 5.39 लाख वोट होंगे.

मोदी के दिमाग में क्या चल रहा... 

वर्ष 2017 में शीर्ष पद के लिए रामनाथ कोविंद को चुनकर नरेंद्र मोदी ने देश को चौंका दिया था. कोविंद दौड़ में शामिल नहीं थे, न ही किसी ने उनके बारे में विचार किया था, लेकिन मोदी ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल को चुना, जो एक लो-प्रोफाइल दलित नेता थे. राज्यसभा में वह बैक-बेंचर थे और उन्होंने 1998-2002 के बीच भाजपा के दलित मोर्चे का नेतृत्व किया. हालांकि, कम ही लोग जानते थे कि उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से मजबूत संबंध थे और उन्होंने जनता की भलाई के लिए अपने पूर्वजों का घर संघ परिवार को बहुत पहले ही दान कर दिया था. पद की दावेदारी में कोविंद की जाति भी भारी पड़ी.

इस बात से कोई सहमत हो या न हो, लेकिन इस चुनाव में जाति ने एक जबर्दस्त भूमिका निभाई, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी देश में दलितों को एक संकेत देना चाहते थे, विशेष रूप से गुजरात में जहां वर्ष 2017 के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. कोविंद का ताल्लुक कोली समुदाय से है, जो गुजरात के मतदाताओं का लगभग 24 प्रतिशत है.

गुजरात में कोली समुदाय पाटीदारों के विरुद्ध होने लगा था. गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद मोदी की आशंका सच हो गई, क्योंकि वहां भाजपा 99 सीटों के साथ मुश्किल से बहुमत हासिल कर सकी थी. दिलचस्प बात यह है कि गुजरात में कोली समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में रखा गया है. जबकि, केंद्र उन्हें अनुसूचित जाति के रूप में मानता रहा है, खासकर दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान में.

दूसरी बात, मोदी अपनी ओबीसी साख भी साबित करना चाहते थे और इसी के चलते उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एक और ओबीसी सह दलित को चुना. इसलिए, राजनीतिक पंडितों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया है कि पीएम मोदी इस साल कौन-सा मापदंड अपना सकते हैं.

नाम, जो चर्चा में हैं... 

इस प्रतिष्ठित पद के लिए एक नाम जो स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है वह है उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का. वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस पद के लिए नायडू का चुनाव करके भी सबको चौंका दिया था. शुरू में वह भी बहुत इच्छुक नहीं थे. लेकिन, उन्होंने पिछले पांच वर्षों के दौरान अपने कर्तव्यों का बहुत अच्छी तरह से निर्वाह किया है और देश के शीर्ष पद के लिए एक स्वाभाविक पसंद हैं.

वह आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं और ओबीसी समुदाय से भी उनका संबंध है. लेकिन एक बार नायडू को निजी तौर पर यह कहते सुना गया था कि पार्टी ने उन्हें बहुत कुछ दिया है और अब सेवानिवृत्त होकर दक्षिण भारत में सामाजिक कार्य करना चाहेंगे.

राष्ट्रपति पद के लिए एक नाम और भी चल रहा है, वह है बी.एस. येदियुरप्पा का. वह इसलिए कि इस बार कर्नाटक में भाजपा कुछ कमजोर स्थिति में है. उनके बारे में कुछ अनुमान लगाना कठिन है, बहुत संभव है कि वह इसके लिए राजी न हों.

कई लोग संभावित विकल्प के रूप में तेलंगाना की राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन का नाम भी सुझा रहे हैं. वह तमिलनाडु की रहने वाली हैं. वर्ष 2017 में मोदी द्वारा रामनाथ कोविंद को चुनने के बाद से कुछ प्रमुख राज्यपालों की भी इस पद पर नजर है. आरएसएस, मोदी से केवल एक ही अनुरोध करता है- आरएसएस से जुड़े किसी व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाएं. इस संबंध में विस्तृत विवरण के लिए इसी कॉलम की प्रतीक्षा करें.

उधर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव राष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी उम्मीदवार को खड़ा करने के उद्देश्य से दस गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों को जुटाने का सक्रिय प्रयास कर रहे हैं. इस सिलसिले में शरद पवार और नीतीश कुमार के नाम की चर्चा है.