दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016




कवर्धा, 28 अगस्त 2021। जिला श्रमपदाधिकारी शोएब काजी ने बताया कि उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका (सिविल) क्रमांक 1128/2018 कौशिक कुमार मजुमदार विरूध्द भारत संघ एवं अन्यश् के संदर्भ में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 में दिव्यांगजनों के साथ दुर्व्यव्यहार जैसे कि विभाग द्वारा संगठित या असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत दिव्यांगजन श्रमिकों का जनता की निगाह में अपमानित करता है या अपमान करने के आशय से भयभीत करता है। किसी दिव्यांगजन पर, उसका अनादर के आशय से हमला करता है या बल का प्रयोग करता है या दिव्यांग महिला की लज्जा भंग करता है। किसी दिव्यांगजन पर वास्तविक प्रभार या नियंत्रण रखते हुए, स्वेच्छया या जानते हुए उसे भोजन या तरल पदार्थ देने से इन्कार करता है। किसी दिव्यांग बालक या महिला की इच्छा पर प्रास्थिति का उपयोग करता है और उस स्थिति का उपयोग उनका लैंगिक रूप से शोषण करने के लिए करता है। दिव्यांग के किसी अंग या इंद्रिय या समर्थक के उपयोग को स्वैच्छिक रूप से क्षति पहुंचाता है, हानि करता है या दखल देता है। किसी दिव्यांग महिला पर किये जाने के लिए किसी चिकित्सीय प्रक्रिया को पूरा करता है, संचालन करता है, या निदेश करता है, जिससे उसकी अभिव्यक्त सम्मति के बिना गर्भावस्था की समाप्ति होती है या समाप्त होने की संभावना है, सिवाय उन मामलों के संरक्षक की सहमति से भी दिव्यांगता के गंभीर मामलों में गर्भावस्था और समापन के लिए चिकित्सीय प्रक्रिया की गई है।
जिला श्रमपदाधिकारी शोएब काजी ने बताया कि उक्त दुर्व्यव्यहारों के लिए दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 की धारा 92 के तहत् कारावास 6 माह से 5 वर्ष तक का कारावास एवं जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान है।