CG VIDEO बड़ी खबर: पुलिस ने बनाया ग्रीन कॉरिडोर.... नेशनल वॉलीबॉल प्लेयर के बेटे की हालत बिगड़ी.... सिर तक फैला मलेरिया.... पुलिस ने 28 मिनट में तय कराई 30 KM की दूरी.... देखें VIDEO.......

CG VIDEO बड़ी खबर: पुलिस ने बनाया ग्रीन कॉरिडोर.... नेशनल वॉलीबॉल प्लेयर के बेटे की हालत बिगड़ी.... सिर तक फैला मलेरिया.... पुलिस ने 28 मिनट में तय कराई 30 KM की दूरी.... देखें VIDEO.......

दुर्ग। यातायात पुलिस दुर्ग द्वारा एक बार फिर ग्रीन कॉरिडोर बनाकर एंबुलेंस को मात्र 28 मिनट में सेक्टर 9 हॉस्पिटल से एम्स हॉस्पिटल रायपुर पहुंचाया गया। सेक्टर 9 अस्पताल में भर्ती 4 वर्ष के बालक के स्वास्थ्य में सुधार ना होने पर हायर सेंटर रेफर पर परिवार वालों के द्वारा वेंटीलेटरलेटर युक्त एंबुलेंस को जल्द से जल्द एम्स रायपुर पहुंचाने हेतु पुलिस से सहयोग मांगे जाने पर यातायात पुलिस दुर्ग के द्वारा ग्रीन कॉरिडोर बनाकर सुरक्षित पहुंचाया गया ।

 

 

भिलाई के सेक्टर-1 के रहने वाले वॉलीबॉल के नेशनल प्लेयर रहे सुनील यादव के 4 साल के बेटे को इलाज के लिए पुलिस ने ग्रीन कॉरिडोर बनाकर 28 मिनट में 30 किलोमीटर दूर रायपुर AIIMS पहुंचाया। सुनील के बेटे अंशु की तबीयत सोमवार की रात अचानक बिगड़ गई थी। परिजन उसे भिलाई स्टील प्लांट सेक्टर-9 हॉस्पिटल लेकर पहुंचे थे। मंगलवार दोपहर 12 बजे तक हालत ज्यादा बिगड़ गई। अंशु की मलेरिया रिपोर्ट पॉजिटिव आई और मलेरिया सिर तक पहुंच गया है।

 

 

मंगलवार को बच्चे की हालत इतनी गंभीर हो गई थी कि वह अपने परिजन को ही नहीं पहचान पा रहा था। इसके चलते ही उसे रायपुर AIIMS रेफर किया गया था। डॉक्टर्स ने परिजन को बताया कि मलेरिया ने उसे 60% तक चपेट में ले लिया है। बच्चे के सिर पर मलेरिया फैल चुका है। दोपहर 2 बजे पेट्रोलिंग टीम बच्चे को लेकर AIIMS रायपुर के लिए रवाना हुई और ढाई बजने से पहले ही रायपुर AIIMS के गेट पर पहुंच गई। इसके बाद परिजनों ने राहत की सांस ली है। 

 

 

क्या होता है ग्रीन कॉरिडोर?

 


ग्रीन कॉरिडोर एक निश्चित समय के लिए मार्ग को किसी मरीज के लिए खाली कराना या ट्रैफिक कंट्रोल करने को कहते हैं। इसे मेडिकल इमरजेंसी जैसे कि आर्गन ट्रांसप्लांट या मरीज की क्रिटिकल स्थिति को देखते हुए बनाया जाता है। इसमें दो जिले या दो शहरों की पुलिस मिलकर मरीज को एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल तेज रफ्तार एंबुलेंस में ट्रांसफर करती है। इसके तहत हॉस्पिटल पहुंचाने के लिए रास्ते पर आने वाले ट्रैफिक को 60-70 प्रतिशत तक कम करने की कोशिश करती है। जिससे मरीज जल्द से जल्द पहुंच सके।

 

 

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