High Court on Divorce Case: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, अब तलाक के बाद पत्नी भी देगी पति को पैसा….पढ़िए पूरी खबर…..
High Court on Divorce Case: High Court's big decision, now after divorce, wife will also give money to husband
High Court on Divorce Case: पति पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद में जब गुजारे भत्ते की बात आती है तो ज्यादातर भरण-पोषण पाने के अधिकार का आदेश पत्नियों के पक्ष में जाता है, लेकिन कानून में दोनों को एक दूसरे से गुजारा भत्ता मांगने और पाने का अधिकार है। बांबे हाई कोर्ट ने एक आदेश में तलाक होने के बाद पत्नी द्वारा पति को 3,000 रुपये महीने अंतरिम भरण पोषण के तौर पर देने के निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया है। High Court on Divorce Case
हाई कोर्ट ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-25 के तहत पति पत्नी दोनों को एक दूसरे से भरण पोषण मांगने का अधिकार है। इतना ही नहीं, तलाक होने के बाद भी पति व पत्नी एक दूसरे से भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकते हैं और कोर्ट इसका आदेश दे सकता है। High Court on Divorce Case
कानून की इस व्याख्या ने भरण पोषण के कानूनी अधिकार को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है।बांबे हाई कोर्ट ने पत्नी की याचिका खारिज करते हुए निचली अदालत के दो आदेशों पर अपनी मुहर लगाई है। High Court on Divorce Case
एक आदेश पत्नी द्वारा 3,000 रुपये महीने पति को गुजारा भत्ता देने का था और दूसरे में पत्नी द्वारा आदेश पर अमल नहीं किए जाने पर वह जिस स्कूल में पढ़ाती है वहां के प्रधानाचार्य को आदेश दिया गया था कि महिला के वेतन से प्रतिमाह 5,000 रुपये काटकर कोर्ट में भेजे जाएं। High Court on Divorce Case
हाई कोर्ट ने दोनों आदेशों को सही ठहराते हुए मामले में दखल देने से मना कर दिया और महिला की याचिका खारिज कर दी।महिला की ओर से जोर देकर कहा गया था कि उसका तलाक हो चुका है और इसकी डिक्री 2015 में पारित हो चुकी है। ऐसे में पति उससे भरण पोषण की मांग नहीं कर सकता। हाई कोर्ट ने यह दलील खारिज कर दी। High Court on Divorce Case
हाई कोर्ट ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 की व्याख्या करते हुए कहा कि पति या पत्नी कोई भी अर्जी दाखिल कर स्थायी भरण पोषण दिलाने की मांग कर सकता है और कोर्ट डिक्री पास करते वक्त या उसके बाद किसी भी समय ऐसी अर्जी पर भरण पोषण देने का आदेश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि कानून में कही गई लाइन ‘उसके बाद किसी भी समय’ को सीमित अर्थ में नहीं लिया जा सकता और न ही कानून बनाने वालों की ऐसी मंशा हो सकती है। High Court on Divorce Case
कोर्ट ने कहा कि अगर इसी धारा की उपधारा दो और तीन को देखा जाए तो उसमें कोर्ट को किसी भी समय बदली परिस्थितियों के मुताबिक आदेश में बदलाव करने का अधिकार है। हाई कोर्ट ने कहा कि धारा-25 सिर्फ तलाक की डिक्री तक सीमित नहीं है। डिक्री धारा-नौ में दाम्पत्य संबंधों की पुनस्र्थापना की हो सकती है, धारा-10 में ज्युडिशियल सेपरेशन की हो सकती है या फिर धारा-13 में तलाक की हो सकती है अथवा धारा-13बी में आपसी सहमति से तलाक की हो सकती है। High Court on Divorce Case
तलाक को अगर छोड़ दिया जाए तो बाकी डिक्रियों में पक्षकार पति पत्नी ही रहते हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि तलाक के बाद पति या पत्नी ऐसी अर्जी नहीं दाखिल कर सकते। भरण पोषण के प्रविधान गुजारा करने में असमर्थ जीवनसाथी के लाभ के लिए हैं। इस धारा का इस्तेमाल पति या पत्नी में से कोई भी कर सकता है चाहे डिक्री धारा-नौ से लेकर 13 में किसी भी तरह की क्यों न पारित हुई हो, उस डिक्री से शादी टूट चुकी हो या बुरी तरह प्रभावित हुई हो। High Court on Divorce Case
हाई कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच तलाक की डिक्री से धारा-25 के प्रविधान का दायरा सीमित नहीं किया जा सकता।इस कानूनी व्यवस्था पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि हाई कोर्ट ने वही कहा है जो कानून में लिखा है। कानून पति-पत्नी दोनों को गुजारे भत्ते का दावा करने का अधिकार देता है। ऐसा आदेश देते वक्त कोर्ट सिर्फ यह देखता है कि मांग करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है कि नहीं। वह भत्ता पाने के मानक पूरे करता है या नहीं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पत्नी द्वारा पति को भरण-पोषण देने का आदेश बहुत कम सुनने को मिलते हैं। High Court on Divorce Case
11 वर्ष न्यायाधीश रहने के दौरान उनके सामने पत्नी द्वारा गुजारा भत्ता मांगने के तो बहुत से मामले आए, लेकिन पति द्वारा भरण-पोषण मांगने का कोई मामला नहीं आया। कुछ कानूनविदों का यह भी मानना है कि भरण-पोषण की अर्जियां तलाक की डिक्री पास करते वक्त ही निपटा दी जानी चाहिए। तलाक होने के बाद भरण-पोषण का दावा नहीं किया जा सकता। तलाक की डिक्री देने वाले जज का दायित्व है कि वह उसी समय इन पहलुओं को देखे और आदेश दे। High Court on Divorce Case
