अंतर का खुराक मिलने पर बाहर के खुराक की भी जरूरत नहीं रहती है

अंतर का खुराक मिलने पर बाहर के खुराक की भी जरूरत नहीं रहती है
अंतर का खुराक मिलने पर बाहर के खुराक की भी जरूरत नहीं रहती है

अंतर का खुराक मिलने पर बाहर के खुराक की भी जरूरत नहीं रहती है

ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों भाईयों के मां और पिता कौन है

लखनऊ (उ.प्र.)। समझो, स्वयं देखने सुनने वाला ही तो बता समझा दिखा और सुना सकता है तो देवी देवताओं के दर्शन जीते जी, मृत्यु के पहले करवाने वाले, दिव्य धुन अनहद बाजे सुनाने वाले, त्रिदेव के उपर के लोकों की सैर कराने वाले, राम चरित मानस का असली अर्थ समझाने वाले, मीरा बाई को जो नाम रूपी अंतर की दौलत मिली वो देने वाले, अंतर की दिव्या रचना को इशारे में बताने और दिखाने वाले, इस समय के मसीहा, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने 21 फरवरी 2020 प्रातः लखनऊ में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों भाई की मां आद्या महाशक्ति जिनको महामाया मां देवी आदि लोग कहते हैं। इनके पिता का ज्यादा वर्णन नहीं आया है। उनके बारे में ज्यादातर सन्तमत के लोगों ने ही बताया है, जिनको आप काल भगवान सन्तमत में कहते हो, आप ईश्वर कहते हो, मुसलमान लोग खुदा कहते हैं, वह इनके पिता हैं। इन तीनों ने सृष्टि की रचना किया है।

जिस लोक में जाते हैं उसी लोक जैसे दिखने लगते हैं

महाराज ने 21 फरवरी 2020 प्रातः लखनऊ में बताया कि शिव का लोक है, एकदम जीवात्मायें खचाखच भरी हुई हैं। वहां पर सभी जीवात्मायें शिव जैसी दिखाई पड़ती है। गोस्वामी जी ने लिखा- कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा। उदर माझ सुनु अंडज राया। देखेउँ बहु ब्रह्मांड निकाया। एक नहीं सब शिव दिखाई पड़े। विष्णु लोक में सब विष्णु जैसे ही दिखाई पड़ते हैं। ब्रह्मा लोक में ब्रह्मा जैसे ही दिखाई पड़ते हैं। बहुत बडे-बड़े लोक हैं।

अंतर का खुराक मिलने पर बाहर के खुराक की भी जरूरत नहीं रहती है

जिस बाजे को वह मालिक बजा रहा है उस बाजे को जब सुनोगे तो मस्ती आएगी। लेकिन वह इन कानों से नहीं सुना जा सकता। अंदर के कान से सुनाई पड़ता है। तब.. हरि गुण गाए के, मीरा मगन भई। मीरा नाचने लगती थी, जब मस्त हो जाती थी, जब वह आवाज सुनाई पड़ती थी। भावे अन्न न पानी रे। उसी के लिए सब कुछ छोड़ देती थी कि वह बराबर मिलता रहे। और जब वह खुराक मिल जाता है तब इस खुराक की जरूरत भी नहीं रहती है और आदमी मरता भी नहीं। शरीर भले ही कमजोर हो जाए, मांस सूख जाये, शरीर से फावड़ा भले न चला पावे लेकिन बोलने में चलने में काम करने में शक्ति बराबर बनी रहती है। अंदर वाले कान से अनहद वेदवाणी आकाशवाणी सुना जाता है और बाहर के कान से बाहर की आवाज सुनाई पड़ती है। अंदर की आंख से ऊपर के लोकों की चीजें दिखाई पड़ती है। बाहर की आंखों से बाहर की चीजें दिखाई पड़ती है। वह बिना भूमि एक महल बना है, तामे ज्योति अपारी रे, अंधा देख देख सुख पावे, बात बतावे सारी रे। देखा लोगों ने तभी तो लिखा। ऐसे नहीं लिख देते हैं, कि ऐसे पागल हो करके सब लिख दिए। दुनिया में पागल किसको कहते हैं? जो आदमी जैसा नहीं रहता है। वह जब पा जाता है तो उसको यहां की चीजें बेकार लगने लगती है तो उसे लोग पागल कहने लगते हैं। मीरा को भी लोग पागल कहते थे। वह ऐसा पागल नहीं रहता है कि उसका दिल दिमाग बुद्धि काम न करें। जब उधर का नाच देखने लगता है तो उसी में मस्त हो जाता है, घरवाले चिल्लाते रहते हैं, चलो खाओ खाओ, अरे पागल हो गए क्या? ऐसा होता है।

पिंडी ब्रह्मांड दरवाजे अलग-अलग है

महाराज ने 3 मार्च 2019 दोपहर लखनऊ में बताया कि यह शरीर एक मानव मंदिर है। इसमें दरवाजे हैं। ये पिंडी दरवाजा है, ब्रह्मांडी दरवाजा अलग है। उसका दसवां द्वारा अलग है और इसका दसवां द्वार अलग है। आंख कान मुंह यह सब इसके दरवाजे हैं। और अंदर का दरवाजा अलग है। वहीं से ऊपर का दरवाजा शुरू होता है, अंदर के नेत्र का और चतुश अंत: करण का और सहस्त्र दलकमल के नीचे और ऊपर, त्रिकुटी के नीचे और ऊपर, और सुन्न के नीचे और ऊपर। उसके बाद दसवां द्वार। अंदर में वो दरवाजा। वह तो आप जब साधना करोगे तब आपको पता चलेगा कि उधर भी दरवाजा है। दसवां द्वार ब्रह्मांडी दसवां द्वार कहलाता है और पिंडी दसवां द्वार जहां से जीवात्मा निकलती है, जहां पर्दा हटता है, चतुश अंत: कारण में जो कर्म जमा है, जब साफ होते हैं तो वह दिखाई पड़ता है।