आज मनाया जाएगा दशहरा का पर्व: दशहरे का ये उपाय आपको बना देगा धनवान.... दशहरा पूजा का कौन सा मुहूर्त रहेगा सबसे शुभ.... जानिए पूजा विधि, मंत्र, कथा और महत्व.... पढ़िए दशहरा पर क्यों होता है शस्त्र पूजन.....

आज मनाया जाएगा दशहरा का पर्व: दशहरे का ये उपाय आपको बना देगा धनवान.... दशहरा पूजा का कौन सा मुहूर्त रहेगा सबसे शुभ.... जानिए पूजा विधि, मंत्र, कथा और महत्व.... पढ़िए दशहरा पर क्यों होता है शस्त्र पूजन.....


डेस्क। दशहरा अश्विन माह की शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार आज 15 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को देशभर में ये पर्व मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से शस्त्र पूजन का विधान है। दशहरा को विजय दशमी भी कहते हैं। इस दिन मां दुर्गा और भगवान श्रीराम का पूजन होता है। मान्यता है कि इस दिन किए जाने वाले कामों का शुभ फल अवश्य प्राप्त होता है। यह भी कहा जाता है कि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए इस दिन शस्त्र पूजा करनी चाहिए। इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के असुर का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से मुक्त कराया था। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन समय से इस दिन सनातन धर्म में शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है। इस दिन लोग शस्त्र पूजन के साथ ही वाहन पूजन भी करतें हैं।

दशहरा पूजा मुहूर्त: 

विजयादशमी पूजा का मुहूर्त दोपहर 01:16 से 03:34 बजे तक रहेगा। सबसे शुभ मुहूर्त यानी विजय मुहूर्त की बात करें तो वो दोपहर 02:02 बजे से 02:48 बजे तक रहेगा। दशमी तिथि की शुरुआत 14 अक्टूबर को शाम 06:52 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 15 अक्टूबर को शाम 06:02 बजे पर होगी।

दशहरा पूजा विधि :

-दशहरा की पूजा अभिजीत, विजयी या अपराह्न काल में की जाती है।
-इस पूजा को करने के लिए घर की पूर्व दिशा और ईशान कोण सबसे शुभ माना गया है।
-जिस स्थान पर पूजा करनी है उसे साफ करके चंदन के लेप के साथ 8 कमल की पंखुडियों से अष्टदल चक्र बनाएं।
-अब संकल्प करते हुए देवी अपराजिता से परिवार की सुख और समृद्धि की कामना करें।
-अब अष्टदल चक्र के मध्य में ‘अपराजिताय नमः’ मंत्र के साथ मां देवी की प्रतिमा विराजमान कर उनका आह्वान करें।
-अब मां जया को दाईं तरफ और मां विजया को बाईं तरफ विराजमान करके उनके मंत्र क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः से उनका आह्वान करें।
-अब तीनों माताओं की विधि विधान पूजा-अर्चना करें। इसमें 1. पाद्य 2. अर्घ्य 3. आचमन 4. स्नान 5. वस्त्र 6. आभूषण 7. गन्ध 8. पुष्प 9. धूप 10. दीप 11. नैवेद्य 12. आचमन 13. ताम्बूल 14. स्तवन पाठ 15. तर्पण 16. नमस्कार शामिल है।
-देवी की पूजा के बाद भगवान श्रीराम और हनुमानजी की पूजा भी करें।
-अंत में माता की आरती उतारकर सभी को प्रसाद बांटें।
-अब प्रार्थना करें- हे देवी माँ! मैनें यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार की है। कृपया मेरी यह पूजा स्वीकार करें। पूजा संपन्न होने के बाद मां को प्रणाम करें।
-हारेण तु विचित्रेण भास्वत्कनकमेखला। अपराजिता भद्ररता करोतु विजयं मम। मंत्र के साथ पूजा का विसर्जन करें।
-इसके बाद रावण दहन के लिए बाहर जाएं।
-रावण दहन के बाद शमी की पूजा करें और घर-परिवार में सभी को शमी के पत्ते बांटने के बाद बच्चों को दशहरी दें।
-इस दिन माता की पूजा के बाद सैनिक या योद्धा लोग शस्त्रों की पूजा भी करते हैं। इसके साथ ही पूजा पाठ करने वाले पंडितजन मां सरस्वती और ग्रंथों की पूजा करते हैं। वहीं व्यापारी लोग इस दिन अपने बहीखाते और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं।

दशहरा पर क्यों खाया जाता है पान? 

दशहरा पर रावण दहन के बाद पान खाने की परंपरा है। इस पौराणिक परंपरा को असत्य पर सत्य की जीत से जोड़ा जाता है। पान खाने से पहले इसे हनुमानजी को अर्पित किया जाता है। दरअसल, दशहरा के पर्व के बाद से संक्रामक बीमारियां बढ़ जाती हैं और पान स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना गया है, इसीलिए इस दिन पान खाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि नवरात्रि का व्रत रखने से पाचन शक्ति पर प्रभाव पड़ता है इस परिस्थिति में पान का सेवन करने से सेवन किए गए पदार्थों का पाचन अच्छी तरह से होता है।

क्यों मनाया जाता है दशहरा: 

पौराणिक कथा के अनुसार रावण ने भगवान श्री राम के 14 वर्ष के वनवास के दौरान मां सीता का हरण कर लिया गया था। भगवान श्री राम ने अधर्मी रावण का नाश करने के लिए उससे कई दिनों तक युद्ध किया था। मान्यताओं अनुसार रावण से इस युद्ध के दौरान भगवान श्री राम ने अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में लगातार नौ दिनों तक मां दुर्गा की अराधना की थी। मां दुर्गा के आशीर्वाद से भगवान श्री राम ने दसवें दिन रावण का वध कर दिया था। कहा जाता है जिस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था उस दिन अश्विन मास की दशमी तिथि थी जिसे हर साल विजयादशमी यानी दशहरा के रूप में मनाया जाता है। दशहरा के दिन रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण को बुराई का प्रतीक मानकर उनके पुतले जलाए जाने की परंपरा है।

इस पावन दिन धन- लाभ के लिए शमी वृक्ष का पूजन करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन शमी वृक्ष का पूजन करना शुभ होता है। दशहरा के दिन शमी के पत्तों की पूजा करने के अलावा उसके पत्तों को सोना मानकर दूसरों को देने का चलन भी है। दशहरे के पावन दिन शमी वृक्ष का पूजन करने से मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। 

प्रदोष काल में करें शमी वृक्ष की पूजा

विजयदशमी के दिन प्रदोषकाल के दौरान शमी वृक्ष का पूजन करने से कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। पूजन के दौरान शमी के कुछ पत्ते तोड़कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें। इसके बाद एक लाल कपड़े में अक्षत, एक सुपारी और शमी की कुछ पत्तियों को डालकर उसकी एक पोटली बना लें। इस पोटली को घर के किसी बड़े व्यक्ति से ग्रहण करके भगवान श्री राम की परिक्रमा करने से लाभ मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार घर में शमी का वृक्ष लगाने से ईश्वर की कृपा व्यक्ति पर बनी रहती है। इसके अलावा शनि देव के भी प्रकोप से व्यक्ति बचा रहता है। कहा जाता है कि कवि कलिदास को शमी के वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने से ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।