पाकिस्तान सियासी संकट : संविधान के मुताबिक देशद्रोह क्या है और कौन कहलाता है 'गद्दार' .
Pakistan Political Crisis: According to the Constitution, what is treason and who is called 'traitor'.




NBL, 04/04/2022, Lokeshwer Prasad Verma,.. Pakistan Political Crisis: According to the Constitution, what is treason and who is called 'traitor'.पाकिस्तान का सुप्रीम कोर्ट विपक्ष की याचिका पर अब मंगलावर को सुनवाई करेगा. विपक्ष ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर करने की कोशिश नाकाम किए जाने की कोशिश को कोर्ट में चुनौती दी है, पढ़े विस्तार से...।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया था.
पाकिस्तान के चीफ जस्टिस उमर अता बांदियाल ने सोमवार को कहा, "कोर्ट इस मामले में आज (सोमवार को) कोई वाजिब आदेश जारी नहीं करेगा."
इससे पहले विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने एक याचिका दायर कर कहा था कि मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के सभी 16 जजों की बेंच बनाई जानी चाहिए. लेकिन कोर्ट ने ये मांग खारिज कर दी.
कोर्ट ने कहा '' विपक्ष को अगर हम पर भरोसा नहीं है तो हमारे यहाँ मौजूद रहने का कोई मतलब नहीं.''
इस बीच, इमरान ख़ान ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के लिए पाकिस्तान के पूर्व चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद का नाम राष्ट्रपति के पास भेजा है. रेडियो पाकिस्तान के मुताबिक राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान और नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता रहे शाहबाज़ शरीफ़ से कार्यवाहक प्रधानमंत्री के लिए ऐसा नाम मांगा है, जिस पर सहमति हो.
इस बीच इमरान ख़ान ने देश के लोगों से अपील की है कि वो मौजूदा राजनीतिक गतिरोध का विरोध करें. दूसरी तरफ विपक्ष ने भी इमरान ख़ान और उनके समर्थकों पर हमला बोला है.
इस बीच अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने बयान जारी करके कहा है कि नई सरकार के गठन के बाद नए कार्यक्रमों को लेकर पाकिस्तान से बातचीत की जाएगी. फिलहाल जो कार्यक्रम चल रहे हैं, उन्हें नहीं रोका जाएगा. आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे पाकिस्तान को अभी तक आईएमएफ़ से तीन अरब डॉलर की मदद मिली है.
अब हर किसी की नज़र सुप्रीम कोर्ट पर है.
'गंभीर देशद्रोह' का आरोप
पाकिस्तान में रविवार को नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर क़ासिम सूरी ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव को असंवैधानिक बताकर ख़ारिज कर दिया. विपक्ष ने इसे लेकर संविधान के उल्लंघन का आरोप लगाया और उनके ख़िलाफ़ संविधान की धारा 6 के तहत कार्रवाई की मांग की.
क़ासिम सूरी ने अविश्वास प्रस्ताव को ख़ारिज करते हुए कहा, "अविश्वास प्रस्ताव संविधान और राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है. मैं ये प्रस्ताव रद्द करने की रूलिंग देता हूँ. सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है."
इसके बाद इमरान ख़ान ने देश को बधाई दी और कहा, ''राष्ट्रपति को एडवाइस जाने के बाद विधानसभा भंग हो जाएगी और फिर आगे जो भी प्रक्रिया है, अगले चुनाव या अंतरिम सरकार की अब शुरू हो जाएगी.''
उन्होंने कहा कि विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव वास्तव में बाहरी हस्तक्षेप के जरिए सरकार को गिराने की साज़िश थी, जिसे नाकाम कर दिया गया है.
हालांकि, विपक्ष के नेता शाहबाज़ शरीफ़ ने स्पीकर क़ासिम सूरी और प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पर "गंभीर देशद्रोह" का आरोप लगाते हुए कहा, कि दोनों पर पाकिस्तान के संविधान के "अनुच्छेद छह" लगेगा. ये अनुच्छेद देशद्रोह के बारे में है.
बीबीसी ने यह पता लगाने की कोशिश की है, कि पाकिस्तान के संविधान की नज़र में देशद्रोह क्या है और देशद्रोही कौन होता है. देशद्रोह कौन तय करता है और देशद्रोही के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का अधिकार संविधान किसे देता है?फिर यह प्रक्रिया कैसे होती है? पाकिस्तान में इसके उदाहरण मौजूद हैं.
देशद्रोही कौन है?
पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि "हर वो व्यक्ति देशद्रोही है, जो ताक़त के इस्तेमाल या किसी भी असंवैधानिक तरीक़े से पाकिस्तान के संविधान को निरस्त करता है, भंग करता है, निलंबित करता है या अस्थायी रूप से भी निलंबित करता है या ऐसा करने की कोशिश भी करता है, या ऐसा करने की साजिश में शामिल होता है."
यह संवैधानिक परिभाषा का वह रूप है जो संविधान में 18वें संशोधन के बाद सामने आया.
क़ानून विशेषज्ञ एसएम ज़फ़र के अनुसार, "देशद्रोह" शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1973 के संविधान में किया गया था. हालांकि, उस समय देशद्रोह की धारणा में अठारहवें संशोधन के बाद बदलाव आया.
इसमें जो जोड़ा गया वह इस प्रकार था कि "संविधान को निलंबित या अस्थायी रूप से भी निलंबित करने वाला व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने वाला व्यक्ति देशद्रोही होगा."
क्या नहीं है देशद्रोह?
एसएम ज़फ़र ने बीबीसी से कहा, "राष्ट्रीय हित के ख़िलाफ़ काम करने वाला व्यक्ति" संविधान के अनुसार देशद्रोह की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है. वह "राष्ट्रीय सुरक्षा" की श्रेणी में आता है जिसमें कई उप प्रावधान हो सकते हैं.
इनमें "सेना में बग़ावत भड़काना, क़ानून-व्यवस्था के हालात पैदा करना और दुश्मन देश के साथ मिलकर साज़िश करना" शामिल है.
इस पर संविधान का अनुच्छेद 6 तब तक नहीं लग सकता, जब तक कि ये सब बातें संविधान को निरस्त करने के स्तर तक न पहुंच जाएं.
क़ानून के जानकार बाबर सत्तार इससे सहमत हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा कि देशद्रोह की संवैधानिक अवधारणा संविधान को निलंबित करने से जुडी हुई है. यानी अगर संविधान को निलंबित या निरस्त किया जाये.
इसका इतिहास भी यही है, इसलिए संविधान में देशद्रोह की अवधारणा को 1973 में शामिल किया गया था, क्योंकि इससे पहले सैन्य सरकारें आती रही थीं.
इसमें यह प्रावधान भी शामिल किया गया था कि कोई भी अदालत देशद्रोह के कृत्य की पुष्टि नहीं करेगी.
देशद्रोह की इस संवैधानिक अवधारणा को बहुत ही सावधानीपूर्वक तैयार की गई है, इसलिए हम अक्सर ये सोचते हैं कि अगर कोई किसी संस्था के ख़िलाफ़ कुछ बोल देता है, तो वह देशद्रोह की श्रेणी में आ जाएगा. मुझे नहीं लगता कि यह सच है. '
देशद्रोही कौन घोषित करेगा?
दोनों विशेषज्ञ मानते हैं कि देशद्रोह का निर्धारण करना और उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करना सिर्फ़ और सिर्फ़ संघीय सरकार का अधिकार है. इस बात की जांच के बाद संघीय सरकार शिकायत दर्ज करती है.
इसे स्पष्ट करते हुए एसएम ज़फ़र ने कहा कि देशद्रोह की कार्रवाई गृह मंत्री द्वारा शुरू की जा सकती है, लेकिन इसका अंतिम फ़ैसला प्रधानमंत्री और उनकी संघीय कैबिनेट करती है.
देशद्रोह के मुक़दमे की कार्यवाही को स्पष्ट करते हुए बाबर सत्तार ने कहा कि साल 1973 के संविधान में देशद्रोह की अवधारणा को शामिल करने के बाद, एक क़ानून बनाया गया था, जिसमें कहा गया था, कि संघीय सरकार यह तय करेगी कि किसी व्यक्ति ने देशद्रोह किया है या नहीं.
इसके बाद मामले की सुनवाई के लिए एक विशेष अदालत का गठन किया जाएगा.
वो याद दिलाते हैं, ''जैसा कि हमने पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के ख़िलाफ़ मुक़दमे में देखा.''
देशद्रोही कैसे साबित होगा?
बाबर सत्तार का कहना है कि यह एक फ़ौजदारी का मुक़दमा होता है जिसमें मौत या उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है.
उनके मुताबिक, ''सबूत की ज़िम्मेदारी भी आरोप लगाने वाले, यानी सरकार पर होगी.''
एसएम ज़फ़र का कहना है कि देशद्रोह की संवैधानिक अवधारणा के मामले में सबूत सामने होते हैं.
अगर आने वाली सरकार ने जाने वाली सरकार का तख्ता संवैधानिक तरीक़े से नहीं पलटा है, तो इसका मतलब है कि संविधान निरस्त किया गया है. दूसरा यह कि जब वो सरकार में आकर कहे कि 'हमने संविधान को निरस्त कर दिया है तो यह दूसरी गवाही होती है।