धनतेरस एवं दीपावली पर विशेष। रतनपुर में विराजित लखनी देवी की धनतेरस व दीपावली में होती है विशेष पूजा, होता है “महालक्ष्मी” का राजसी श्रृंगार ।




बिलासपुर,अकाल व महामारी से बचने राजा रत्नदेव के मंत्री गंगाधर ने बनवाया था मंदिर को, लखनी देवी का स्वरूप अष्ट देवियों में सौभाग्य देवी का
रतनपुर में पर्वत मालाओं की श्रृंखला में इकवीरा पहाड़ी पर स्थित प्राचीन एवं ऐतिहासिक “महालक्ष्मी” का मंदिर स्थित है जो देश विदेश के हजारों लाखों भक्तों के आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह मंदिर वर्तमान में लखनी देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।लखनी देवी शब्द लक्ष्मी का ही अपभ्रंश है।जो साधारण बोलचाल की भाषा में रूढ़ हो गया है वैसे तो रतनपुर को मंदिरों की नगरी के नाम से जाना जाता है जिनमे लखनीदेवी का मंदिर भी एक है जो की धनतेरस एवं दीपावली त्योहार के अवसर पर संपूर्ण छ.ग. में अपना एक अलग ही महत्व एवं पहचान रखता है। बिलासपुर जिला मुख्यालय से महज 25 किलो मीटर की दूरी पर रतनपुर कोटा मार्ग में हरितिमाच्छादित दुर्गम पहाड़ी पर लखनी देवी (महालक्ष्मी) का यह मंदिर स्थित है यह छ.ग.का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां पर धन वैभव सुख एवं समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी मां “लक्ष्मी” साक्षात रूप में विराजमान है।जिसके दर्शन मात्र से ही मानव जीवन में दुख रोग दरिद्रता शोक व पापों का शमन होता है तथा जीवन में अनुकूलता व संपन्नता आती है ।
अकाल की विभीषिका से बचने राजा के मंत्री ने बनवाया था मंदिर।
लखनी देवी मंदिर निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि राजा रत्नदेव तृतीय के प्रधानमंत्री गंगाधर ने 1179 ईस्वी में इसका निर्माण कराया था। इस मंदिर के संबंध में किवदंतियो पर यदि गौर किया जाए तो लोगों की यह भी मान्यता रही है कि राजा रत्नदेव तृतीय के राजकाज संभालते ही सारी प्रजा अकाल व महामारी के कारण संत्रस्त हो उठी थी और राजा का राज कोष पुर्णतः खाली हो चुका था ऐसे संकट की घड़ी में राजा के निपुण विद्वान मंत्री पंडित गंगाधर ने प्रजा के कष्टों के निवारण हेतु पहाड़ी के ऊपर माँ लक्ष्मी जी के इस मंदिर का निर्माण कराया।जिसे उस समय इकबीरा देवी व स्तम्भिनी देवी भी कहा जाता था इस मंदिर निर्माण के पश्चात माँ लक्ष्मी की आराधना व विधिविधान से पूजा के पश्चात नगर में अकाल महामारी अशांति व राज्य की सारी विभीषिकाएँ समाप्त हो गई थी और नगर धन वैभव ऐश्वर्य व समृद्धि से परिपूर्ण हो गया था।
पुष्पक विमान की आकृति में है मंदिर।
पंडित गंगाधर शास्त्री द्वारा निर्मित इस मंदिर का आकार पुराणों में वर्णित पुष्पक विमान के जैसा है। यह मंदिर अपने आप में अनेक गूढ़ रहस्यों को समेटे हुए हैं जिस पर आने वाले समय में गहन शोध की आवश्यकता है। इस पहाड़ी के उपर बने मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के लिए लगभग 300 सीढ़ियों की चढ़ाई करनी पड़ती है। साथ ही यहाँ तक अब आसानी से पहुँचने बाईपास सड़क निर्माणाधीन है यहां विराजित विग्रह लखनी देवी का स्वरूप अष्टलक्ष्मी में से सौभाग्य देवी लक्ष्मी का है जो अष्टदल कमल पर विराजमान है।
रोग ब्याधि से मुक्ति व धन वैभव की होती है प्राप्ति।
यहां प्रति वर्ष चैत्र व क्वांर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैंयहां पर भक्तों के द्वारा मनोकामना स्वरुप मंगल जवारा बोने का भी विधान है। जनमान्यता के अनुसार इस मंदिर में माँ लक्ष्मी की पूजा पाठ व दर्शन करने मात्र से ही विभिन्न प्रकार के व्याधियों से मुक्ति व धन वैभव की सहज ही प्राप्ति हो जाती है।
दीपावली व धनतेरस में होती है विशेष पूजा।
लखनी देवी के इस प्राचीन मंदिर में दीपावली व धनतेरस को प्रतिवर्ष विशेष पूजा की जाती है जिसके तहत मंदिर सहित सम्पूर्ण परिसर को तोरण एवं बिजली के आकर्षक झालरों व बंदनवारों से सजाया जाता है। मान्यता है कि धनतेरस व दीपावली के दिन यहां पर पूजा अर्चना करने से सुख समृद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है।लखनी देवी के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यहां किसी प्रकार की सिद्धि व साधना के अलावा सच्चे मन से पूजा अर्चना व दर्शन करने मात्र से ही मानव जीवन सुख समृद्धि से परिपूर्ण हो जाती है।
मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण।
करीब 31 साल पहले लखनी देवी का मंदिर पूरी तरह उपेक्षित एवं सघन पेड़ पौधों के झुरमुट में छुपा था। जहाँ पर सिर्फ माघ पूर्णिमा मेला के अवसर पर लोगों का आना जाना हुआ करता था।इस बीच नगर के कुछ जागरूक लोगों ने इसके जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और इस मंदिर की चोटी तक पहुँचने के लिए पहाड़ के रास्ते में उगे झाड़ियों को साफकर लोगों के आने जाने लायक इसे बनाया।इसके बाद महामाया मंदिर ट्रस्ट की नजर इस मंदिर पर पड़ा। जहाँ ट्रस्र्ट के तत्कालीन अध्यक्ष स्व. बलराम सिंह ठाकुर एवं तत्कालीन मैंनेजिंग ट्रस्टी स्व.रमाशंकर गोरख ने सन 1992 में आसपास के ग्रामीणों का श्रमदान लेकर इस मंदिर की चोटी तक पहुँचने 269 सीढ़ियों का निर्माण कराया। इसके बाद ट्रस्र्ट ने इस मंदिर को अपने अधीन कर मंदिर के नीचे परिसर में धर्मशाला ज्योति जवारा कक्ष सांस्कृतिक मंच एवं भब्य गेट का निर्माण कराया। इसके अतिरिक्त पहाड़ स्थित मंदिर के सबसे ऊंची चोटी पर एक श्रद्धालु ने लखनेश्वर महादेव मंदिर एवं विशालकाय आदम कद भगवान शंकर एवं बजरंगबली की प्रतिमा का निर्माण भी करवाया है। इसी तरह छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के पूर्व सदस्य भूपचन्द शुक्ला की विशेष पहल पर पर्यटन मंडल एवं वन विभाग ने सीढ़ी के ऊपर दर्शनार्थियों की सुविधा हेतु छायादार शेड, सीसी रोड, नक्षत्र वाटिका एवं प्रसाधन कक्ष बनवाया है। इस प्रकार यहाँ पर भी लखनी देवी के इस मंदिर तथा उसके आसपास सौंदर्यी करण एवं विकास के काम तेजी से हो रहा है।
रतनपुर में छिपी कई किंवदंतियां।
1045 ईस्वी में शिकार के शौकीन राजा रत्नदेव प्रथम ने मणिपुर नामक गाँव मे रात्रि विश्राम एक वटवृक्ष पर किया था और अर्धरात्रि में जब राजा की अचानक आँख खुली तब उन्होने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश पुंज देखा यह देखकर राजा चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है इतना देख वे अपनी चेतना खो बैठे सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गए रात में स्वप्न आने के पश्चात उन्होंने रतनपुर को अपनी राज धानी बनाने का निर्णय किया। साथ ही 1050 ईस्वी में रतनपुर में श्री महामाया देवी के भब्य मंदिर का भी निर्माण करवाया ।